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रथयात्रा में बिखरेगी उड़िया संस्कृति की झलक,राजिम में रथयात्रा पर्व जोर शोर से मनाने चल रही तैयारियां

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संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम । पिछले दो साल से कोरोना काल के दौरान भगवान जगन्नाथ भक्तों के बीच नहीं जा पाए हैं इस बार ना सिर्फ भक्तों के बीच पहुंचेंगे बल्कि उनके सुख-दुख के सहभागी भी बनेंगे। उल्लेखनीय है कि राजिम में रथयात्रा पर्व की तैयारी जोर शोर से चल रही है। पहली बार रथयात्रा के साथ उड़िया संस्कृति की झलक देखने को श्रद्धालुओं को मिलेगा। राजीवलोचन ट्रस्ट कमेटी के मैनेजर पुरुषोत्तम मिश्रा ने बताया कि रथयात्रा पर्व को भव्य रूप से मनाने के लिए उड़ीसा के मृदंग नाम संकीर्तन मंडली को बुलाया गया है इनमें कुल 25 कलाकार है जो उड़िया वेशभूषा में मृदंग, झांझ इत्यादि वाद्य यंत्र को बजाकर उड़िया लोकगीत के साथ जगन्नाथ महाप्रभु का गुणगान करेंगे। मधुर धुनों के साथ पांच कलाकार वाद्य यंत्र बजाएंगे तथा बाकी के 20 नृतक नृत्य करेंगे। यह प्रमुख रूप से आकर्षण का केंद्र होगा। मंदिर के सर्वराकार चंद्रभान सिंह ठाकुर, शिवसिंह ठाकुर, महेंद्र सिंह ठाकुर, सनतसिंह ठाकुर, श्रवणसिंह ठाकुर, भारत सिंह ठाकुर, मनोज सिंह ठाकुर, बैकुंठ सिंह ठाकुर, हर्ष सिंह ठाकुर, रामकुमार सिंह ठाकुर,सूरज सिंह ठाकुर, नरेंद्र सिंह ठाकुर ने बताया कि महाप्रभु जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा रथ में सवार होकर यात्रा के लिए शाम 4:00 बजे निकल जाएगी। पहले सीधे महामाया मंदिर जाते थे परंतु इस बार रूट परिवर्तित कर दिया गया है। मंदिर से निकलने के बाद पूर्व दिशा की ओर आगे बढ़ते हुए विश्वकर्मा मंदिर, नेताजी सुभाष चौक, पंडित सुंदरलाल शर्मा चौकी स्थित बस स्टैंड, गोवर्धन चौक, महामाया चौक से होकर महामाया मंदिर में रुककर रात्रि विश्राम करेंगे। मंदिर के पुरोहित विजय तिवारी, रुपेश तिवारी, श्रीकांत तिवारी, ऋषि तिवारी ने बताया कि भगवान जगन्नाथ बीमार पड़ गए थे आज गुरुवार को स्वस्थ होने के उपरांत उन्हें सर्वस्नान पूजन अभिषेक एवं पंचामृत के साथ ही नए वस्त्र धारण कराया गया तथा आसन ग्रहण किया पश्चात भगवान नयन खोलें। गजामूंग, राई जाम, आम इत्यादि नैवेद्य प्रसाद अर्पण किया गया। इस तरह से नेत्रउत्सव धूमधाम के साथ मनाया गया। बताया गया कि गुरुवार को शाम भगवान जगन्नाथ के लिए विशेष व्यंजन बनाया जाएगा चीन में मुख्य रूप से हलवा पूरी पापड़ बिजोरी आदि नव प्रकार के व्यंजन होंगे इन्हें खाकर शुक्रवार को भगवान यात्रा के लिए प्रस्थान करेंगे।
बताया गया कि उड़ीसा के पुरी में स्थित महाप्रभु जगन्नाथ एवं प्रयाग भूमि राजिम के भगवान राजीव लोचन में आज भी अनेक समानता देखी जाती है जिस तरह से चावल से बने हुए पीडिया का भोग राजीवलोचन मंदिर में मिलता है वही उड़ीसा के जगन्नाथ में प्राप्त होते हैं। महाप्रभु जगन्नाथ के दर्शन के पश्चात राजीवलोचन का दर्शन अनिवार्य माना जाता है उसी भांति राजीवलोचन के दर्शन उपरांत जगन्नाथ का दर्शन अवश्य किया जाता है।
धर्म नगरी राजिम प्राचीन काल से रथयात्रा की परंपरा है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को यह पर्व धूमधाम के साथ मनाया जाता है भगवान जगन्नाथ चलकर भक्तों के बीच पहुंचते हैं और उनके सुख-दुख के सहभागी बनते हैं। भक्तगण रथ खींचने के लिए आतुर रहते हैं तथा गजामूंग का प्रसाद पाकर अपने भाग्य की सहराना करते हुए वापस अपने अपने घर चले आते हैं। आसपास सैकड़ो किलोमीटर से भी अधिक के श्रद्धालुओं का बड़ी संख्या में रथ यात्रा देखने के लिए धर्म नगरी में आते हैं इस दिन मंदिरों में भी अच्छी खासी भीड़ रहती है। यहां प्रमुख रूप से भगवान राजीवलोचन मंदिर, कुलेश्वर नाथ महादेव मंदिर, साक्षी गोपाल, वामन अवतार, नरसिंह अवतार, वराह अवतार, बद्रीनारायण, सूर्य देव मंदिर, भगवान का विराट स्वरूप, महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर, हनुमान मंदिर, दान दानेश्वर महादेव मंदिर, राज राजेश्वर महादेव मंदिर, मां महामाया मंदिर, बाबा गरीब नाथ मंदिर, सोमेश्वर नाथ महादेव मंदिर, लोमश ऋषि आश्रम, संत कवि पवन दीवान आश्रम इत्यादि है।

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