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देवी रमई पाठ में रविवार को रही श्रद्धालुओं की भीड़,देवी रमई पाठ की मां सीता रूप में होती है पूजन

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”संतोष सोनकर की रिपोर्ट”


राजिम । रविवार को छुट्टी का दिन होने के कारण बड़ी संख्या में श्रद्धालु देवी रमई पाठ के दर्शन करने के लिए उपस्थित हुए सुबह से लेकर देर शाम तक सैकड़ों की संख्या में श्रद्धालु अपनी अपनी सुविधा अनुसार कार, बाइक एवं छोटा हाथी से आते रहे तथा देवी मां के दर्शन कर भाव विभोर हो गए। राजिम से पहुंचे श्रद्धालु रामगुलाल साहू ने बताया कि मां की महिमा निराली है यहां जो कोई भी श्रद्धालु आते हैं उनकी मनोकामना अवश्य पूर्ण होते हैं बशर्ते सच्ची श्रद्धा होनी चाहिए वह माता के ऊपर चुनरी चढ़ाने आए हुए थे। गादी माई पर चुनरी चढ़ाकर अपने भाग्य की सराहना करते रहे। इसी तरह से कवर्धा से पहुंचे श्रद्धालुओं ने माता के दर्शन किए तथा बगरम पाठ पर रखी गई संकल पर चर्चा करते रहे। तब पुजारी साखाराम भुंजिया ने बताया कि संकल माता की झूलना है। जो कोई भी भक्तगण यहां आकर मां रमई पाठ से मनोकामना पूर्ति की याचना करते हैं जब उनकी मनौती पूर्ण हो जाती है तब वह लोहे का सांकल चढ़ा जाते हैं। बताया जाता है कि त्रेता युग में सीता मैया इसी वन में आकर गर्भावस्था के दौरान ठहरे हुए थे तब उनकी रक्षा के लिए हनुमान उपस्थित हुए थे वह पाताल लोक की देवी के रूप में यहां पर आकर माता की देखरेख किया था इसलिए करीब 6 फीट ऊंची हनुमान की विशाल प्रतिमा है। किंवदंती है कि एक किसान का बच्चा कहीं गुम गया था उन्हें ढूंढने के लिए लोग इधर-उधर पूरे जंगल को खोजते रहे। अंततः गांव के लोग इसी स्थल पर आ गए और इन मूर्तियों को देखकर वह आश्चर्यचकित हो गए। यह सभी मूर्ति बीच जंगल में ऐसे दिख रहे थे जैसे इसे कोई प्रतिदिन साफ करता हो। प्रतिमा को देखकर लोगों ने मां के सामने बालक को मिलाने की याचना की। कुछ ही समय बाद वह बालक देवी रमई पाठ की कृपा से मिल गया। इससे गांव वाले प्रसन्न हो गए और इस तरह से मां की महिमा का गुणगान करते रहे धीरे-धीरे माता का यह स्थल प्रसिद्ध होता गया। यहां अनेक मंदिर है जहां देवी देवता विराजमान हैं इस रमणीय स्थल पर हर कोई आना चाहता है। नवरात्र के दोनों पक्ष पर मेला जैसा माहौल रहता है मनोकामना ज्योति कलश प्रचलित होते हैं तथा मां की सेवा गीत प्रतिदिन होता है। पूरे साल भर सुबह-शाम दो बार पूजन आरती होते हैं। राजिम से 25 किलोमीटर की दूरी पर फिंगेश्वर होते हुए बोरिद के पश्चात सोरिद गांव से लगा हुआ है। यहां पहुंचने के लिए प्राइवेट वाहन जरूरी है क्योंकि बस सेवा समय-समय पर ही मिल पाती है। मां रमई पाठ आज भी खदर की झोपड़ी पर विराजमान है। यहां भगवान विष्णु के चतुर्भुजी मूर्ति के अलावा गरुड़, नरसिंह भगवान, महादेव का शिवलिंग, काल भैरव इत्यादि अनेक मंदिर है। वृक्षों का झुरमुट अत्यंत रमणीय है। बाहर से आए हुए श्रद्धालु बड़ी-बड़ी पत्थरों के बीच से होकर अपने परिवार से ही फोटो खींच आते रहे मोबाइल से सेल्फी लेकर गदगद हो गए।

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