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रविवार को मूर्तिकार ने दिया दुर्गा प्रतिमा को फाइनल टच

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”संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम । मेला ग्राउंड में मूर्ति बनाने के लिए लगे पंडाल पर सुबह से लेकर देर शाम तक गहमागहमी की स्थिति रही। लोग बड़ी संख्या में उपस्थित होकर मूर्तियों के दर्शन करते रहे। यही स्थिति सोमवार को भी होने वाली है क्योंकि सोमवार अर्थात 26 सितंबर से जगत जननी मां दुर्गा की मूर्ति स्थापित की जाएगी। नगर में भी बड़ी संख्या में दुर्गा प्रतिमाओं की स्थापना होगी। इनके अलावा आसपास के गांव जिनमें चौबेबांधा, सिंधौरी, बरोंडा, श्यामनगर, सुरसाबांधा, कुरूसकेरा, तर्रा, कोपरा, धूमा, परतेवा, देवरी, लोहरसी, पथर्रा नवाडीह बकली पीतईबंद, रावड़, परसदा जोशी, पोखरा, भैंसातरा, कौंदकेरा, खूटेरी इत्यादि गांव में बड़ी संख्या में दुर्गा प्रतिमा स्थापित की जा रही है। यहां पंडाल को आकर्षक लुक दिया जा रहा है। उल्लेखनीय है कि लोकेश चक्रधारी अपने पंडाल में 25 से 30 दुर्गा प्रतिमा बनाए हैं छोटी बड़ी प्रतिमाओं की कीमत उनकी साइज के अनुसार रखी गई है। दुर्गा प्रतिमा देखने पहुंचे 70 साल के बुजुर्ग शोभाराम ने कहा कि अब मूर्तियों की कीमत बढ़ गई है हमारे जमाने में तीन से चार हजार कीमत पर अच्छी से अच्छी मूर्तियां लाया जाता था परंतु अब अच्छी मूर्तियों के लिए कम से कम फीस हजार की जरूरत होती है वर्तमान में मूर्तियां खरीदना टेढ़ी खीर हो गई है। यहां 5000 से लेकर 50000 तक की मूर्तियां बनाई गई है। रमन चक्रधारी, महेश चक्रधारी, लोकेश चक्रधारी, रमेश चक्रधारी सभी लोग अलग-अलग पंडाल में तकरीबन डेढ़ सौ की संख्या में मूर्तियां निर्माण किए हैं। आज दिन भर मूर्तियों को फाइनल टच देने का कार्य द्रुतगति से हो रहा था अंतिम बार उन्हें छूकर ओके कर रहे थे। लोकेश चक्रधारी ने बताया कि सामानों की कीमत बढ़ गई है वहीं एक मूर्ति को बनाने में 3 से 4 दिन का समय लग जाता है कोई-कोई मूर्ति को तो हम 8 दिन में पूर्ण करते हैं श्रम अत्यधिक लगता है बावजूद इसके रंग पेंट मिट्टी बांस बल्ली रस्सी इत्यादि की बढ़ी दाम ने मूर्तियों की कीमत बढ़ा दी है हम तो सिर्फ मेहनताना ही लेते हैं बाकी सब बढ़ी हुई कीमतों के कारण रेट में इजाफा हुआ है। बताना होगा कि यहां से बनाई गई मूर्तियां रायपुर महासमुंद धमतरी गरियाबंद देवभोग बागबाहरा सरायपाली बसना पिथौरा समेत सैकड़ों किलोमीटर दूर ले जाया जा रहा है। बाहर ले जाने वाले अधिकांश लोग अपने-अपने वाहनों में आकर डिलीवरी करा कर ले जाते रहे हैं। ट्रैक्टर मेटाडोर या फिर छोटा हाथी जैसे वाहनों में प्रतिमा को रखकर लोग जयकारा लगाते हुए गंतव्य स्थल तक ले जा रहे थे।

मूर्ति निर्माण का केंद्र बना राजिम

राजिम मूर्ति निर्माण का केंद्र बन गया है। यहां गणेश उत्सव के समय बड़ी संख्या में गणेश की मूर्तियां उसके बाद विश्वकर्मा मूर्ति पश्चात अब दुर्गा की बड़ी संख्या में मूर्तियां बनाई गई है। इस तरह से मूर्तिकारों को मूर्ति बनाने में ही रोजगार मिल गया है। कोरोना काल में इन्हें संकटों से जूझना पड़ा परंतु अब सारे संकट इनके दूर होते जा रहे हैं। इस बार में बड़ी संख्या में ऑर्डर मिले हैं ऑर्डर को पूर्ण करने के लिए प्रतिदिन काम कर रहे हैं यहां तक की काम का दायरा भी बढ़ गया है दिन और रात इनको पता ही नहीं चल रहा है जब हमने इनके पास मूर्तियों के फोटो उतारने के लिए पहुंचे तब बात करने के लिए भी समय नहीं था काम करते-करते इन्होंने बात की और कहा कि काम का दबाव है भैया इसलिए आपके साथ पूरा समय नहीं दे पा रहा हूं।

सेवक दल कर रहे वाद्य यंत्र को तैयार

छत्तीसगढ़ में पुरानी परंपरा है कि नवरात्र पर्व पर माता सेवा की गीत गाई जाती है इसमें माता की महिमा का बखान किया जाता है मंडली में 6 से लेकर 25-30 की संख्या में एक साथ बैठकर वाद्य यंत्र को बजाते हुए गायक गीत प्रस्तुत करते हैं बाकी लोग उन्हें कोरस देते हैं। गायक नरेश पाल, नकछेड़ा साहू, बिसहत साहू, पुनऊ पटेल, भीखम सोनकर, खूमन पाल ने बताया कि 9 दिन माता सेवा में कैसे बितता है पता ही नहीं चलता। उन्होंने बताया कि सेवा गीत प्रस्तुत करने के लिए वाद्य यंत्र को तैयार किया गया है इन्हें तैयार करने के लिए मैकेनिक किया तो फिर गांव तक आते हैं या फिर वाद्य यंत्र की दुकानों में ले जाना पड़ता है वहां उन्हें सुधारा जाता है या तो फिर नया खरीदे जाते हैं समय के साथ-साथ वाद्य यंत्रों की कीमत भी बढ़ गई है जो वाद्य यंत्र 500 से लेकर 800 तक में आते थे वह अब 4000 से लेकर 5000 तक कीमत में उपलब्ध हो रहे हैं। इससे कलाकारों को एक्स्ट्रा चार्ज लग रहे हैं। जिससे उनकी हालत पतली हो गई है।

साधक करेंगे 9 दिन तक लगातार साधना

नवरात्र पर्व साधना का पर्व माना गया है देवी की भक्ति के साथ उनकी साधना भी की जाती है कोई कोई भक्त उपवास रखते हैं तो कोई श्रद्धालु बिना चप्पल के ही पूरे 9 दिन तक गुजारते हैं सबकी साधना की अपनी अपनी अलग अलग तरीके हैं लेकिन उद्देश्य सबका एक ही है कि माता रानी को प्रसन्न करना है।

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