महिलाएं हलषष्ठी व्रत नियम का किया पालन,सगरी में जल डालकर किया पुत्र की मंगलकामना
राजिम । अंचल में महिला प्रधान व्रत कमरछठ धूमधाम के साथ मनाया गया। सुबह से ही महिलाएं तैयारियों में जुट गई थी। शनिवार को षष्ठी पर सुबह से ही उठ गई थी और आधुनिक चकाचौंध से बिल्कुल दूर ब्रश टूथपेस्ट एवं जीबी से दूर इन्होंने मोहे के दातुन किए। और इन्हीं से ही दांत मुंह साफ किए। तथा हलचली हुई जमीन पर इन्होंने नहीं चली। धर्मग्रंथों के अनुसार इस दिन हलधर बलराम का जन्म हुआ था तथा राजा जनक की पुत्री सीता का जन्म हल के स्पर्श से हुआ इसलिए आज भी परंपरा है कि हलचल चलाई हुई खेत में व्रती महिलाएं नहीं जातीं। दोना पत्तल को पात्र के रूप में उपयोग किया गया। धान को आग में सेककर लाई बनाया गया तथा सात प्रकार के अन्न गेहूं चना,लाई, ज्वार, बाजरा, मसूर एवं मौहे को सगरी में समर्पित किया गया।
गोलाकार होते हैं सगरी
सकरी बनाने की परंपरा कमरछठ में वर्षों से चली आ रही है इस में जल डालने का मतलब उमा महेश्वर को प्रसन्न करना है। व्रती महिलाएं एक तरफ से शिव पार्वती का जल डालकर अभिषेक कर लेती है। मिट्टी के इस सगरी के गोलाकार बेर गुलर पलास, काशी, कुश की टहनियों को गढ़ाकर सुसज्जित किया गया जिससे इनकी आभा देखते ही बन रही थी महिलाएं श्रद्धा के साथ जल डालकर नारियल चढ़ा पूजा अर्चना किए तथा अपने बच्चों को पोती से स्पर्श कर मंगल कामना की याचना की गई। पूजा स्थल से आने के बाद पसहर चावल का प्रसाद सबसे पहले गाय, चिड़िया, चूहा, कुत्ता, बिल्ली के लिए रखा गया उसके बाद ही व्रती माताएं व्रत का पारणा किया। एक जगह चौक चौराहे पर बैठकर माताएं विद्वान पंडितों के श्रीमुख से कमरछठ व्रत की कथा का श्रवण पान किया। पांच अध्याय में कथा को सुनाया गया। पंडित गुलाब शर्मा ने बताया कि एक ग्वालिन जिनके 4 पुत्र थे उनको घर में छोड़कर वह अकेली दूध बेचने के लिए नगर में निकल पड़ी। गाय का दूध उन्होंने खूब बेचा और वापस आकर देखा तो उनके चारों पुत्र मरे हुए पड़े थे तभी उनको ख्याल आया कि आज कमरछठ है तथा इस दिन गाय का दूध वर्जित है वह पश्चाताप करने लगी। ग्वालिन तत्काल भैंस का दूध देने के लिए चल पड़ी। गाय का दूध वापस लेकर भैंस का दूध थमाया। इस तरह वापस घर आकर देखा तो उनके चारों पुत्र उन्हें जीवित मिले। इस व्रत को अलग-अलग क्षेत्रों व राज्यों में अलग अलग नाम से संबोधित किया जाता है। इनके नाम कमरछठ, हलषष्ठी, ललही छठ और ललिता व्रत है।