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पत्थर तोड़ रहे पंचू राम को पता नहीं क्या है मजदूर दिवस

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संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम । एक मई को पूरी दुनिया विश्व मजदूर दिवस के रूप में मनाती है। इनके पीछे का उद्देश्य दुनिया भर के मजदूरों और श्रमिकों को उनके योगदान तथा बलिदान को याद करना है। बता दे कि सन् 1886 में अमेरिका में आंदोलन के बाद 1 मई को विश्व मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत हुई। मोबाइल पर फेसबुक एवं व्हाट्सएप में एक मई श्रमिक दिवस की लोग बधाई दे रहे हैं। चैटिंग चल रही है और तरह-तरह की डिजाइन स्क्रीन पर दिख रहे हैं लेकिन तपती धूप एवं बोरे बासी खाने वाले मजदूर को ही नहीं पता कि मजदूर दिवस क्या होती है। उन्हें तो मात्र काम करने के बदले मिलने वाली मजदूरी से है जो पैसा उन्हें मिल जाता है उससे वह अपने व परिवार के पालन पोषण में खर्च करते हैं। फटे पेंट शर्ट पहने, सिर पर गमछा लपेटे हाथ में बड़ा सा हथोड़ा लिए हुए नए मकान निर्माण के लिए पुराने मकान के पत्थर एवं ईंट जैसी सामग्री को तोड़ते हुए 55 वर्षीय मजदूर पंचूराम 43 डिग्री गर्मी भी उनकी कुछ नहीं बिगाड़ रही थी हमने जैसे ही उनके फोटो लिए उन्हें पता ही नहीं चला कि कोई उनके फोटो खींच रहे हैं लेकिन जब उनसे पूछा गया कि आज मजदूर दिवस है तब उन्होंने कहा कि यह क्या होता है हमने बताया कि मजदूरों को अधिकार मिला हुआ है। उन्हीं को बताने के लिए यह दिवस न ही भारत में बल्कि पूरी दुनिया में मनाया जाता है। तब उन्होंने कहा कि साहब हमारे मजदूरी दर बढ़ा दीजिए। तेल की कीमत बढ़ गई। छड़ सीमेंट के अलावा कारखानों में बनने वाले सभी सामान ऊंची कीमत पर मिलती है इन्हें खरीद कर उपयोग करने में हमारी पसीने छूट जाते हैं मजदूरी दर कम है और इतने में हम अपने व परिवार का गुजारा कैसे करें। इनके बात को सुनकर हमने मजदूरी की राशि ही पूछ लिया। तब बताया गया कि सुबह से लेकर दोपहर एक से दो बजे तक काम करेंगे जिनकी मजदूरी कीमत ₹170 है। इस मजदूर के शरीर से पसीने की बूंदे निरंतर नीचे गिर रहे थे लेकिन इनके मेहनत में कोई कमी नहीं आ रही थी वह शनै शनै कर एक-एक ईंट व पत्थर को निकाल रहे थे। इसी तरह से करोड़ों श्रमिक देश के नवनिर्माण में लगे हुए हैं वह सुबह उठते हैं और काम में लग जाते हैं तो कोई 12 घंटे काम करते हैं तो कोई 18 घंटे तो कोई मात्र 8 घंटे काम कर ही घर को चले जाते हैं सबके काम करने का अलग-अलग समय परंतु सबका उद्देश्य देश के नवनिर्माण में निरंतर आगे बढ़ना है इनके लिए मजदूर भाइयों को उनके सही मजदूरी दर मिले तथा उनके मान-सम्मान बढ़े इस बात का ख्याल सरकार को भी रखना जरूरी है। इसी तरह से मजदूरी कर रही हेमबाई से हमने पूछा तो उन्होंने बताया कि वह मकान निर्माण में ईंट ढुलाने का काम कर रही है। पति भी मजदूरी करते हैं वह खुद ईद को सिर में लेकर आगे ले जाने का काम कर रही थी उन्होंने बताया कि उन्हें मजदूरी दर डेढ़ सौ रुपए तक मिल जाती है और इसी से ही अपने व परिवार का गुजारा करती है। किसान नेकराम, दीना निषाद, द्वारका निषाद, संतोष सोनकर, वेदराम साहू, पुरुषोत्तम लाल जैसे अनेक लोगों ने बताया कि खाद की कीमत बढ़ गई है दवाई अनाप-शनाप कीमतों पर मिलती है परंतु किसानों के धान की कीमत बढ़ने के बजाय और कम होते जा रहे हैं। हमारे खेतों में काम करने के लिए मजदूर नहीं मिलते और मिलते भी हैं तो उनके मजदूरी दर हम दे पाने में सक्षम नहीं होते हैं इसलिए खुद खेत वा बाड़ी में काम करते हैं। इससे जो आय अर्जित होता है उसी से ही जिंदगी चलती है। उन्होंने कहा कि किसान भी मजदूर है साहब। हम छोटे किसान कभी मजदूरी करते हैं तो कभी अपने पुरखों के कुछ जमीन मिले हुए हैं उन्हीं को ही बो कर कृषि कार्य कर लेते हैं। अकुशल मजदूरों एवं श्रमिकों तथा छोटे किसानों के लिए सरकार के द्वारा अच्छी योजना की शुरुआत करनी चाहिए ताकि इनके हाथ को काम मिल सकें। शहर में भी सैकड़ों जगह हजारों श्रमिक काम कर रहे हैं कोई ठेले लगा रहे हैं तो कोई बोझा उठा रहे हैं। हर कोई को अपने परिवार पालने की जिम्मेदारी ने तरह-तरह की काम करा दी।

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