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हाईकोर्ट ने सहायक प्राध्यापक का निलंबन रद्द किया, दुर्भावनापूर्ण करार

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छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट में अधिवक्ता मतीन सिद्दीकी के माध्यम से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए न्यायमूर्ति सचिन सिंह राजपूत ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया। उन्होंने शासकीय बृजलाल वर्मा महाविद्यालय, पलारी में राजनीति विज्ञान के सहायक प्राध्यापक कमलेश दुबे के निलंबन आदेश को न केवल अवैध, बल्कि दुर्भावनापूर्ण करार दिया। न्यायालय ने कहा कि यह कार्रवाई “प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का घोर उल्लंघन” है, जो न केवल सेवा नियमों के विरुद्ध थी, बल्कि एक व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा को भी गहरी ठेस पहुंचाने वाली है। याचिकाकर्ता ने करीब 23 वर्षों तक निष्कलंक सेवा दी थी, इसके बावजूद 2015 में बिना नोटिस या पक्ष सुनवाई के, अखबार में छपी खबर और एकपक्षीय जांच के आधार पर उन्हें निलंबित कर दिया गया। अदालत ने राज्य शासन के उस तर्क को खारिज कर दिया कि छात्राओं की शिकायतों के चलते निलंबन जरूरी था। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि महज शिकायत या समाचार प्रकाशन किसी कर्मचारी के निलंबन के लिए पर्याप्त नहीं हो सकता, जब तक कि उचित जांच और सुनवाई न हो। अंततः कोर्ट ने 23 सितंबर 2015 के निलंबन आदेश को रद्द करते हुए इसे न्याय के मूल सिद्धांतों के खिलाफ बताया। साथ ही यह भी स्पष्ट किया गया कि याचिकाकर्ता पूर्व में अंतरिम आदेश के तहत सेवा में बहाल हो चुके हैं।

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