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गरबा उत्सव को भारतीय संस्कृति और सनातन मूल्यों के अनुरूप मर्यादा व भक्ति से मनाएँ :धर्म स्तंभ काउंसिल

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रायपुर। चतुः वर्णार्थ धर्म स्तंभ काउंसिल ने आगामी नवरात्रि और गरबा महोत्सव के अवसर पर युवाओं और आयोजकों से अपील की है कि वे इस उत्सव को केवल नृत्य और मनोरंजन के रूप में न देखें, बल्कि इसे भारतीय संस्कृति, माँ दुर्गा की भक्ति और सामूहिक सामाजिक समरसता के उत्सव के रूप में मनाएँ।
धर्म स्तंभ काउंसिल के सदस्यों ने बैठक के बाद एडवाइसरी जारी करते हुए कहा है कि भारतीय परंपरा में हर उत्सव का आधार धर्म, मर्यादा और लोकमंगल रहा है। गरबा केवल नृत्य नहीं है, यह ‘गर्भ-दीप’ का प्रतीक है, जिसमें माँ शक्ति के सृजन और पालन की आराधना होती है। यह उत्सव हमें यह स्मरण कराता है कि “जहाँ धर्म है, वहाँ आनंद है, और जहाँ आनंद है, वहाँ समाज में एकता और समरसता है।”
धर्म स्तंभ काउंसिल राम जानकी मंदिर के महंत सुरेंद्र दास और डॉ सौरव निर्वाणी ने युवाओं के लिए निर्देश जारी किया कि ,गरबा में भाग लेते समय शालीन परिधान, मर्यादित आचरण और भक्तिभाव रखें।नवरात्रि का मूल भाव “आत्मसंयम और साधना” है, इसलिए नशा, अशोभनीय नृत्य और अभद्र भाषा से पूर्णतः दूर रहें।
गरबा नृत्य के दौरान मोबाइल और सोशल मीडिया का उपयोग संस्कृति की गरिमा बढ़ाने हेतु करें, न कि उसका ह्रास करने के लिए।
आए हुए बुज़ुर्गों और महिलाओं का सम्मान करते हुए भारतीय संस्कारों का पालन करें।वहीं गरबा महोत्सव में भाग लेने अपने पुत्रियों को भेज रहे अभिभावक भी बेटियों के परिधानों को संस्कृति के अनुरूप ही सुसंस्कारित लगे इसका विशेष ध्यान देने को कहा है..
वहीं गरबा पंडाल के आयोजकों के लिए धर्म स्तंभ कौंसिल ने अपने निर्देशिका में उल्लेख किया है कि
आयोजन स्थल को देवी मंदिर की भांति पवित्र और भक्तिपूर्ण बनाएँ।मंच से केवल धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक समरसता के संदेश प्रसारित हों, राजनीति से परहेज रखें।महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा व सुविधा को सर्वोच्च प्राथमिकता दें आयोजन में स्वच्छता ,आयोजन स्थल में वाहनों के समुचित रखाव जिससे की आम सड़क बाधित ना हो , पर्यावरण संरक्षण और समाज की भागीदारी को प्रोत्साहित करें और पारंपरिक वाद्य और भजनों को महत्व देकर उत्सव को भारतीयता और आध्यात्मिकता से जोड़ें.
धर्म स्तंभ काउंसिल का मानना है कि आज के युवा यदि गरबा को केवल नृत्य नहीं, बल्कि माँ दुर्गा की उपासना और भारतीय मूल्यों का पर्व मानें, तो यह उत्सव आने वाली पीढ़ियों के लिए संस्कृति और संस्कार का प्रेरणास्रोत बनेगा।
धर्म स्तंभ काउंसिल के सभापति डॉ सौरव निर्वाणी ने
“गरबा उत्सव को भक्ति, मर्यादा और संस्कृति का संगम बताते हुए कहा कि भारतीय संस्कारों की छाया में ही उत्सव का वास्तविक सौंदर्य ,आनंद और गरिमा है।”इसका अनुपालन समाज की जिम्मेदारी है

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