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इमाम हुसैन की शहादत से इस्लाम को मिली ऊंचाई : मौलाना शोएब

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“वैभव चौधरी की रिपोर्ट”

धमतरी। दुनिया-ए-इस्लाम में हजरत इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की बेमिसाल कुर्बानी की याद में मोहर्रम का पर्व मुस्लिम भाईयों ने बड़े अकीदत से मनाया। इस मौके पर जामा मस्जिद में अल्लामा मौलाना शोएब रजा की दस रोजा नूरानी तकरीर हुई। आशूरा के दिन विशेष नमाज अदा कर दुआ मांगी गई। विभिन्न मुस्लिम संगठन की ओर से शरबत और लंगर का एहतमाम भी किया गया। घर-घर में इमामे आली मुकाम की याद में न्याज भी दिलाई गई। मंगलवार को सुबह जामा मस्जिद में बाद नमाज फजर कुरानख्वानी हुई। दोपहर में नमाजे जौहर के बाद आशूरा की दुआ पढ़ी गई। आलिमो का कहना है कि इस दिन अल्लाहपाक अपने दस नबियों को दस बड़ी कारामातों इनायतों से नवाजा था इसलिए इसे आशूरा कहा जाता है। इसी दिन हजरत आदम अलैहिसलाम की तौबा कबूल हुई। उल्लेखनीय है कि मोहर्रम के उपलक्ष्य में अंजुमन इस्लामियां कमेटी की ओर से दस रोजा तकरीर का प्रोग्राम हुआ। इसमें मौलाना शोएब रजा ने शिरकत की। उन्होंने फरमाया कि सच्चाई और हक पर चलने का नाम हुसैन है। दीन की हिफाजत कर अपने पूरे खानदान की कुर्बानी देकर दुनिया के सामने मिसाल पेश करने वाले का नाम हुसैन है। हम अगर सच्चे हुसैनी है, तो मस्जिदों को अपने सजदों से रौशन करें। इससे हमारी दुनिया और आखरत दोनों संवर जाएगी। करबला की सरजमीं पर दुनियां की बेमिसाल कुर्बानी देने वाले हजरत इमाम हुसैन और अहैले बैत की शहादत को याद करते हुए उन्होने कहा कि वह इंसानियत और इंसाफ के पैरोकार थे। हक और सदाकत की राह में अपनी जान का नजराना पेश करने वालों का दुनिया और आखिरात में सिर बुलंद होता है। उन्होंने आगे कहा कि हजरत इमाम हुसैन की शहादत को हमेशा याद किया जाएगा। करबला के मैदान में हुई हक और बातिल की लड़ाई से इबरत लेते हुए अपने ईमान को मजबूत करें और सिराते मुस्तकीम पर चले। उन्होंने आगे कहा कि हमें हजरत इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत को याद करते हुए गैरइस्लामी अकीदों और खुराफत से बचना चाहिए। अहलेबेत से मोहब्बत ईमान के नूर को रौशन कर देता है। उन्होंने आगे कहा कि हजरत इमाम हुसैन से मोहब्बत करने वाले कभी दुनिया में मायूस नहीं होते। इस मौके पर अंजुमन इस्लामिया कमेटी के सदर हाजी नसीम अहमद, हाजी हारून उस्मान, हाजी अय्यूब, हाजी मैनुद्दीन, नजीर अहमद सिद्दीकी, दिलावर रोकडिय़ा, ताजुद्दीन खत्री, अब्दुल रज्जाक रिजवी, वसीम कुरैशी, आजम रिजवी, तनवीर उस्मान, राजू चिश्ती, अनवर सोलंकी, आदिल कुछावा, अशरफ खिलची समेत अन्य लोग बड़ी संख्या में मौजूद रहे।… और जिंदगी को करें पुरनूर जामा मस्जिद के पेश इमाम अल्लामा मुफ्ती गुलाम यजदानी ने अपनी तकरीर में फरमाया कि दुनिया-ए-इस्लाम की तारीख में करबला की जंग बेमिसाल है। हजरत इमाम हुसैन ने दुश्मनाने यजीद के सामने समर्पण करने के बजाए खुदा के सामने अपने सर की कुर्बानी दे दी। अपने लख्ते जीगर अली असगर, अली अकबर, हजरत कासिम से लेकर अपने पूरे खानदान की कुर्बानी देकर उन्होंने अपने नाना के दीन की हिफाजत की। उन्होंने आगे कहा कि हुसैनी किरदार अपनाकर ही हम अपनी जिंदगी को पुरनूर कर सकते हैं। दीन पर आने नहीं दी आंच हनफिया मस्जिद के पेश इमाम मौलाना तोहिद आलम ने बताया कि मोहर्रम महीने की दसवीं तारीख, जिसे यौमे आशूरा कहा जाता है, हजरत इमाम हुसैन की शहादत का दिन है। हक और इंसानियत का परचम उठाकर हजरत इमाम हुसैन ने दुनिया को बता दिया कि चाहे अपनी जान देना पड़े, लेकिन वे दीन पर आंच आने नहीं देंगे। उन्होंने आगे कहा कि आली मुकाम करबला में जंग जीतने नहीं बल्कि अपने आप को अल्लाह की राह में कुर्बान करने आए थे। इमाम हुसैन आज भी जिंदा हैं और यजीदियत जीतकर भी हार गई।

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