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चतुरगढ़ में स्थापित है महिषासुर मर्दिनी की 18 भुजाओं वाली अद्भुत मूर्ति

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कोरबा। कोरबा जिले की ऊंची पहाड़ियों पर मां महिषासुर मर्दिनी विराजित हैं। जिनका धाम चैतुरगढ़, जिसे ‘लाफागढ़’ के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि में यहां बड़ी संख्या में श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं। चैतुरगढ़ कोरबा से 100 किमी और पाली से 40 किमी उत्तर दिशा में स्थित है। इतिहासकारों के अनुसार इसका निर्माण छठी शताब्दी में गुप्तवंशीय राजाओं के समय का माना जाता है। कुछ इतिहासकरो के अनुसार इस किले का निर्माण कलचुरी शासक पृथ्वीदेव ने कराया था। इसे एक मजबूत प्राकृतिक किला है, इसके चारों ओर ऊंची चट्टानी दीवारें हैं। इस किले के तीन भव्य प्रवेश द्वार हैं मेनका, हुमकारा और सिंहद्वार। पहाड़ पर पांच वर्ग किमी समतल क्षेत्र है, जहां पांच तालाब हैं। इनमें से तीन तालाब में सालभर पानी रहता है। यहीं स्थित है महिषासुर मर्दिनी मंदिर, जिसमें देवी की अठारह भुजाओं वाली अद्भुत प्रतिमा स्थापित है। नवरात्रि पर यहां
इस बार 25 हज़ार मनोकामना ज्योत प्रज्वलित किये गए हैं। अभी रुक -रुककर हो रही बारिश के बावजूद श्रद्धालुओं का आगमन काम नहीं हुआ हैं। पहले पहाड़ी के ऊपर तक गाड़ियों जाती थी लेकिन बारिश और नवरात्र में गाड़ी पहाड़ी के नीचे छोड़ना पड़ता है। आधा पौना किमी खड़ी चढ़ाई पैदल चढ़नी पड़ती है। मां महिषासुर मर्दिनी के दर्शन मात्र से यह थकान गायब हो जाती है।
मंदिर से तीन किमी दूर स्थित है शंकर गुफा, जो 25 फीट लंबी और बेहद संकरी है। कहा जाता है कि केवल सच्चे श्रद्धाभाव से ही कोई अंदर तक पहुंच सकता है। चैतुरगढ़ की पहाड़ियां प्राकृतिक सुंदरता और रहस्यमयी गुफाओं के लिए प्रसिद्ध हैं। यहां अनेक दुर्लभ पक्षी और वन्यजीव भी देखे जा सकते हैं। इतिहास के अनुसार इस किले का निर्माण कलचुरी शासक पृथ्वीदेव ने कराया था। पुरातत्व विभाग आज भी इसकी देखरेख करता है, व इसे संरक्षित घोषित किया है। यहाँ के लोगों की मान्यता है कि यहां एक गुप्त द्वार स्वर्गलोक और कुबेर के खजाने तक जाता है। दर्शन करने आने वाले श्रद्धालुओं के लिए शारदीय नवरात्रि पर नौ गांव के द्वारा निशुल्क भंडारे का आयोजन किया जाता है।

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