सांकड़ लेने भक्तों की लगी भीड़गौरा गौरी विसर्जन में उमड़े ग्राम वासी

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“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम। शहर समेत ग्रामीण अंचलों में गौरा गौरी पर्व की धूम रही। चौबेबांधा में बुधवार को सुबह 9:00 बजे विसर्जन के लिए गौरा चौक से जैसे ही निकले उसके बाद सांकड़ लेने की भीड़ लग गई। मोहरी,दफड़ा,निशान, मंजीरा, टासक वाद्य यंत्र की धुन पर लोग झूमते रहे और सांकड़ पिटवाने के लिए अपनी बारी का इंतजार करते रहे। हाथ,पैर तो कोई अपने कमर पर भी सांकड़ लिया। श्रद्धालुगण घर से बाहर निकल कर पूजा की थाल के साथ ही जैसे ही गौरा गौरी उनके घरों के सामने आते पूजन अर्चन तथा नारियल चढ़ाकर प्रणाम करते हुए आगे बढ़ रहे थे। इधर सांकड़ लेने वाला दृश्य अत्यंत मोहित कर रहा था। हर कोई एक नजर डालने के लिए आतुर हो गया था। तलाब जाते तक सैकड़ों लोगों ने सांकड़ लिया। पुजारी गणेश ध्रुव ने बताया कि यह गौरी गौरा के प्रति श्रद्धालुओं की श्रद्धा है जो उभरकर स्पष्ट रूप से दिख रही है। गांव में इस तरह का दृश्य साल भर में एक बार मात्र गौरा गौरी विसर्जन के दौरान ही देखने को मिलता है।मिट्टी से बनते गौरा गौरी की प्रतिमागौरा गौरी की प्रतिमा बनाने के लिए कोई विशेष मूर्तिकार या फिर कुम्हारों के पास नहीं ले जाया जाता बल्कि एक दिन पूर्व अर्थात लक्ष्मी पूजन के दिवस या फिर धनतेरस के मौके पर तालाब किनारे से मिट्टी लाई जाती है और लक्ष्मी पूजन होने के पश्चात लोग गौरा चौक पर एकत्रित होते हैं और मिट्टी से ही गौरा गौरी दोनों की मूर्तियों को आकार दिया जाता है। मूर्ति बना रहे गांव के ही चम्मन साहू, ताराचंद यादव, सुखदेव ध्रुव, रघुनंदन पटेल, रामचंद्र पटेल ने बताया कि सबसे पहले मिट्टी में पानी डालकर गिला किया जाता है उसके बाद लोंदी तैयारकर अलग-अलग हिस्से में उठाकर हाथ पैर तथा पूरी प्रतिमा बनाते हैं। एक दो बार ध्यान से देखने के बाद कैसे बनाते हैं तथा कहां पर क्या लगेगा सब पता चल जाता है। रात्रि 9:00 बजे से लेकर 11:00 बजे के पहले इन्होंने प्रतिमा तैयार कर ली। दो-तीन घंटों में प्रतिमा को पात्र में रखकर फाइनल टच दे दी। रात्रि 12:00 बजे के बाद पूजा अर्चना के साथ ही गांव भ्रमण के लिए निकल गए। लगातार साढ़े 4 घंटे तक घूमने के पश्चात वापस गौरा चौक पर आकर पुनः स्थापित हो गया। इधर बालिकाओं के द्वारा करसा तैयार कर शानदार सजाया गया था। दीया जलने के बाद इनकी आभा निखर रही थी शानदार दृश्य आलोकित हो रहा था और उनकी जयकारा में लोग खो गए। गौरा गौरी गीत एक पतरी रैनी बैनी… गाए जा रहे थे। वहां पर उपस्थित लोगों ने बताया कि किस्मत वाले होते हैं जो इनका दर्शन करते हैं। मोवा,काशी,बेद से बनाते सांकड़सांकड़ किसी दुकानों में खरीदा नहीं जाता बल्कि इसे तैयार किया जाता है इनके लिए खेत- खार से बेद, काशी, मोवा पौधे को काटकर लाया जाता है बेद मिल जाए तो अच्छी बात, ना मिले तो काशी से काम चल जाता है और यदि यह भी उपलब्ध ना हो तो मोवा का उपयोग किया जाता है। यहां लंबे-लंबे मोवा के तने को बरकर कठोर सोटा अर्थात सांकड़ तैयार किया गया। तने से रस्सा बना रहे ध्रुव कुमार, गणपत पटेल, हेमलाल साहू ने बताया कि सोटा बनाने के लिए कड़ी मेहनत करना पड़ता है पूरे बल लगाकर इन्हें रस्सा का रूप दिया जाता है उसके बाद जैसे ही सांकड़ के लिए लोग हाथ उठाते हैं फिर इनके टच होने के बाद तेज मार पड़ती है। भक्तों को भक्ति में दर्द का आभास नहीं होता और गौरा गौरी की जयकारा के साथ इनका प्रसाद मानकर भाव विभोर हो जाते हैं।सिंधौरी, बरोंडा, श्यामनगर, सुरसाबांधा, कुरूसकेरा, तर्रा, कोपरा, धूमा, परतेवा, देवरी, लोहरसी, पथर्रा, नवाडीह, बकली, पीतईबंद, रावड़, परसदा जोशी, पोखरा, भैंसातरा, कौंदकेरा, खूटेरी इत्यादि गांव में गौरी गौरा पूजा की धूम रही।

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