भारतीय जनता पार्टी के 42 स्थापना दिवस की हार्दिक,शुभकामनाएं: अनिल कुमार
“प्रयास कैयर्त की रिपोर्ट”
THEPOPATLAL वास्तव में भाजपा वालों की असली सोच जानने के लिए हमें 1951 से 1977 तक ‘भारतीय जनसंघ’ के नाम से जाने जानी वाली भारतीय जनता पार्टी के जन्मदाता “जनसंघ” की सोच को देखना पड़ेगा जिसकी स्थापना ही राष्ट्रीय हितों तथा देश की अखण्डता-एकता एवं नागरिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए हुई थी।
स्वतंत्रता तथा देश के विभाजन के साथ ही देश में एक नई राजनीतिक स्थिति उत्पन्न हुई।गांधी और पटेल दोनों की मृत्यु के बाद कांग्रेस ‘नेहरूवाद’ की चपेट में आ गई तथा राष्ट्रीय हितों को ताक पर रखकर पूरे देश में एकध्रुवीय राजनीतिक तानाशाही के युग का आरम्भ हो गया। जिससे क्षुब्ध होकर डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया।
इधर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक भी ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रीय हितों की सुरक्षा के लिए देश में एक राष्ट्रवादी राजनीतिक दल की आवश्यकता महसूस कर रहे थे ताकि राष्ट्रीय हितों के लिए भारतीय संसद तक राजनीतिक लड़ाई भी की जा सके।
फलतः राष्ट्रवादी नागरिकों के सहयोग से भारतीय जनसंघ की स्थापना 21 अक्टूबर 1951 को डाॅ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की अध्यक्षता में राघोमल आर्य कन्या उच्च विद्यालय, दिल्ली में हुई।
जनसंघ ने स्थापना के तत्काल बाद से ही देश में अंधाधुँध हो रही राजनीतिक अल्पसंख्यक तुष्टिकरण, पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में हिन्दू अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार पर भारत के चुप रहने, लाइसेंस-परमिट-कोटा राज, राष्ट्रीय सुरक्षा पर लापरवाही, राष्ट्रीय मसलों जैसे कश्मीर एवं राष्ट्रीय अखण्डता आदि पर घुटना टेक नीति, अंतर्राष्ट्रीय मामलों में भारतीय हितों की अनदेखी आदि अनेक विषयों पर देश में राष्ट्रवादी नागरिकों को साथ लेकर सरकार के विरूद्ध मैदान में कूद पड़ी।
जनसंघ ने ‘‘ राष्ट्रदेवो भवः ’’ को आदर्श वाक्य के रूप में आत्मसात करते हुए भगवा घ्वज और दीपक चुनाव चिन्ह को अपनाया। जनसंघ के सभी प्रमुख कर्णधार राष्ट्रवादी राजनीति को प्रतिबद्ध थे।
जनसंघ के संविधान और प्रथम घोषणापत्र की आत्मा केवल राष्ट्रवाद थी, जिसमें ‘‘समान नागरिक संहिता लागू करने, धारा-370 को हटाने और राष्ट्रीय हितों के लिए सर्वस्व त्याग का संकल्प विपरीत परिस्थितयों में भी एक प्राणवायु की तरह था।
पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जनसंघ में 1952 में सम्मिलित हुए एवं 1967 में पार्टी का अध्यक्ष बनने तक महासचिव के पद पर नियुक्त रहे। वह भारतीय जनसंघ के चरमोत्कर्ष पर पहुँचने का दौर था। संघ के द्वितीय सर संघचालक परम पूज्य श्रीमाधव सदाशिव गोलवलकर ‘‘गुरूजी’’ का जनसंघ को खुला आशीर्वाद व समर्थन मिला और संघ कार्यकर्ताओं ने पार्टी को देशव्यापी मजबूती प्रदान करनेे में अपनी पूरी ताकत झोंक दी। संसद में जनसंघ के प्रतिनिधि पूरी कांग्रेस पर भारी पड़ने लगे थे और देशहित के मुद्दों पर एकध्रुवीय सरकार की बोलती बन्द कर दी थी।
सांप्रदायिक सौहार्द, पुर्तगालियों से गोवा मुक्ति, गौरक्षा आन्दोलन, श्रीराम जन्मभूमि, काशी एवं मथुरा के मन्दिरों के निर्माण जैसे राष्ट्रीय स्वाभिमान के मुद्दों पर पं.नेहरू एवं उनके उत्तराधिकारियों को पहली बार सुरक्षात्मक रुख अपनाना पड़ा था। उन दिनों जनसंघ की भारतीयकरण की अवधारणा का केवल भरतीय ही नहीं बल्कि विश्व जनमानस पर भी अभूतपूर्व प्रभाव हुआ,जो आज भी प्रासंगिक है।
वास्तव में उन्हीं डा.श्यामाप्रसाद मुखर्जी के महान विचारों, संघ का राष्ट्रवाद एवं पंडित दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन, एकात्म मानववाद को भारतीय जनता पार्टी आज तक अपनी विचारधारा की नींव बनाकर चल रही है एवं उन्हीं महापुरूषों के सपनों का भारत यानी एक सुदृढ़, सशक्त, समृद्ध, समर्थ एवं स्वावलम्बी भारत के निर्माण के लिए निरंतर सक्रिय है।
इस पार्टी की कल्पना एक ऐसे राष्ट्र की है जो आधुनिक दृष्टिकोण से युक्त एक प्रगतिशील एवं प्रबुद्ध समाज का प्रतिनिधित्व करती हो तथा प्राचीन भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति तथा उसके मूल्यों से प्रेरणा लेते हुए महान ‘विश्वशक्ति‘ एवं ‘विश्व गुरू’ के रूप में विश्व पटल पर स्थापित हो। इसके साथ ही विश्व शांति तथा न्याययुक्त अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को स्थापित करने के लिए विश्व के राष्ट्रों को प्रभावित करने की क्षमता रखे।
भाजपा भारतीय संविधान में निहित मूल्यों तथा सिद्धांतों के प्रति निष्ठापूर्वक कार्य करते हुए लोकतांत्रिक व्यवस्था पर आधारित राज्य को अपना आधार मानती है।
पार्टी का लक्ष्य एक ऐसे लोकतंत्रीय राज्य की स्थापना करना है जिसमें जाति, सम्प्रदाय अथवा लिंग भेद-भाव किए बिना सभी नागरिकों को राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक न्याय, समान अवसर तथा धार्मिक विश्वास एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सुनिश्चित हो। भाजपा के अनुसार मानव की केवल स्वयं की व्यक्तिगत पहचान पर्याप्त नहीं है। शरीर, बुध्दि, तथा आत्मा केवल ”मैं” के अन्तर्गत नहीं आता वरन् उसका अस्तित्व “हम सभी” में ही निहित है। अत: हमें स्वयं से पहले समूह और समाज के बारे में भी सोचना चाहिए।
भाजपा देश की दिशा के बारे में क्या सोचती है..??
