दो साल के बाद महाप्रभु एक जुलाई को करेंगे रथयात्रा,इस बार रथ खींचने के लिए भक्तगण हो रहे उतावला
”संतोष सोनकर की रिपोर्ट”
राजिम । इस बार महाप्रभु जगन्नाथ का जगदीश रथयात्रा 1 जुलाई दिन शुक्रवार को है। पिछले 2 वर्षों से कोरोना काल के कारण भगवान यात्रा नहीं कर पाए परंतु इस बार अपने भक्तों के बीच जाकर स्वयं दर्शन देंगे। बताना होगा कि प्रयागराज राजिम में रथयात्रा की धूम रहती है। भगवान का रथ लकड़ी से बना होता है जिसे भक्तगण खींच कर पूरे शहर का दर्शन कराते हैं। इस दौरान महाप्रभु के जयकारा होती है कथा गजामूंग का प्रसाद खा कर लोग अपने आप को पुण्य के प्रतिभागी मानते हैं। इस पर्व में भगवान जगन्नाथ चलकर जनता के बीच आते हैं और उनके सुख-दुख के सहभागी बनते हैं। पुजारी रामसेवक दास वैष्णव ने बताया कि नवमी तिथि को भगवान महाप्रभु जगन्नाथ, बलभद्र एवं सुभद्रा को आसन से उतारा जाएगा तथा गंगाजल से स्नान होगा पश्चात लगातार प्रतिदिन काढ़ा पिलाया जाएगा। इस दौरान सुबह 7:00 बजे बाल भोग के साथ आरती के साथ लाई एवं काढ़ा का भोग लगता है। एकादशी को सिहासन से उतारकर सर्वस्नान तथा सर्वभिषेक करने के उपरांत काढ़ा खिचड़ी एवं नव व्यंजनों के प्रसाद चढ़ाएंगे इसके बाद आषाढ़ के एकम तिथि को भगवान का सर्व श्रृंगार करके प्राण पूजा करने के साथ-साथ आम, जामुन, गजामूंग,चना, दही, दूध आदि का भोग लगेगा। रथयात्रा के दिन भगवान प्रसाद ग्रहण कर बलभद्र एवं सुभद्रा के साथ रथ में सवार होकर जनकपुर के लिए प्रस्थान करेंगे। उल्लेखनीय है कि राजीवलोचन मंदिर के प्राकार के उत्तरी पश्चिमी कोने पर बने नरसिंह मंदिर के उत्तरी बाजू प्राकोष्ठ से बाहर भगवान जगन्नाथ का मंदिर स्थापित है जो एक जगती तल पर बनाया गया है पूर्वाभिमुख देवालय के अंग है भू-विन्यास योजना में प्रमुख चार अंग है। आठ स्तंभ पर महामंडप टिका हुआ है अंतराल लिए हुए गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ स्वामी, सुभद्रा और बलभद्र की मूर्तियां विराजमान है प्रदक्षिणा पथ में राम, लक्ष्मण एवं माता सीता की प्रतिमा स्थापित है। इसका निर्माण राजीवलोचन मंदिर के समकालीन माना गया है। भगवान जगन्नाथ मंदिर के ठीक सामने दक्षिणमुखी संकट मोचन हनुमान जी का मंदिर है जिसमें श्रद्धालुओं की अगाध श्रद्धा है।
पुरी और राजिम में समानता
जिस तरह से पुरी के जगन्नाथ भगवान में दाल चावल एवं पीडिया का भोग प्रसाद चढ़ाया जाता है उसी प्रकार राजिम के भगवान राजीवलोचन मंदिर में भी भोग लगाने की परंपरा है। भगवान जगन्नाथ के दर्शन पश्चात राजीवलोचन का दर्शन अनिवार्य माना जाता है। छत्तीसगढ़ और उड़ीसा का धार्मिक एवं सांस्कृतिक संबंध एक जैसा ही है रथयात्रा इन्हीं में से एक है। आषाढ़ शुक्ल द्वितीया को छत्तीसगढ़ के हर गांव शहर में उत्साह के साथ भक्तिभाव पूर्ण माहौल में यह पर्व मनाया जाता है। इनमें राजिम का रथयात्रा खास आकर्षण का केंद्र होते हैं।