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लुप्त हो रहे मोहरी की आवाज सुनने लोग हुए आतुर

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“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम। छत्तीसगढ़ में अनेक प्रकार के वाद्य यंत्र प्राचीन काल से बजाए जा रहे हैं इनमें से अधिकांश वाद्य यंत्र लुप्त होने के कगार पर है या तो कई लोग उनके नाम तक नहीं जानते या फिर समय के साथ साथ समाप्त हो गया है। वैसे मोहरी वाद्य यंत्र आजकल बहुत कम सुनाई देता हैं। पहले विवाह आदि के अवसरों पर मोहरी की आवाज हमेशा गूंजती थी लेकिन उनका स्थान अब डीजे, धुमाल एवं केशियो ने ले रखा है। आजकल निशान, दफड़ा, कुरूंगी, टासक बजाए जाते हैं परंतु मोहरी की जगह अधिकांश वाद्य दल केशियो का उपयोग करते हैं। बताना होगा कि मातर उत्सव के अवसर पर शहर से लगा हुआ गांव चौबेबांधा में मोहरी की आवाज ने ग्रामीणों को काफी प्रभावित किया। जैसे ही देवभोग से पहुंचे इस वाद्य दल ने अपने वाद्य यंत्र को बजाना शुरू किया भीड़ में भी मोहरी की आवाज अपनी अलग पहचान बना रही थी। नागझर से पहुंचे इस वादक ने दोनों हाथों से मोहरी को पकड़कर मुंह से हवा दे रहे थे। इससे उनके दोनों गाल फूला हुआ दिखाई दे रहा था। लगातार कई घंटों तक उन्होंने अलग अलग रिदम में एक से बढ़कर एक धुन छेड़ा। चर्चा के दौरान मोहरी वादक जगत बाबू ने बताया कि वह पिछले 20 वर्षों से लगातार मोहरी बजा रहे हैं। शादी विवाह, छट्ठी, जन्म दिवस, दीपावली आदि अवसरों पर बजाने का अवसर मिलता है जब कहीं भी कोई कार्यक्रम नहीं होते हैं फिर भी अभ्यास के लिए घर में ही बजाता हूं। मोहरी बजाना मेरी दिनचर्या में सम्मिलित है। वह बताते हैं कि हिंदी, छत्तीसगढ़ी, मराठी, उड़िया रिदम में भी बजा लेते हैं। उन्होंने आगे बताया कि इस वाद्य यंत्र को जीवित रखने के लिए प्रदेश सरकार द्वारा जैसे राजिम महोत्सव, चक्रधर समारोह, खैरागढ़ उत्सव, सिरपुर महोत्सव, राज्योत्सव आदि सरकारी आयोजनों में मोहरी वादन का कार्यक्रम होना चाहिए इससे इन वादको को मंच मिलेगा तथा लुप्त हो रहे इस वाद्य यंत्र को प्लेटफार्म मिलने से बजाने वाले की संख्या बढ़ेगी और इनके जगह दूसरे वाद्य यंत्र अतिक्रमण कर बैठे हुए हैं उससे मुक्ति मिलेगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार ऐसे कलाकारों की गांव गांव में मुनादी कर जानकारी इकट्ठा कर आए तथा इन कलाकारों के आगे बढ़ने तथा आर्थिक अभाव में जी रहे लोगों का सहयोग करें। इससे कला के क्षेत्र में प्रगति दिखाई देगी।

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