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Chhattisgarh

कवि समाज को दर्पण दिखाने का काम करते हैं -चुन्नीलाल साहू

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“संतोष सोनकर ​की रिपोर्ट”

राजिम । शहर से लगा हुआ गांव सरगोड में स्वामी विवेकानंद सेवा समिति द्वारा हास्य कवि सम्मेलन का आयोजन संपन्न हुआ। दुर्गा मंच के सामने हुए इस कार्यक्रम की शुरुआत जगत जननी मां दुर्गा की पूजा अर्चना कर किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि महासमुंद लोकसभा क्षेत्र के सांसद चुन्नीलाल साहू ने अपने उद्बोधन में कहा कि कवि समाज में व्याप्त बुराइयों को जनमानस में लाकर उसे मिटाने का हर संभव प्रयास करते हैं कविता लिखना बहुत बड़ी कला है वैसे भी हमारे लोकसभा क्षेत्र में कवि अपनी लेखनी के माध्यम से प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि पहले कवि सम्मेलन का आयोजन मात्र शहरों में हुआ करता था लेकिन अब चलकर सीधे गांव की गलियों में कविता पाठ हो रही हैं। कहते हैं जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि इसे चरितार्थ करते हुए कवि कविता कर समाज को दर्पण दिखाने का काम कर रहे हैं। इस अवसर पर ग्राम वासियों ने मांग पत्र भी सौंपा पश्चात सरपंच की उपस्थिति में सभी कवियों को स्मृति चिन्ह एवं श्रीफल भेंट कर सम्मानित किया गया। कवि सम्मेलन का संचालन जानू प्रवीण कवर्धा ने करते हुए कहा कि ‘आंसू वही ऐ जख्म जिंदगी, कुछ तो नया सिखा मुझे’ उन्होंने गीत गजल के साथ मंच को ऊंचाई देते हुए चौबेबांधा राजिम के कवि संतोष कुमार सोनकर मंडल को आमंत्रित किया। उन्होंने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ पर जबरदस्त कविता पढ़कर माहौल में रंग भर दिया। पंक्ति देखिए-जन्म देती जब वह, बूढ़ी माई कहलाती है। बहन बन प्रेम लुटाती, राखी बांध संतोषी हो जाती है। पत्नी के रूप में सेवा करती जब वह, देवी लक्ष्मी सा मान पाती। मां सरस्वती का रूप लेकर, नन्ही बिटिया प्यार फैलाती। मरकाटोला बालोद के युवा शायर कुमेश किरणबेर ने उम्दा गजल प्रस्तुत किया। प्रस्तुत है दो पंक्तियां-धर्म जाति को छोड़कर दुनिया के करीब होना, मैंने फकीरों से सीखा है बांटकर अमीर होना। लोहारसी के गीतकार कमलेश कौशिक ने हास्य पैरोडी के माध्यम से छाप छोड़ते हुए छत्तीसगढ़ी में रचना पढ़ी-बाई के नखरा हजार, के इसे करव मैहा प्यार। महासमुंद के कवि गुलाब ठाकुर ने माता की महिमा का गुणगान करते हुए झांसी की रानी का स्मरण कर कहा कि ‘नौ रूप थे मां दुर्गा के दसवीं जन्मी झांसी में, दुष्टों का संहार किया और मिल गई भारत की माटी में। राजनांदगांव के कवि मिनेश साहू ने लुप्त हो रहे छत्तीसगढ़ी बर्तन एवं व्यंजन तथा संस्कृति पर फोकस करते हुए पंक्ति प्रस्तुत किया-बहाना कहिथे मसूर ल,कब होही भेंट। बहु होगे सुखिया चलावत हावे नेट। ओज के कवि तुकाराम साहू तरुण ने हिंदुस्तान की महिमा गाते हुए देशभक्ति का जज्बा भर दिया। बानगी देखिए-रंग जो छिड़े तो प्यार हो जाता। भाव जो छिड़े तो तार हो जाता।। यदि मातृभूमि की बात हो। तो छोड़ सब कुछ देश धर्म पर वार हो जाता। सेम्हरतरा के कवि युगल किशोर साहू सबरस गीत गाते हुए कहा कि सेम्हतरा दूल्हा बने सेम्हराडीह बराती जी, देवरी है दूल्हीन बने कौंदकेरा घराती जी। इस मौके पर ग्रामीण श्रोता बड़ी संख्या में उपस्थित होकर अर्ध रात्रि तक काव्य रस के आनंद में डूबे रहे। जिसमें प्रमुख रुप से नागेंद्र कुमार, सुदामा साहू, धर्मेंद्र साहू, जागेश्वर ध्रुव, कुलेश्वर यादव, रूपेश साहू, पदुम साहू, योगेश साहू, गजेंद्र, मोहित, भीष्म, लुनेश, थानुराम निषाद, थानु राम निषाद, हीरालाल पटेल, कौशल साहू आदि प्रमुख रूप से उपस्थित थे।

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