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Chhattisgarh

माघी पुन्नी मेला के दूसरे दिन श्रद्धालुओं ने रेत से बना शिवलिंग का किया पूजा

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“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम । माघी पुन्नी मेला के दूसरे दिन भी श्रद्धालु कुंड के अलावा घाट में पवित्र स्नान किए। यहां प्रमुख रूप से दो स्नान कुंड बनाए गए हैं जिनमें से एक स्नान कुंड 50 मीटर चौड़ाई एवं 100 मीटर लंबाई का है। दूसरा स्नान कुंड लंबे आकार का है। इसके साथ ही यहां प्रमुख रूप से अटल घाट, सोन तीर्थ घाट, बेलाही घाट, नेहरू घाट, गंगा आरती घाट है। जहां दूसरे दिन भी श्रद्धालुओं ने सुबह से ही त्रिवेणी संगम के जल पर डुबकी लगाएं। अधिकांशत: पूरे परिवार सहित लोग आकर पवित्र स्नान का लाभ प्राप्त किए तथा नदी के पानी में दीपप्रज्वलित कर दीपदान की रस्म अदायगी की और रेत से शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना किए। आरती में अक्षत द्रव्य गुलाल अगरबत्ती आदि सम्मिलित किए इनके पश्चात शिवजी में चढ़ने वाले फूल केसरिया, कनेर, फूंडहर, धतूरा, बिल्वपत्र, दूध, दही, सरसों तेल, शहद शिवलिंग को समर्पित किए।संगम में रेत ही रेत है किवदंती है कि त्रेता युग में अयोध्या के चक्रवर्ती सम्राट महाराज दशरथ के सुपुत्र राम, लक्ष्मण एवं उनके पुत्रवधू सीता वनवास काल के दौरान पैदल चलते हुए महर्षि लोमश से मिलने त्रिवेणी संगम राजिम पहुंचे थे। वह चौमासा व्यतीत कर कमल क्षेत्र के आसपास विद्यमान आसुरी शक्तियों का समूल नाश किया। इस दरमियान देवी सीता ने रेत से शिवलिंग बनाकर महादेव का अभिषेक किया। यही शिवलिंग कुलेश्वर नाथ महादेव के रूप में प्रसिद्ध हुआ। रामायण काल में रामचंद्र ने रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की तो सीता ने राजिम में विश्वनाथ महादेव के स्थापना रेत से किया सबसे त्रिवेणी संगम में रेत के शिवलिंग बनाने की परंपरा चल पड़ी है लोग धारणा है कि रेत से शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना करने से उमा महेश्वर शीघ्र प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों के ऊपर कृपा बरसाते हैं। कवि एवं साहित्यकार संतोष कुमार सोनकर मंडल सपरिवार शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना की। ज्ञातव्य हो कि हाल ही में इन्हें लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य करने के लिए संत कवि पवन दीवान स्मृति साहित्य सम्मान से नवाजा गया है। इसी तरह से कई दृश्य संगम में दिखे। सुबह से लेकर देर शाम तक यह क्रम चलता रहा उल्लेखनीय है कि महाशिवरात्रि तक इस तरह के रेत से शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना करने का क्रम चलता रहेगा कहना होगा कि 12 महीना श्रद्धालुगण रेत की शिवलिंग बनाकर पूजा अर्चना करते हैं परंतु पर्वों में इनकी महत्व और बढ़ जाती है।

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