किसानों को सौ रुपये का झुनझुना देकर अपनी ही पीठ थपथपा रही है केंद्र सरकार
“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”
राजिम। केन्द्र सरकार द्वारा किसानों की आय दुगुनी के नाम पर कृषि उत्पादन लागत दुगुनी हो गई है जिसे नजरन्दाज कर केन्द्र सरकार खरीफ वर्ष 2022-23 के लिए एमएसपी की घोषणा का रिकॉर्ड पिछली सरकार से भी खराब साबित हुआ है। अब किसानों के पास लागत की डेढ़ गुना एमएसपी के लिए संघर्ष के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है। अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के सचिव तेजराम विद्रोही ने कहा कि खरीफ फसल के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा के साथ ही मोदी सरकार ने एक बार फिर देश के किसानों के साथ क्रूर मजाक किया है। मोदी सरकार ने धान पर 100 रुपये प्रति क्विंटल की झुनझुना थमाकर अपनी ही पीठ थपथपाने में लगी हुई है जबकि 14 खरीफ फसलों में से 11 फसलों का एमएसपी वास्तविक रूप से कम हुआ है डीजल और उर्वरक की कीमत में अभूतपूर्व वृद्धि को नजरअंदाज किया गया खरीफ फसलों की खरीद के लिए सरकार के आंकड़ों की समीक्षा करते हुए तेजराम विद्रोही ने कहा 08 जून 2022 को जिस समय कृषि फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की गई उससे कुछ समय पहले ही आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने वित्त वर्ष 2023 में 6.7% की मुद्रास्फीति का अनुमान लगाया है। किसानों के लागत के मामले में मुद्रास्फीति और भी अधिक है क्योंकि डीजल और उर्वरक की कीमत में काफी अधिक वृद्धि हुई है। यदि किसानों के लागत में मुद्रास्फीति की तुलना सरकार द्वारा घोषित एमएसपी से की जाए तो यह स्पष्ट है कि 14 फसलों में से 11 के लिए एमएसपी में वृद्धि लागत मुद्रास्फीति से कम है। इस प्रकार, वास्तविक रूप में 11 फसलों के लिए एमएसपी घटा दी गई है।तेजराम विद्रोही ने कहा आगे कहा कि “मोदी सरकार द्वारा पिछले 9 वर्षों में खरीफ फसलों के लिए घोषित एमएसपी की तुलना यूपीए सरकार के पिछले 9 वर्षों से की जाए, तो मोदी सरकार के दौरान हर फसल के लिए एमएसपी में वृद्धि कम हुई है। साफ है कि मोदी सरकार किसानों की आय दोगुनी करने के अपने वादों को पूरा करने की बजाय किसानों की आय कम करने पर अड़ी है। साल 2022 -23 के लिए एमएसपी की घोषणा ने एक बार फिर मोदी सरकार के किसान विरोधी एजेंडे को उजागर कर दिया है और एमएसपी गारंटी के लिए समिति बनाकर कानूनी गारन्टी देने के संयुक्त किसान मोर्चा से किये गए अपने वायदों से पूर्व की भांति एक बार फिर मुकर गए हैं। हर साल एमएसपी के नाम पर, यह सरकार किसानों को धोखा देती है। अब यह स्पष्ट है कि किसानों के पास स्वामीनाथन आयोग की सिफारिशों के अनुरूप वास्तविक लागत के आधार पर एमएसपी की कानूनी गारंटी के लिए संघर्ष के अलावा और कोई विकल्प नहीं बचा है।