माता-पिता का प्रणाम करने से जीवन धन्य हो जाता है: पंडित कन्हैया तिवारी

राजिम । शहर के मालवीय पारा में हनुमान मंदिर के पास चल रहे श्रीमद् भागवत कथा महापुराण के चौथे दिवस भागवताचार्य पंडित कन्हैया तिवारी ने गृहस्थ जीवन पर फोकस करते हुए अनेक दृष्टांत दिए। उन्होंने कहा कि मुखिया मुख के समान होना चाहिए। वेद में एक लाख मंत्र है जिनमें 96000 गृहस्थ जीवन के बारे में बताया गया है तथा बाकी के 4000 मंत्र सन्यासियों के लिए है। इस जीवन में सुख दुख, उत्थान पतन, गिरना उठना लगा रहता है। सच्चे अर्थों में जाना जाए तो यही जीवन के महत्वपूर्ण क्षण होता है जिसमें मां, बहन, बेटे, बेटियां, बहू, पिता पुत्र आदि के किरदार निभाने का अवसर मिलता है। परिवार में अलग अलग विचारधारा के लोग रहते हैं लेकिन सबमें एकता होती है जैसे शंकर के परिवार में उनकी सवारी बैल, पार्वती की शेर, गणेश की चूहा, कार्तिकेय के मोर, इनके अलावा सर्प, बैल भी उनके साथ में रहते थे जबकि बैल और शेर में स्वभाविक बैर होता है फिर भी शंकर ने अपने परिवार को वैचारिक भिन्नता से दूर एकता के साथ में रखा था। परिवार में सामंजस्य बहुत जरूरी है। काम धंधे सब अलग अलग हो सकते हैं लेकिन भोजन एक साथ बैठकर करने से विचार में एकरूपता बनी रहती है। विद्वानों का मानना है कि भोजन अन्नपूर्णा देवी का प्रसाद है और जो कोई भी उनके लिए हुए अन्न को श्रद्धा के साथ ग्रहण करता है वहां सुख समृद्धि अवश्य रहती है इसलिए चाहे लाख काम हो परिवार के सभी सदस्य एक साथ मिल बैठकर भोजन ग्रहण करने का जरूर प्रयास करें। हमारे धर्म में 16 प्रकार के संस्कार होते हैं जिनमें गर्भाधान संस्कार, पुंसवन संस्कार, सीमांतोन्नयन संस्कार, जातकर्म संस्कार, नामकरण संस्कार, निष्क्रमण संस्कार, अन्नप्राशन संस्कार, मुंडन संस्कार, कर्णवेधन संस्कार, विद्यारंभ संस्कार, उपनयन संस्कार, वेदारंभ संस्कार, केशांत संस्कार, सम्वर्तन संस्कार, विवाह संस्कार और मृत्यु संस्कार। राम चरित्र मानस एवं श्रीमद्भागवत महापुराण संस्कार की बात करती है। रामचंद्र सुबह उठकर सबसे पहले अपने माता पिता का प्रणाम करते थे। बताया जाता है कि इनके प्रणाम करने से सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं। घर परिवार में छोटे बच्चों को एक अच्छा माहौल दीजिए क्योंकि बच्चे जो देखता है वही सीखता है। पंडित तिवारी ने आगे कहा कि एक बार इंद्र को ब्रह्महत्या लग गया। इससे वह व्याकुल होकर चारों तरफ भटकने लगा और दौड़ते दौड़ते माता के पास चला गया उन्हें दया आई तो उन्होंने उनके ब्रह्महत्या के एक भाग को अपने ऊपर ले लिया। माताएं 3 दिनों तक रजोधर्म का पालन करती है। तथा सातवें दिन ही पूजा-पाठ के लिए अपने आप को पवित्र मानती है इसे ही ब्रह्म हत्या का प्रतीकात्मक रूप माना जाता है। इनमें पहला दिन ब्रह्मघातनी, दूसरा दिन चांडालीन तथा तीसरा दिन धाबिन के समान रहती है। दूसरा धरती माता ने लिया जो भिंभोरा के रूप में उद्भित होते हैं। तीसरा पेड़ पौधा जिसमें गोंद उभरता है इसे इनका तीसरा अंश माना गया है तथा चौथा हिस्सा नदी का जल है जो गजगजा के रूप में हैं। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रोता कान उपस्थित होकर कथा रस का पान कर रहे थे जिनमें प्रमुख रूप से उर्मिला , सतीश दुबे, एकता, जयप्रकाश उपाध्याय, मीनाक्षी तिवारी, प्रतिमा, पार्षद लोकेश्वरी यादव,भारत यादव, विवेक दुबे विनोद साहू, पंडित जय मिश्रा, साहित्यकार संतोष कुमार सोनकर मंडल सहित बड़ी संख्या में महिलाएं उपस्थित थी।