छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास पर प्रयाग साहित्य समिति ने आयोजित की साहित्यिक संगोष्ठी
राजिम । स्थानीय प्रयाग साहित्य समिति के तत्वाधान में छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस पखवाड़ा के अंतर्गत गायत्री मंदिर सभागृह में साहित्यिक संगोष्ठी का आयोजन संपन्न हुआ। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि नूतन साहू, अध्यक्षता रत्नांचल जिला साहित्य परिषद के महासचिव एवं युवा शायर जितेंद्र सुकुमार साहिर ने की। सर्वप्रथम ज्ञानदायिनी मां सरस्वती की पूजा अर्चना कर विधिवत कार्यक्रम का शुभारंभ किया गया पश्चात छत्तीसगढ़ी भाषा के विकास विषय पर बात रखते हुए प्रमुख वक्ता कवि एवं साहित्यकार संतोष कुमार सोनकर मंडल ने कहा कि भाषा प्रेम बढ़ाने का काम करती हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद पिछले 21 सालों में छत्तीसगढ़ी का खूब विकास हुआ है उपन्यास, कविता, कहानी से लेकर अनेक विधाओं में लगातार साहित्य की रचना हो रही है यह इस बात को सिद्ध करती हैं की भाषा ने लोगों के आत्मविश्वास को मजबूत किया है। एक समय छत्तीसगढ़ी को मात्र गांव की भाषा ही कहा जाता था लेकिन अब गली कूचे से लेकर शहरों के शासकीय कार्यालय में भी बड़ी संख्या में बोली जाती है। यहां तक की हमारे राजनेता छत्तीसगढ़ी में भाषण देकर भाषा को पोठ करने का काम कर रहे हैं। सन 2008 में छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा मिला और संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज होने के क्रम में आकर खड़ा हो गया। छत्तीसगढ़ी के शब्द बहुत मीठा है जिनका जिक्र खुद देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने राज्यसभा में कहा था कि भाषा में मिठास है। उन्होंने छत्तीसगढ़ी की खूब तारीफ भी की थी। हमें अपनी दाई भाखा को आगे बढ़ाने के लिए कमर कसना है। व्यंग्यकार संतोष सेन ने कहा कि छत्तीसगढ़ी भाषा को आगे बढ़ाने की दिशा में कवि साहित्यकारों के अलावा कलाकार काफी समय से लगे हुए हैं खुद पंडवानी गायिका तीजन बाई, रितु वर्मा पंथी, नाचा आदि के लोक कलाकार विदेशों में जाकर छत्तीसगढ़ी में कार्यक्रम प्रस्तुत कर देश विदेश में छत्तीसगढ़ी भाषा को उजागर किया है। भाषा का विकास कई माध्यम से पूरे देश भर में हो रहे हैं इसमें कोई दो मत नहीं है। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि नूतन साहू ने अपने उद्बोधन में कहा कि पंडित सुंदरलाल शर्मा ने सन 1905 में छत्तीसगढ़ी में दानलीला लिखकर इस बात को सिद्ध कर दिया की इसमें भी साहित्य रचना हो सकती है। उसके बाद तो लगातार छत्तीसगढ़ी के साहित्य का विकास और उत्थान देखने को मिला। भाषा विचार अभिव्यक्ति का मुख्य साधन है हमें अपनी भाषा बोली से प्रेम करना चाहिए और उनके सम्मान के लिए बढ़-चढ़कर आगे आएं। अध्यक्षता कर रहे शायर जितेंद्र सुकुमार साहिर ने अपने उद्बोधन में कहा कि वर्तमान समय के बच्चे से लेकर युवा भी कई ऐसे छत्तीसगढ़ी शब्द है जिसे नहीं जानते जब हम गांव में जाते हैं और वहां के बुजुर्गों से मिलते हैं तब कई ऐसे छत्तीसगढ़ी शब्द है जिन्हें सुनकर हम खुद आश्चर्य में पड़ जाते हैं लेकिन शब्दों की मिठास जानने में कौतूहल पैदा करती है। जिस तरह से छत्तीसगढ़ को भोले भाले एवं सीधे-साधे लोगों का गढ़ माना जाता है ठीक उसी प्रकार से यहां की भाषा उन में मिठास घोलने का काम करती है। प्रयाग साहित्य समिति के अध्यक्ष टीकम चंद सेन ने अपने स्वागत भाषण में कहा कि प्रयाग साहित्य समिति लगातार काव्य गोष्ठी के अलावा विभिन्न विषयों पर साहित्यिक संगोष्ठी कर रही है वैसे भी राजिम साहित्य का गढ़ है। यहां पंडित सुंदरलाल शर्मा से लेकर पुरुषोत्तम आनाशक्त,पवन दीवान, कृष्णा रंजन, छबीलाल अशांत, मनहरण दुबे, प्रशांत पारकर जैसे अनेक कवि एवं साहित्यकार हुए हैं जिनकी लेखनी देश विदेश में मार्गदर्शन का काम कर रही है इनके अलावा राजिम में अनेक कवि एवं साहित्यकार हैं जो लगातार लिखकर जिले का नाम रोशन कर रहे हैं। कार्यक्रम का संचालन गोकुल सेन ने किया तथा आभार प्रगट वरिष्ठ कवि तुकाराम कंसारी ने किया।