मूर्ति गढ़ने में पारंगत रमन चक्रधारी ने कहा- मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती
”संतोष सोनकर की रिपोर्ट”
राजिम। शहर के मेला ग्राउंड में बड़ी संख्या में जगत जननी मां दुर्गा की मूर्ति गढ़ी जा रही है। आज से पांचवे दिन 26 सितंबर से शुक्ल पक्ष के प्रथमा तिथि को दुर्गा प्रतिमा की स्थापना के साथ ही नवरात्र पर्व प्रारंभ हो जाएगा। जिसकी तैयारी पिछले महीने भर से निरंतर जारी है। मेला ग्राउंड में ही मूर्ति बनाने के लिए मूर्तिकारों ने तीन पंडाल लगा रखे हैं इनके अलावा गरियाबंद रोड में रमेश चक्रधारी अलग से पंडाल लगाए हुए हैं। लोकेश चक्रधारी अपने पंडाल में 32 मूर्तियां, रमेश चक्रधारी 50 मूर्तियां, मूर्तिकार कुर्रे 26 तथा तकरीबन 36 मां दुर्गा की मूर्ति रमन चक्रधारी बना रहे हैं यह सभी मूर्तियां छोटी नहीं बल्कि छोटी और बड़ी दोनों हैं रमन बताते हैं कि एक मूर्ति को बनाने में कम से कम 8 दिन का समय लग जाता है। करीब 70 से 80 घंटे में तैयार होती है।सबसे पहले ऑर्डर के मुताबिक उनकी फोटो दी जाती है उन्हीं के आधार पर खाका तैयार किया जाता है। लकड़ी व पैरा से आकार तैयार होता है उसके बाद मिट्टी की परत चढ़ा कर उनका शक्ल प्रदान किया जाता है फिर फिनिशिंग का काम लगातार कई घंटों तक चलते हैं। उनके पास काम का दबाव इस तरह है कि उन्हें किसी से बात भी करनी हो तो काम करते करते करना पड़ रहा है। जब इस संवाददाता ने रमन से सारी जानकारी चाही तो वह मां दुर्गे के चेहरे पर मिट्टी की परत चढ़ाते हुए उन्हें फिनिश कर रहे थे। ऐसा करते करते ही वह हमसे तकरीबन 11 मिनट तक बात किए। इस दौरान उन्होंने बताया कि बहुत से मूर्तियां ऑर्डर के अनुसार हम बना रहे हैं लेकिन कुछ मूर्तियों को अपने रिस्क पर तैयार कर रहे हैं उनसे पूछा गया कि यदि उन्हें ले जाने वाला कोई नहीं मिला तब उन मूर्तियों को आप क्या करेंगे। वैसे भी रंग पेंट मिट्टी बांस बल्ली इत्यादि सभी की कीमत बढ़ी हुई है तब मूर्ति बनाने में ही लंबा खर्च आता है उन परिस्थितियों में आप क्या करेंगे। उनका साफ कहना था कि मेहनत कभी व्यर्थ नहीं जाती है। मां दुर्गा की मूर्ति बनी है तो इन्हें ले जाने वाला कोई ना कोई जरूर आएगा। इनके आत्मविश्वास इन्हें आगे बढ़ा रहे हैं। पिछले 15 से 20 सालों में सैकड़ों मूर्तियां तैयार किए हैं अब तो इनके हाथों में जादू ही जादू दिखता है जिस मिट्टी को छू दे वह मूर्ति का रूप ले लेता है। इनके पास बड़ी संख्या में हेल्पर काम कर रहे हैं यानी कि भविष्य के यह सभी मूर्तिकार है जो सीख रहे हैं। पानी गिरने के कारण मौसम में नमी आ गई थी जिसके कारण मूर्तियां सूखने में देर हो रही थी तब वहीं पर सिगड़ी जलाकर मूर्ति को सुखाने का काम हो रहा था। बताया जाता है कि यह सभी मूर्तियां गरियाबंद, महासमुंद, रायपुर, धमतरी आदि जिलों में जाएगी तथा पंडालों पर विराजमान होंगे। उल्लेखनीय है कि अंचल में नवरात्र पर्व बड़े धूमधाम के साथ मनाया जाता है इस बार 26 सितंबर से नवरात्र पर्व प्रारंभ होगा तथा 30 सितंबर दिन शुक्रवार को पंचमी का व्रत होगा। दुर्गाष्टमी सोमवार 3 अक्टूबर को मनाया जाएगा। मंगलवार को दुर्गा नवमी के साथ ही मूर्ति विसर्जन का कार्यक्रम होगा। बुधवार 5 अक्टूबर को विजयदशमी का पर्व होगा। शहर के कई जगह दुर्गा पंडाल तैयार करने की तैयारियां हो चुकी है। इनके अलावा गांव में भी जिनमें चौबेबांधा, सिंधौरी, बरोंडा, श्यामनगर, सुरसाबांधा, कुरूसकेरा, तर्रा, कोपरा, धूमा, परतेवा, देवरी, लोहरसी, पथर्रा, नवाडीह, बकली, पीतईबंद, रावड़, परसदा जोशी, पोखरा, भैंसातरा, कौंदकेरा, खूटेरी इत्यादि में लगातार नौ दिनों तक पूजा-अर्चना के साथ ही कार्यक्रम संचालन के लिए समितियां बनाई गई है जो व्यवस्था के साथी पूरी तैयारियों को मूर्त रूप देंगे।
अंचल के देवी मंदिरों में इस बार बड़ी संख्या में ज्योति कलश प्रचलित किए जाएंगे जिनमें प्रमुख रूप से कमल क्षेत्र की आराध्य देवी मां महामाया, चंडी मां,
सक्ति देवी, जतमई दाई, घटारानी, टेंगनही माता,झरझरा मां,रमई पाठ, मावली माता, दंतेश्वरी दाई इत्यादि देवी स्थल पर बड़ी संख्या में मनोकामना ज्योति कलश प्रज्ज्वलित की जाएगी जिसके लिए रसीद काटने का कार्य भी जारी है।