पारा चढ़ते ही देसी फ्रिज मटका बाजार में दिखा
राजिम । अंचल में गर्मी अपनी विकराल रूप दिखाना शुरू कर दिए हैं सुबह 7:00 बजे से ही सूर्य की तेज किरणें धरती पर पड़ रही है। 10:00 बजे के बाद तेज तपिस का एहसास होने लगा है वैसे भी गर्मी अब अधिकतम 39 अंश सेल्सियस तक पहुंच गया है। सुबह से ही पंखे कूलर का उपयोग होने लगे हैं रात में तो बिना पंखे के लोग सो नहीं पा रहे हैं। ऐसे में ठंडे पानी के लिए जगह जगह पियाऊ सेंटर भी खुलते जा रहे हैं। शहर के पंडित सुंदरलाल शर्मा चौक में पिछले एक सप्ताह से देसी फ्रिज मटका की दुकान सज रही है। यहां छोटे-बड़े दोनों आकार के मटका रखी गई है। चर्चा के दौरान विक्रेता ने बताया कि 120 रू मूल्य में बड़ी मटका बेच रहे हैं तथा छोटी उनके आकार के आधार पर रेट तय किया गया है। उल्लेखनीय है कि मिट्टी के बने इस देसी फ्रिज को चाक से बनाया जाता है इसमें चिकनाहट एवं उनके आकार गर्दन की तरह होती है। मजबूती के नाम पर नाजुक होते हैं। तनिक भी चोट लगी तो टूटने का डर बना रहता है परंतु इसमें रखी पानी बिना कोई पावर आन के ठंडा रहता है और इन्हें पीने से मिठास भी लगती है। गरीब से लेकर अमीर वर्ग के लोग भी अधिकतर इनका उपयोग करते हैं सरकारी कार्यालय से लेकर प्राइवेट संस्थानों में भी मटका में पानी रखा जाता है। शहर में कुंभकार बड़ी संख्या में मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं वैसे कोरोना काल में इन्हें टोटल नुकसान उठाना पड़ा था लेकिन अब धीरे धीरे स्थिति सुधर रही है। ज्ञातव्य हो कि इन्हें देसी फ्रिज के नाम से लोग संबोधित करते हैं। बताना होगा कि फ्रिज खरीदने के लिए मोटी रकम देना पड़ता है तथा इन्हें चलाने के लिए बिजली का उपयोग किया जाता है। तब कहीं पानी ठंडा होता है इनके अलावा आजकल आरो मशीन से साफ पानी पीने का भी चलन तेजी से बढ़ता जा रहा है। बावजूद इसके मटका की डिमांड कम नहीं हुई है। आज भी शौक से लोग इन्हें खरीद कर अपने घर ले जाते हैं और शीतल पर पीने का लाभ लेते हैं।