The Popatlal

सच्ची खबर देंगे पोपटलाल

Chhattisgarh

अलौकि प्रतिभा के धनी थे संत शिरोमणि गोस्वामी तुलसीदास-सरोज कंसारी।

Spread the love

राजिम। सरस्वती शिशु मंदिर उच्च. माध्यमिक विद्यालय नवापारा में संत गोस्वामी तुलसीदास जयंती मनाया गया कार्यक्रम का शुभारंभ राजकीय गीत अरपा पैरी के धार ..से किया गया। इस अवसर पर शिक्षिका सरोज कंसारी ने उनकी जीवनी पर प्रकाश डालते हुए कहा कि भक्ति से असीम शक्ति मिलती हैं जिससे आत्मा परमात्मा में लीन हो जाती हैं जब सांसरिक मोहमाया से विरक्त हो मनुष्य ईश्वर के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित हो जाता हैं तब उसका मन पूरी तरह पावन हो जाता हैं मनुज जन्म लेकर जो शुद्ध हृदय हो जाता हैं निश्चित ही उसे मोक्ष की प्राप्ति होती हैं ईश्वर के प्रति सच्ची श्रद्धा भक्ति ही वर्तमान की भौतिक आडंबर से दूर हमें एक शांत वातावरण प्रदान करती हैं ।सब कुछ हैं हमारे पास और मन अशांत तो जीवन व्यर्थ है अगर हाड़ मांस से बने पुतले इस माटी के तन पर हम घमंड करते हैं तो यह हमारी मूर्खता हैं जीवन है तो उसका कोई उद्देश्य हो कोई भी अंत तक किसी के साथ नही होता सब एक समय के बाद आपका साथ छोड़ ही देंगे क्योकि विधाता के नियम अटल हैं आये है इस जग में तो जाना है खाली हाथ आये है खाली हाथ जायेंगे शायद ये है पूर्ण सत्य नही है हम अपने साथ कर्म लेकर जायेंगे तो क्यूं न बटोरते चले दया,धर्म,स्नेह, प्रेम,क्षमा अपनत्व करुणा और सहयोग कहते है जबभक्त की भक्ति उच्च शिखर पर पहुँच जाती हैं तो भगवान उनसे मिलने स्वयं आते हैं हमारी यह धरा बहुत ही पवित्र विभूतियों से भरी हुई हैं जैसे बालक ध्रुव ,मीरा बाई ,प्रह्लाद जैसे कई और महान आत्मा है ऐसे ही एक भक्त गोस्वामी तुलसीदास जी हैं कहा जाता हैं कि वेअलौकिक प्रतिभा के धनी थे ।उनका जन्म सावन शुक्ल सप्तमी की तिथि को संवत 1511 में राजापुर जिला बाँदा (वर्तमान चित्रकूट में हुआ ।इनके जन्म और स्थान कुछ विवादित है,उनके पिता का नाम आत्माराम और माता हुलसी थी मूल नक्षत्र में जन्म होने के साथ ही बारह महीने में जन्म लेने के कारण वे जन्म लेते ही हष्ट-पुष्ट थे जन्म लेने के बाद ही उनके मुख से राम निकला तब नाम रामबोला पड़ा दूसरे दिन ही माता का निधन हो गया किसी अनिष्ट की आशंका से पिता ने भी उनके पालन-पोषण की जिम्मेदारी चुनिया नाम की दासी को दिया।जब वे चार वर्ष के थे तब वह दासी भी चल बसी तुलसीदास ऐसे ही भटकते रहे कहते है भगवान शंकर जी की प्रेरणा से गुरु नरहरि दास ने बालक को ढूंढ निकाला और अपने साथ अयोध्या ले गये उनका विधिवत संस्कार कराया उन्हें राममंत्र की शिक्षा दी उनकी बुद्धि तेज थी, एक बार जो गुरु के मुख से सुन लेता कंठस्थ हो जाता 29 वर्ष की अवस्था मे रत्नावली से विवाह हुआ। पत्नी प्रेम में रामभक्ति से विमुख होता देख उन्हें रत्नावली ने फटकार लगाई कहा जितना प्रेम मुझसे करते हो अगर उतना ही ईश्वर से करते तो बेड़ापार हो जाता उनकी बातों से वो बहुत व्यथित हुए और उन्हें मायके में छोड़ वापस अपने गाँव आ गये फिर कई साधु-संतों से मिले और छंद-व्याकरण का ज्ञान प्राप्त किये और चित्रकूट में जाकर रहने लगे श्रीराम से मिलने व्याकुल हो गए एक दिन उनकी साधना से प्रसन्न हो श्रीराम उन्हें चंदन लगाने स्वयं आये संवत 1680 में उनका देहावसान हो गया।कक्षा द्वादश के भैया बहिन हिना देवांगन ने भक्तिपूर्ण भजन तू ही माता… ईशु कंसारी चोला माटी के हे राम और अमन मेहता ने अपने विचार रखे ।विद्यालय के प्राचार्य नरेश यादव ने सभी को तुलसीदास जयंती की शुभकामनाएं देते हुए राम केवट मिलन के प्रसंग को चौपाई व सोरठा के माध्यम से बताये। कार्यक्रम का संचालन रेणु कुमार निर्मलकर ने किया।इस कार्यक्रम में कृष्णकुमार वर्मा, नरेंद्र साहू नारायण पटेल, संजय सोनी नंदकुमार साहू तामेश्वर साहू,धनेश्वरी साहू,मोनिका मालवीय, निकिता यादव उपस्थित रहें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *