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वह सुख त्याग दे जिससे किसी को कष्ट मिले: पंडित देवेंद्र तिवारी

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“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम। शहर के वार्ड क्रमांक 15 नवाडीह में शुरू श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह के प्रथम दिन लोहरसी से पहुंचे भागवताचार्य पंडित देवेंद्र तिवारी ने कहा कि उस सुख का त्याग कर देना चाहिए जिससे दूसरों को कष्ट मिले। धर्म के रास्ते पर संदेह नहीं होना चाहिए। कर्म का फल अवश्य मिलता है इसके लिए उचित समय की आवश्यकता होती है। समय से पहले और भाग्य से ज्यादा किसी को नहीं मिलता। घमंड मनुष्य को गर्त में ले जाता है। सभी से प्रेम व्यवहार करें। कब किसे पता के किस का भाग्य का उदय हो जाए और जिनको हम निम्न समझ रहे थे वह उच्च हो जाए, इसलिए सभी से बराबर का सम्मान भाव रखें। ईश्वर ने सबको जन्म दिया है और प्रकृति के सारे उपहार बराबर मात्रा में दिया है सबको धरती, अकाश, हवा, पानी, अग्नि प्रदान किया है तो फिर छोटा बड़ा का भेद किसलिए। उन्होंने राजा परीक्षित की कथा पर कहा कि शमीक ऋषि ध्यानमग्न थे। आखेट के दरमियां राजा परीक्षित घूमते हुए श्रृंगी ऋषि के आश्रम में पहुंचे। वह प्यासे थे शमीक ऋषि को देखकर पानी की मांग करने लगे पर वह सचमुच में ध्यानस्थ थे। महाराज परीक्षित सोने का मुकुट पहन लिया था और सोने पर कलयुग अपना प्रभाव छोड़ते हैं। राजा परीक्षित ने खुद कलयुग को पांच जगह प्रदान कर दिया था जिनमें जुआ, मदिरालय, हिंसा, वेश्यालय और स्वर्ण है। स्वर्ण मुकुट पहने होने के कारण राजन का दिमाग फिर गया और उन्होंने एक मरे हुए सर्प को अपने तीर के नोक से उठाकर ढोंग रच रहा है ऐसा मानकर उनके गले पर डाल दिया और वहां से चला गया। कुछ समय बाद उनके पुत्र श्रृंगी ऋषि पहुंचे वह यह दृश्य देखकर क्रोधित हो गए और राजा परीक्षित को श्राप दे दिया। उन्होंने कमंडल से जल निकाला और कहा कि जिन्होंने भी मेरे पिता के गले पर मरे हुए सर्प को डाला है वह आज से सातवें दिन तक्षक नाग के डसने पर मृत्यु को प्राप्त करेगा। जैसे ही शमीक ऋषि ध्यान से जगे और उन्हें पता चला तो उन्हें बहुत दुख हुआ और कहा कि राजा परीक्षित धर्म के मूर्ति है उनके राज्य में सभी लोग खुश हैं उनको श्राप नहीं देना था। ऋषि के माध्यम से राजा परीक्षित को जानकारी हुई लेकिन वह विस्मित नहीं हुआ और प्रसन्न होते हुए अपने पुत्र जन्मेजय को बुलाकर राजपाट सौप दिया और ऋषियों के शरण में चले गए। उन्होंने भागवत कथा सुनने की सलाह दी और लगातार सात दिनों तक कथा सुनने के बाद उन्हें मृत्यु का भय नहीं रहा। पंडित तिवारी ने आगे बताया कि भागवत कथा मृत्यु के भय को दूर करती है। यह साक्षात मोक्ष का द्वार है जब भी जीव को यह पावन अवसर मिले समय का सदुपयोग करते हुए ध्यान रखना होकर कथा का श्रवण पान करना चाहिए। भागवत कथा सुनना भक्ति को दर्शाता है। उन्होंने आगे बताया कि भूल कर भी किसी दूसरे के भोजन को छीनकर नहीं खाना चाहिए इससे दोष लगता है। इस मौके पर गायक धर्मेंद्र ने शानदार भजन प्रस्तुत किया उन्होंने कथा के अनुसार को लगातार भजनों का आगाज किया इन्हें सुनकर भक्तगण रमते रहे। अन्य कलाकारों में संतुराम साहू, लोकेश साहू, तेज कुमार, अजय कुमार प्रमुख है। इस अवसर पर गोविंद साहू, अनुसुइया साहू, मोना साहू, ईश्वर साहू सहित बड़ी संख्या में ग्रामवासी उपस्थित होकर कथा रस का पान कर रहे हैं।

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