पसहर चावल ₹60 किलो, बुधवार को हलषष्ठी व्रत
”संतोष सोनकर की रिपोर्ट”
राजिम । अंचल में इस बार हलषष्ठी व्रत 17 अगस्त दिन बुधवार को मनाया जाएगा। जानकारी के मुताबिक भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि की शुरुआत 16 अगस्त 2022 की रात्रि 8:17 से हो रही है जो 17 अगस्त की रात्रि 8:24 तक रहेगी। हिंदू धर्म में उदया तिथि से ही सभी व्रत त्योहार मनाए जाते हैं इसलिए हलषष्ठी का व्रत 17 अगस्त को रखा जाएगा। बाजार में पसहर चावल की कीमत बढ़ी हुई है और इन्हें ₹60 किलो में बेचा जा रहा है। एक यही अवसर होता है जब इस चावल की खासा मांग होती है बाकी साल भर इसका कोई औचित्य अर्थात खाने वाला नहीं रहता है। इस व्रत को लेकर महिलाओं में खासा उत्साह है। छत्तीसगढ़ अंचल में हलषष्ठी व्रत का अपना विशेष महत्व होता है भाद्र मास कृष्ण पक्ष के षष्ठी को मनाया जाने वाला यह व्रत पर्व का रूप है तथा स्त्री प्रधान है इसे कमरछठ, हलषष्ठी, ललही छठ और ललिता व्रत के नाम से भी जाना जाता है पुत्र व सुहाग की मंगल कामना से अधिकांशतः सुहागन महिला ही इस कठिन व्रत का पालन करती है। सुबह घर आंगन को लिपकर साफ सफाई की जाती है। स्नान पूर्व महुए की दातुन किया जाता है पश्चात पूजा सामानों की तैयारियां शुरू होती है सेन के पास से दोना पत्तल लाते है। धान को आग में सेंककर लाई बनाया जाता है सात प्रकार के अन्न गेहूं, चना, ज्वार, बाजरा, मसुर एवं महुआ को सगरी में समर्पित करने की परंपरा है। दोपहर बाद सामूहिक रूप से किसी चौक चौराहे या धार्मिक स्थल में एकत्रित होते हैं यहां पर जल कुंड के रूप में दो हल्का गहरे कुएं खोदे जाते हैं जिनके चारों ओर गोलाकार बेर, गूलर, पलाश, कुश की टहनियों को गढ़ाकर सुसज्जित करते हैं इससे सगरी की आभा और अधिक बढ़ जाती है। नए कपड़े पहन कर पूजा सामग्री सहित पात्र में पानी लेकर महिलाएं पूजा आराधना करती है। पानी को सगरी में डालते हैं और देखते ही देखते लबालब हो जाता है। नि:संतान महिलाएं पुत्र की कामना को लेकर जोड़ा नारियल छोड़ते हैं। कथाकार के द्वारा व्रत की महिमा का वर्णन किया जाता है। एक कथा आती है कि एक ग्वालिन जिनके 4 पुत्र थे उनको घर में छोड़कर अकेली दूध बेचने के लिए नगर में निकल गई। गाय का दूध उन्होंने खूब बेचा और वापस आकर देखा तो उनके चारों पुत्र मरे पड़े हुए थे तभी उनको ख्याल आया कि आज कमरछठ है तथा इस दिन गाय का दूध वर्जित है पश्चाताप करने लगी। ग्वालिन तत्काल भैंस का दूध देने के लिए चली गई और गाय का दूध वापस लेकर भैंस का दूध थमाया इस तरह जब घर आकर देखा तो उनके चारों पुत्र जीवित हो गया था। पूजा स्थल से आने के बाद पसहर चावल का प्रसाद सबसे पहले गाय, चिड़िया, चूहा, कुत्ता, बिल्ली को देते हैं उसके बाद में स्वयं ग्रहण करते है। इस दिन हल के उपयोग से पैदा हुई अनाज का सेवन नहीं करते। धर्म ग्रंथों के अनुसार इस दिन हलधर बलराम का जन्म हुआ था तथा राजा जनक की पुत्री सीता का जन्म हल के स्पर्श से हुआ था इसलिए आज भी परंपरा है कि हल चलाई हुई खेत में व्रती माताएं नहीं जाती। बड़ी आस्था के साथ इस व्रत का निर्वहन करती है। इनका प्रसाद महिला पुरुष सभी खाते हैं और हलषष्ठी के रंग में पूरा समाज रंग जाता है।