सुदामा की तरह भक्ति करने वाले कभी असफल नहीं होते: गीता गोस्वामी शहर के गांधी नगर वार्ड में भागवत कथा के छठवें दिन सुदामा चरित्र सुनकर श्रोताओं के आंखों से निकले आंसू
“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”
राजिम। ईश्वर नाम की भक्ति करने से एकाग्रता आती है। जीवन में सुख और दुख दोनों लगा रहता है सुख आते हैं तब हम ज्यादा प्रफुल्लित हो जाते हैं लेकिन जैसे ही दुख का आगमन होता है उसके बाद हमारे कदम डगमगाने लग जाते हैं। दुख का क्षण ही सही मायने में परीक्षा की घड़ी है। मनुष्य को अपने रास्ते बदलने की जरूरत नहीं है ईश्वर नाम का मार्ग हमेशा आगे बढ़ने की ओर प्रेरित करती है। सुदामा की तरह भक्ति करने वाला कभी असफल नहीं होते। उक्त बातें शहर के वार्ड क्रमांक एक गांधीनगर में चल रहे श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह के छठवें दिन सुदामा चरित्र प्रसंग पर प्रवचनकर्ता पूज्या गीता गोस्वामी ने व्यासपीठ से कहीं। उन्होंने सुदामा चरित्र पर मार्मिक कथा प्रस्तुत करते हो रहे। जिन्हें सुनकर श्रोताओं के आंखों से आंसू निकल पड़े। उन्होंने बताया कि सुदामा के घर गरीबी मुंह खोल कर खड़ी हुई थी। सुदामा नियम बना लिया था कि एक दिन में पांच घर से ज्यादा नहीं जाएगा और उससे जो भिक्षा मिलेंगे उन्हीं से परिवार का गुजर-बसर करेंगे। कई दिन ऐसे होता कि उन्हें एक अन्न का कण भी नहीं मिलता फिर भी वह संतोष कर लेता, लेकिन बच्चों को खिलाने के लिए अन्न का दाना नहीं होने से पत्नी सुशीला दिक्कत में पड़ जाती। एक बार तो पिछले पांच दिनों से एक मुट्ठी चावल तक नहीं मिला जिससे पूरा परिवार लगातार अघोषित उपवास कर बैठा। बच्चे भूख के मारे रोने लगे। पानी पी पीकर दिन गुजारने लगे परंतु रात बड़ी मुश्किल से गुजरती। अगले दिन सुदामा को बड़ी मुश्किल से एक मुट्ठी चावल मिला उन्हें लाकर पत्नी को दी। उन्होंने ज्यादा ना सही थोड़े-थोड़े खा लेंगे जानकर चावल जरूर बनाएं लेकिन जैसे ही परोसा और भोजन मंत्र पढ़ने के बाद पहली कौर खाने के लिए उठाया। उसी समय गौ माता भोजन के लिए आवाज दी। उन्हें सुनकर सुदामा क्षमा मांगते हुए उनके पत्तल पर रखे हुए चावल गाय को दे आया। इसके बाद सुशीला पात्र में रखे हुए कुछ चावल को पुनः लाकर सुदामा के पास खाने के लिए रख दिए। उन्होंने फिर कौर उठाया और मुंह के पास ले ही जाने वाले थे कि एक भिक्षुक पिछले सात दिनों से भूखा हूं कहकर भोजन की मांग करने लगा, तब सुदामा रखा हुआ वह भोजन भी उन्हें दे देते हैं। अब उनके खाने के लिए कुछ नहीं बचा। तब मिट्टी के बर्तन में भोजन के एक दाना बचे हुए थे उसे निकालकर सुदामा के पत्तल पर रख दिया। वह फिर से भगवान को याद करते हैं और एक दाना के दो हिस्से कर एक हिस्से को धरती माता को अर्पण करते हुए देवी देवताओं को प्रदान करते हैं तथा आधा अन्न के दाना को खुद ग्रहण करते हैं और इसी अन्न के आधे दाने में ही सुदामा का पेट भर जाता है इधर देवी देवता भी प्रसाद पा जाते हैं। इसे कहते हैं ईश्वर कृपा। गीता गोस्वामी ने आगे बताया कि सुदामा मित्र कृष्ण से मिलने के लिए द्वारकापुरी गए। जाने के लिए घर से जरूर निकल गए लेकिन किधर जाना है उसे पता नहीं था तब कृष्ण वेश बदलकर उनका मार्गदर्शन किया और सुदामा देखते ही देखते कृष्ण के पास पहुंच गया। भगवान के पास जाने की देरी होती है यदि भक्ति में सच्चाई हो तो ईश्वर जरूर मिलते हैं हम समझ नहीं पाते ईश्वर हमें अनन्य रूपों में हमारी सहायता करते रहते हैं हमें जानना जरूरी है ईश्वर के बिना हम सब नश्वर है। उन्होंने परीक्षित मोक्ष कथा पर भी प्रकाश डालते हुए कहा कि तक्षक नाग के डसने पर परीक्षित परमधाम को गमन कर गए। लगातार सात दिन तक श्रीमद् भागवत महापुराण की कथा सुनने के बाद परीक्षित को अपने ही मृत्यु का भय नहीं रहा भागवत कथा मृत्यु के भय से छुटकारा दिलाती है। उल्लेखनीय है कि शालिनी शर्मा की स्मृति में आयोजित इस भागवत कथा में बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित होकर कथा रस का पान कर रहे हैं। परिचित परीक्षित तेजशसिंह राजपूत तथा परायणकर्ता पंडित सौरभ मिश्रा है। उक्त अवसर पर धार्मिक भजनों ने लोगों को झूमने के लिए मजबूर कर दिया।