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नवा छत्तीसगढ़ के 36 माह: स्वसहायता समूह की महिलाओं द्वारा बनाए आचार, पापड़, साबुन के सामने बड़ी कंपनियों के उत्पाद फीके

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“बी एन यादव की रिपोर्ट”

कोरबा। कोरबा जिले की ग्रामीण महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे आचार, पापड, मसाले, साबुन एवं अन्य खाने-पीने के सामानों के स्वाद के सामने बड़ी कंपनियों के उत्पाद फीके नजर आ रहे हैं। ग्रामीण महिलाएं स्वसहायता समूह के माध्यम से जुड़कर विभिन्न उत्पादों के निर्माण में लगी हुई हैं। महिलाओं को समूह के माध्यम से स्थानीय स्तर पर एक ओर रोजगार मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर लोगों को खाने-पीने के बेहतर और स्वादिष्ट सामान उपलब्ध हो रहे हैं। विकासखण्ड कटघोरा के अंतर्गत जननी महिला संकुल संगठन धंवईपुर से जुड़ी विभिन्न स्वसहायता समूह की महिलाएं रोजगार सृजन के साथ विभिन्न प्रकार के उत्पाद निर्माण में लगे हुए हैं। क्लस्टर के अंतर्गत मां दंतेश्वरी महिला स्व सहायता समूह जेन्जरा द्वारा आत्मनिर्भरता व महिला सशक्तीकरण का उदाहरण पेश करते हुए मसाला निर्माण का काम किए जा रहे हैं। जिसमे समूह से जुड़ी 10 महिलाएं विभिन्न प्रकार के मसाले शुद्ध रूप से अपने हाथों से तैयार कर रहीं है। इन मसालों में दादी-नानी के हाथों से तैयार मसालों जैसे बेहतर, स्वादिष्ट स्वाद तथा अपनापन है। समूह की महिलाओं द्वारा सामुदायिक निधि के माध्यम से यह कार्य किये जा रहे हैं। महिलाओं द्वारा उत्पादित सामानों की मांग लगातार बनी हुई है जिससे महिलाओं में उत्साह व्याप्त है।
समूह की महिलाओं द्वारा विभिन्न प्रकार के आचार आम ,नींबू,करौंदा,लहसुन,अदरक,मसरूम, कटहल, मिर्च व सब्जियों के आचार तैयार किये जा रहे है। महिलाओं द्वारा बनाए सामानों का स्वाद बेहतर होने के कारण बाजार में आचार-मसालों की अच्छी खपत हो रही है। संकुल के माध्यम से अभी तक लगभग 20 हजार के आचार बेचे जा चुके है। सामानों को स्थानीय बाजारों के साथ बिहान प्लाजा कोरबा के माध्यम से भी बेचे जा रहे हैं। जननी महिला संकुल संगठन द्वारा ग्राम संगठन के माध्यम से इसकी मार्केटिंग भी लगातार की जा रही है। इस कार्य में महिलाएं संकुल के साथ समन्वय के साथ काम कर रही हैं। इसी प्रकार जननी महिला संकुल संगठन धंवईपुर कटघोरा अंतर्गत धनरास की महिला स्व सहायता समूह द्वारा मशरूम उत्पादन भी किया जा रहा है। इसके साथ ही समूह से जुड़ी 25 महिलाएं अपने हाथों से शुद्ध रूप से साबुन का निर्माण कर रही है। इन साबुन का निर्माण नूडल की जगह बेस से की जाती है। अत्याधिक रासायनिक तत्वों के बिना बनाए जा रहे यह साबुन त्वचा के लिए लाभदायक होते है। इसके अतिरिक्त साबुन को ज्यादा गुणवत्ता पूर्ण बनाने के लिए इसमे केशर,तुलसी,हल्दी,चंदन,गुलाब जल आदि को मिलाकर बनाये जा रहे हैं। महिलाओं द्वारा उत्पादित सामानों के लिए संकुल द्वारा बाजार की व्यवस्था की जाती है। अभी तक महिलाओं द्वारा 35-40 हजार रूपए का सामान संकुल या समूह के माध्यम से बेचा जा चुका है। समूह की महिलाओं द्वारा सामुदायिक निधि के माध्यम से यह कार्य किये जा रहे है। महिलाओं द्वारा बनाए जा रहे उत्पादों की डिमांड मार्केट में बढ़ रही है। जिससे महिलाएं उत्साह और लगन के साथ काम करने में लगी हुई हैं। महिलाओं को समूह के माध्यम से काम मिल जाने से स्थानीय स्तर पर उन्हें गांव में ही रोजगार के साधन प्राप्त हो रहे हैं। महिलाओं को विभिन्न उत्पादों के निर्माण से होने वाली आवक से उनके परिवार के भरण-पोषण में भी सहायता मिल रही है।

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