बहन, नदी है कि भाठा समझ ही नहीं आ रही महानदी की दुर्दशा: पिछले 30 सालों में पूरी तरह बदल गयानदी में रेत नहीं बल्कि घास फूस एवं चीला ने घेरा नवापारा
संतोष सोनकर की रिपोर्ट
राजिम। पहली बार शहर आने वाले लोग महानदी की दुर्दशा को देखकर समझ ही नहीं पाते कि नदी मात्र कुलेश्वर नाथ महादेव के पास ही है बेलाही पुल के नीचे नदी का अस्तित्व ही समाप्त है। रविवार की सुबह दो महिलाएं अपने बच्चों के साथ नदी में स्नान करने के लिए बेलाही पुल के नीचे जा रही थी जैसे ही नदी के पास पहुंचे। उनके मुंह से यह शब्द फूट पड़ा। बहन यह नदी है कि भाठा। दूसरी महिला जो घर से उन्हें महानदी में स्नान करने की बात कहकर साथ में लाई थी उनके सिर झुक जाते हैं और कहती है क्या करें बहन, यही हमारी महानदी है। उल्लेखनीय है कि यह कोई कहानियां या फिर लतीफा नहीं है बल्कि हकीकत है। सोंढूर,पैरी नदी संगम पर मिलने वाली महानदी में रेत के कण मौजूद नहीं है बल्कि यह पूरी तरह से भांठा ही दिखाई पड़ते हैं और इसमें बड़ी-बड़ी घास फूस उग आए हैं। नदी में पतली सी धार चल रही है जिस पर चिलर घेर रखा है। मटमैला पानी में नहाने को विवश शहरवासी शासन प्रशासन एवं रेत निकालने वाले माफियाओं को कोसते हुए मटमैला पानी में ही नहाकर घर को चले जाते हैं। बात इतने में ही समाप्त नहीं होती। बताना जरूरी है कि आज से करीब 25 से 30 साल पहले महानदी से रेत का खेल बदस्तूर चला। सीना को तार-तार करते हुए लगातार कई सालों तक रेत निकाला गया। उसके बाद तो रेत ही खत्म हो गए और नदी बगैर रेत के हो गए हैं। वैसे नदी का आभूषण रेत होता है परंतु यह बिना रेत का नदी निहायत ही अपने आभूषण को प्राप्त करने के लिए चिल्ला चिल्लाकर रो रही है लेकिन आवाज सुनने वाला कोई नहीं है। रायपुर जिला का पुराना नगर पालिका नवापारा नगर की शोभा बढ़ाती एवं निस्तारी नदी की यह दुर्दशा के चिंता करने वाला न ही जनप्रतिनिधि है और न ही कोई जिम्मेदार अफसर। नतीजा अस्तित्व खो चुके नदी अभी भी अपने पुराने स्वरूप में आने के लिए तरस रही है। इस संबंध में स्थानीय मेहत्तर, दीना, महेंद्र, दीनदयाल, टिकेश्वर, बंटी, विक्रम, खिलेश्वर, बादल, भीम आदि ने कहा कि हम जब छोटे थे तब महानदी की स्थिति ऐसी नहीं थी वह बड़ी सुंदर एवं नदी में रेत ही रेत दिखाई देते थे। पहले पुल नहीं बना था। तब वर्षा ऋतु में नाव से आना-जाना करते थे। उसके बाद नदी में ही रेत को इकट्ठा कर अस्थाई सड़क बनाया गया था जिस पर लोग आना-जाना करते थे। उस समय नदी से रेत का दोहन हो रहा था कोई उसे रोकने टोकने वाला नहीं था। नदी कब तक ऊपर से रेत लाती एक समय बाद इस तरफ रेत ही खत्म हो गया। 70 साल के बुजुर्ग रामशरण साहू ने बताया कि नवापारा सामान खरीदने के लिए पानी को तैरकर पहुंचते थे। उस काल में नदी में रेत की कोई कमी नहीं थी तथा गर्मी के मौसम में भी पानी का धार चलता था। अब तो जनवरी-फरवरी में ही लेबल बैठ जाता है। रेत होने के कारण ही नदी में पानी रहता था। अब रेत नहीं है इसलिए नदी सूख जाती है। विशाखा, सीता, धनमत बाई, बसंती, संतोषी ने बताया कि मटमैले पानी होने के कारण नहाने में बड़ी दिक्कत होती है घर में और कोई स्नान करने की व्यवस्था नहीं है इसलिए सुबह स्नान नदी में ही चले आते हैं फोड़े फुंसी हो रहे हैं खुजली भी हो रही है बावजूद इसके, क्या करें नदी में ही स्नान करना पड़ रहा है। अभी चार-पांच रोज पहले संगम एनीकट बंद करने से पानी का ठेलान बेलाही पुल के आगे तक था। लबालब पानी होने से नहाने में कोई दिक्कत नहीं आ रही थी परंतु गेट खोल देने के बाद पानी पूरी तरह से बह गया। अब स्नान करना भी मुश्किल हो रही है। पानी गंदे हैं ऊपर से चिलर घेर रखा है यदि इसमें पैर फंस जाए तो निकलना मुश्किल हो जाता है ऊपर से खुजली परेशान कर देती है क्या करें बहुत परेशान हैं।जानना जरूरी है कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के साथ ही सन् 2000 में अभनपुर विधानसभा क्षेत्र से निर्वाचित विधायक धनेंद्र साहू स्वतंत्र प्रभार में जल संसाधन मंत्री बने। उसके बाद चंद्रशेखर साहू कैबिनेट में कृषि मंत्री बना। 21 साल के उम्र की इस छत्तीसगढ़ प्रदेश में अभनपुर विधानसभा को 8 साल तक मंत्री पद मिला। इन आठ सालों में नदी का वास्तविक स्वरूप बदल नहीं पाए। और तो और दिनोंदिन इनकी दुर्दशा बिगड़ती जा रही है। गाद लगातार नदी पर फैल रहे हैं। यही स्थिति रही तो हो सकता है महानदी का अस्तित्व पूरी तरह मिट जाएं।