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Chhattisgarh

भगवान राजीवलोचन मंदिर के महामंडप में घंटियों के बीच शोभा पा रहे धान से बनी झालर

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“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम । प्रयाग भूमि राजिम के मुख्य मंदिर राजीव लोचन के महामंडप में घंटियों के बीच धान के पौधों से बनी झालर आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। आने जाने वाले श्रद्धालु जैसे ही मंदिर में प्रवेश करते हैं सबसे पहले इन्हीं का दर्शन करते हैं और वह प्रफुल्लित हो जाते हैं। मंदिर के पुजारी राजेंद्र मनु ने बताया कि दीपावली के पहले धान कटाई जैसे ही प्रारंभ हुई सबसे पहले भक्तगण यहां पर बड़ा सा झालर लगा गए थे जिसे चिड़ियों ने धान को फोलकर खा गए। उसके बाद लगातार भक्तों के द्वारा झालर यहां श्रद्धा के साथ लाया जाता रहा है जिसे हम लोग भी मंदिरों में यदा-कदा लगा देते हैं और चिड़िया इन्हें खाकर अपना पेट भरती है। इस झालर को बड़ी सफाई के साथ मूर्त रूप दिया गया है सबसे पहले खेतों से पौधे सहित धान की बालियां काट लाए उसके बाद उन्हें एक दूसरे से मिलाकर गूंथा गया। इसमें पैरा एवं धान की बाली के अलावा और किसी भी चीज का इस्तेमाल नहीं हुआ है यहां तक की बांस की लकड़ी भी नहीं डाली गई है टोटल पैरा से बनाया गया है। इतनी सुंदर शिल्पकारी को देखकर लोग अद्भुत हो जाते हैं। पौधों के नरई सही रस्सी बना कर टांगा गया है। उल्लेखनीय है कि जैसे ही धान कटाई शुरू हो जाती है किसान मजदूर काम करते हुए थोड़े से भी समय मिल जाते हैं तो वह सदुपयोग करते हुए धान की एक -एक पौधों को मिलाकर देखते ही देखते झलक तैयार कर देते हैं और इसे लाकर अपने घरों की आंगन, द्वार के पास, गाय बांधने के कोठार, बैठक कमरा सहित मंदिर देवालय में शो के लिए रखा जाता है। यह परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। इस संबंध में युवा शायर जितेंद्र सुकुमार सहिर, गीतकार पुरुषोत्तम चक्रधारी, हास्य कलाकार कमलेश कौशिक, कवि गोकुल सेन,थानु राम निषाद ने बताया कि यह हमारी संस्कृति और संस्कार में बसा है जिस अन्न को खाकर छोटे से बड़े हुए हैं उनका सम्मान करना हमें भली-भांति आते हैं और उन्हीं से ही हमारा सम्मान बना हुआ है गांव में आधुनिक चकाचौंध से दूर घर पर शहरों से मंगाकर आर्टिफिशियल झालर नहीं लगाते बल्कि धान के झालर लगा जाते हैं जिन्हें चिड़िया खा तृप्त होती है और यह घर आंगन की शोभा बढ़ाते हैं। ज्ञातव्य हो कि इनकी अलग-अलग डिजाइन तैयार होती है इन्हें बेचने के लिए कोई अलग से बाजार नहीं होते बल्कि बनाकर एक दूसरे को भेट दे जाते हैं। छत्तीसगढ़ को धान का कटोरा कहा जाता है बड़ी संख्या में रवि एवं खरीफ फसल लगाई जाती है लगभग अंचल में खरीफ फसल की कटाई पूर्ण हो गए हैं और लोग सीधे मंडी में ले जाकर बेच रहे हैं इसके बाद रबी फसल की भी तैयारी में जुट गए हैं।

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