आज राष्ट्र चौराहे पर खड़ा है। कुछ लोगों का सुझाव है कि हमें वहां से शुरु होना चाहिए जहाँ हमने एक हजार वर्षों पहले छोड़ा था परन्तु भाजपा के अनुसार राष्ट्र कपड़ा मात्र नहीं है जिसे समय के अंतराल में बदलकर पहन लिया जाए बल्कि बदलते हुए परिवेश में आ रही चुनौतियों का सामना करने के लिए हमें राष्ट्रहित में संघर्ष एवं देश की एकता एवं अखण्डता पर हमला करने वाले नए गिरोहों को कुचलकर राष्ट्रवादी शक्तियों को प्रोत्साहन देना है, और जल्द से जल्द विकास की सीढ़ियाँ चढ़कर विश्व के अन्य विकासशील राष्ट्रों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर अपने पैरों पर खड़ा होना है।
भारतीय जनता पार्टी अंत्योदय, सुशासन, सांस्कृतिक राष्ट्रवाद, विकास एवं सुरक्षा पर भी विशेष रूप से सक्रिय है।
इस पार्टी ने पांच प्रमुख सिद्धांतों के प्रति भी अपनी निष्ठा व्यक्त की जिन्हें ‘पंचनिष्ठा’ कहते हैं। ये पांच सिद्धांत हैं- राष्ट्रवाद एवं राष्ट्रीय अखंडता, लोकतंत्र, सकारात्मक धर्म-निरपेक्षता, गांधीवादी समाजवाद अर्थात सामाजिक-आर्थिक विषयों पर शोषण मुक्त समरस समाज की स्थापना तथा मूल्य-आधारित राजनीति।
भाजपा के अनुसार रोटी, कपड़ा, मकान और शिक्षा जैसी आवश्यकताएँ हर व्यक्ति के लिए आवश्यक हैं। यदि कोई सरकार इन न्यूनतम आवश्यकताओं को पूर्ण करती है तो उसे हम धर्म का राज कहेंगे अन्यथा उसे अधर्म राज्य कहा जाएगा।
भाजपा के अनुसार राष्ट्र क्या है ?
जनता के सामने लक्ष्य का स्रोत राष्ट्र ही है। जब जनसमूह एक लक्ष्य और एक आदर्श के सामने नतमस्तक हो जाता है और एक विशेष भू-भाग को मातृभूमि मानने लगता है तो ऐसे समूह को हम एक राष्ट्र की संज्ञा दे सकते हैं। शरीर में एक ”आत्मा” है जो किसी भी व्यक्ति की चिति शक्ति की तरह है। यह शक्ति ही उसकी प्राणशक्ति है जिसके बिना जीवन का कोई अस्तित्व नहीं है।
क्या भाजपा हिन्दुओं की पार्टी है..??
कुछ लोग भाजपा को हिन्दू पार्टी मानते हैं।लेकिन भाजपा वास्तव में देश के उन सभी नागरिकों को हिन्दू मानती है जो इस देश की सभ्यता, संस्कृति और वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को अपना मानते हैं, सम्मान करते हैं एवं राष्ट्र को ही सर्वोपरि रखते हैं। भाजपा के इस वर्ग में सभी मजहबों के लोग आते हैं। अत: भाजपा विशुद्ध स्वदेशी विचारधारा वाली पार्टी है।
इसके अलावा भाजपा की सोच में विभिन्न समुदायों के अधिकारों, हितों का अतिक्रमण किए बग़ैर राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने की महान कार्यनीति है जो इस पार्टी को बिल्कुल भी पंथिक या साम्प्रदायिक नहीं बनाती
भाजपा वालों का नारा है ‘‘सबका साथ, सबका विकास’’ अर्थात हम गरीबों का धर्म देखे बिना उनकी हर सम्भव मदद करेंगे। भाजपा जातिगत भेदभाव एवं लिंगभेद के शिकार लोगों के लिए न्याय सुनिश्चित करवाने को मूलभूत रूप प्रतिबद्ध है।”
विभिन्न वादों ने सम्पूर्ण विश्व के राष्ट्रों को प्रभावित किया जिसमें राष्ट्रवाद, प्रजातंत्र तथा समाजवाद के सिद्धांत प्रमुख थे।
इनमें राष्ट्रवाद एक सबसे पुराना एवं मजबूत स्तम्भ है। और यदि इस देश में सबसे विश्वसनीय राजनीतिक दल कोई है तो वो केवल भारतीय जनता पार्टी है।राष्ट्रवादी विचारधारा भाजपा को जनसंघ से विरासत में प्राप्त हुई, जनसंघ को संघ से और संघ को भारतीय पौराणिक सांस्कृतिक परंपराओं, शास्त्रों और वेदों पुराणों से मिली जो संसार में सर्वश्रेष्ठ, सनातन और सर्वाधिक मानवतावादी है।हमें गर्व है कि आज पूरे देश में भारतीय जनता पार्टी ही एकमात्र ऐसी पार्टी है जो वोट बैंक के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा हितों से कभी समझौता नहीं करती और न कभी करेगी।