अब हुआ वनवासियों के साथ न्याय: जमीन के मालिकाना हक के साथ किसान का भी दर्जा मिला….
”बीएन यादव की रिपोर्ट”
कोरबा। आदि अनंत काल से जल-जंगल-जमीन से वनवासियों का नाता इतना प्रगाढ़ है कि इसके लिए वे जान न्यौछावर करने से भी परहेज नहीं करते। सालों से जिस जमीन पर खेती करते आ रहे हैं, वह जमीन भी जंगल की थी। अपने पसीने की बूंदों से सींच कर अनाज उगाने वाले इन वनवासियों का जमीनों पर मालिकाना हक भी नहीं था। खेती करते थे, अनाज उगाते थे पर किसान की जगह वनवासी कहलाते थे। जमीन का मालिकाना हक नहीं होना और खेती करने के बाद भी किसान का दर्जा नहीं मिलना इन भोेले-भाले मेहनत कश वनवासियों के साथ बड़ा अन्याय था। छत्तीसगढ़ में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई में बनी सरकार ने प्रदेश सहित कोरबा जिले के भी ऐसे सैकड़ों वनवासियों के साथ वास्तविक न्याय किया है। जमीन का मालिकाना हक और किसान होने का दर्जा छत्तीसगढ़ सरकार ने इन वनवासियों को वन अधिकार पट्टे देकर पूरा किया है। इतना ही नहीं सरकार ने दूरस्थ वनांचलों में रहने वाले इन ग्रामीणों को इनकी जमीन का अधिकार देने के साथ-साथ उनकी आजीविका के लिए भी पर्याप्त इंतजाम कराए हैं। वनवासियों को रोजी-रोटी चलाने के लिए वन संसाधन पट्टे दिए गए हैं। वन संसाधन पट्टे जंगलों में आजीविका के साधनों पर वनवासियों का अधिकार सुनिश्चित कराता है। ग्रामीण वनांचलों में रहने वाले लोगों को खेती किसानी के लिए भूमि समतलीकरण, मेड़ बंधान, सौर उर्जा से चलने वाले सिंचाई पंप से लेकर खेतों की जानवरों से सुरक्षा के लिए तार फेंसिंग तक सरकार ने उपलब्ध कराए हैं। वनवासियों को विकास की मुख्य धारा से जोड़ने और उनके आय के साधनों को बढ़ाने के ये तरीके वास्तव में लंबे से उपेक्षित रहे इन भाई-बहनों के साथ वास्तविक न्याय है।
कोरबा जिले में अभी तक 52 हजार 719 विभिन्न वन अधिकार पट्टों का वितरण कर जंगलों में निवास करने वाले आदिवासी ग्रामीणों को वनभूमि का अधिकारिक मालिक बनाया गया है। इनसे लगभग 50 हजार हेक्टेयर से अधिक भूमि सीधे इन वनवासियों के मालिकाना हक में आ गई है।