विकास चौबे की कलम से, जानिए क्या है वेद और उसका महत्व…..
भिलाई। वेद प्राचीन भारत का सबसे पवितत्र साहित्य हैं, जो हिन्दुओं का प्राचीन और आधारभूत धर्मग्रन्थ भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ हैं, जो ईश्वर की वाणी है। ये विश्व के उन प्राचीनतम धार्मिक ग्रंथों में से हैं, जिनके पवित्र मन्त्र आज भी बड़ी आस्था और श्रद्धा से पढ़े और सुने जाते हैं।
आखिर क्या है वेद : “विद्” का अर्थ है: जानना, ज्ञान इत्यादि वेद शब्द संस्कृत भाषा के “विद्” धातु से बना है। ‘वेद’ हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई। ऐसी मान्यता है कि इनके मन्त्रों को परमेश्वर ने प्राचीन ऋषियों को अप्रत्यक्ष रूप से सुनाया था। इसलिए वेदों को श्रुति भी कहा जाता है। वेद प्राचीन भारत के वैदिक काल की वाचिक परम्परा की अनुपम कृति है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी पिछले चार-पाँच हज़ार वर्षों से चली आ रही है। वेद ही हिन्दू धर्म के सर्वोच्च और सर्वोपरि धर्मग्रन्थ हैं। वेद के असल मन्त्र भाग को संहिता कहते हैं।
महर्षि व्यास का योगदान : प्रारम्भावस्था में वेद केवल एक ही था; एक ही वेद में अनेकों ऋचाएँ थीं, जो “वेद-सूत्र” कहलाते थे; वेद में यज्ञ-विधि का वर्णन है; सम पदावलियाँ है तथा लोकोपकारी अनेक ही छन्द हैं। इन समस्त विषयों से सम्पन्न एक ही वेद सत्युग और त्रेतायुग तक रहा; द्वापरयुग में महर्षि कृष्णद्वैपायन ने वेद को चार भागों में विभक्त किया। इस कारण महर्षि कृष्णद्वैपायन “वेदव्यास” कहलाने लगे। संस्कृत में विभाग को “व्यास“ कहते हैं, अतः वेदों का व्यास करने के कारण कृष्णद्वैपायन “वेदव्यास” कहलाने लगे। महर्षि व्यास के पैल, वैशम्पायन, जैमिनी और सुमन्तु- यह चार शिष्य थे। महर्षि व्यास ने पैल को ऋग्वेद, वैशम्यापन को यजुर्वेद, जैमिनी को सामवेद और सुमन्तु को अथर्ववेद की शिक्षा दी।
ब्राह्मण ग्रन्थ : वेद में कुल मिलाकर एक लाख मन्त्र हैं। इन एक लाख मन्त्रों में 4000 मन्त्र ज्ञानकाण्ड विषयक हैं, 16000 मन्त्र उपासना विधि के हैं, और 80000 मन्त्र कर्मकाण्ड विषयक हैं। मन्त्रों की व्याख्या करने वाले भाग को “ब्राह्मण” कहते हैं। चारों वेदों के चार ही ब्राह्मण-ग्रन्थ हैं, ऋग्वेद का “ऐतरेय”, यजुर्वेद का “शतपथ”; सामवेद का “पंचविंश” तथा अथर्ववेद का “गोपथ ब्राह्मण”। इन ब्राह्मण ग्रन्थों में कर्मकाण्ड विषयक अंश “ब्राह्मण” कहलाता है; ज्ञान चर्चा विषयक अंश “आरण्यक”; उपासना विषयक अंश को उपनिषद कहते हैं। इस प्रकार वेद-मन्त्रों का और ब्राह्मण-भागों का निरूपण मन्त्र, ब्राह्मण, आरण्यक और उपनिषद इन चार नामों से होने लगा।
उपवेद व उपांग : प्रत्येक वेद के साथ एक-एक “उपवेद” है। ऋग्वेद का उपवेद आयुर्वेद; यजुर्वेद का उपवेद “धनुर्वेद”; सामवेद का उपवेद “गन्धर्ववेद”; और अथर्ववेद का उपवेद “अर्थशास्त्र” है। इसी प्रकार वेद के छह अंग और छह उपांग हैं। शिक्षा, कल्प, व्याकरण, निसक्त, छन्द, और ज्योतिष तो छह अंग हैं। शिक्षा ग्रन्थ से मन्त्र उच्चारण की विधि प्राप्त होती है; कल्पग्रन्थों से यज्ञ करने की विधि; व्याकरण से शब्दों की व्युत्पत्ति का ज्ञान; निरुक्त से वेद-शब्दों के अर्थ का ज्ञान; छन्द-शास्त्र से छन्दों का ज्ञान; तथा ज्योतिष से ग्रह-नक्षत्रादि की स्थिति का तथा मानव पर उनके भलेबुरे प्रभाव का ज्ञान होता है। वेदों के उपांग “षड्दर्शन या षट्शास्त्र” कहलाते हैं।