खाद की कालाबाजारी पर सरकार की अंकुश नहीं, सहकारी समितियों के माध्यम से जल्द ही उपलब्ध हो खाद-तेजराम विद्रोही

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“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम। केन्द्र व राज्य सरकारें किसानों के हित की तो बातें बड़ी बड़ी करते हैं लेकिन धरातल में किसान कितने परेशानियों का सामना कर रहे हैं कोई ध्यान देने वाला नहीं है अलबत्ता किसानों को सामने रखकर विपक्ष में जब रहे तो जरूर राजनीतिक रोटी सेंकने में कोई कसर बाकी नहीं रहता।व्याप्त खाद की कमी और कालाबाजारी को लेकर अखिल भारतीय क्रांतिकारी किसान सभा के सचिव तेजराम विद्रोही ने कहा कि रबी की सीजन है और किसान रासायनिक खाद के लिए दर दर भटक रहे हैं। सरकार के पास सहकारी समितियों में खाद उपलब्ध नहीं है लेकिन निजी उर्वरक विक्रेताओं के गोदाम यूरिया, डीएपी, ग्रोमोर आदि खादों से भरे पड़े हैं जिसे वे दोगुने दामों पर किसानों को बेच रहे हैं। यहां तक कि किसानों का चेहरा पहचान कर खाद बेचा जा रहा है जिनसे अधिक दाम पर बेचे जाने की शिकायत किसान न करे। किसानों के सामने संकट यह है कि निजी दुकानों से अधिक दाम पर खाद खरीदने की शिकायत करें या खाद खरीदकर फसल की उत्पादन करें। कमोबेश सभी राज्यों में यही स्थिति है और जिन राज्य में जिस पार्टी का सरकार नहीं है वह सत्ताधारी पार्टी को पानी पी पी कर कोस रहे हैं और अपने आप को किसान हितैषी होने का दावा ठोंक रहे हैं। जबकि उन्हें चाहिए कि केंद्र व राज्य सरकारों से बात कर आसानी से वाजिब दामों पर खाद उपलब्ध करवाए। सबसे बड़ा सवाल यह है कि सहकारी समितियों में खाद की किल्लत है लेकिन निजी दुकानदारों के गोदामों में खाद का भंडार है। आखिर उनको कहाँ से खाद मिलती है? इससे साफ जाहिर है कि खाद की कालाबाजारी और किसानों की लूट पर शासन तथा प्रशासन द्वारा कोई अंकुश नहीं है। अगर इसी तरह की स्थिति बनी रही तो किसान खाद के लिए सड़क पर उतर कर आंदोलन के लिए मजबूर होंगे।

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