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विश्व पर्यावरण दिवस में किया गया वृक्षारोपण

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संतोष सोनकर की रिपोर्ट

राजिम। विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर ग्राम खुटेरी के युवकों द्वारा प्रतिवर्ष की भांति इस वर्ष भी फलदार आम वृक्ष का रोपण किया गया। एक ओर जहां हसदेव कानन की कटाई का विरोध गांव गांव से लेकर सात समंदर पार हो रही है। वहीं ग्राम के जुझारू संवेदनशील युवक वृक्षो को संरक्षित करने लगे हुए है।हिन्दू सनातन धर्म मे वृक्षो को अनादिकाल से देवतुल्य माना गया है आज भी लोग सच्ची श्रद्धा से बरगद पीपल और आंवला जैसे वृक्षो का वट सावित्री आंवला नवमी और शनिवार आदि पर्वो में भक्ति भाव से पूजन करते है। साल सरई और पलास के पेड़ के पूजन वन देवता का पूजन आज भी आदिवासी समाज के लोग करते है यह कहना गलत नही होगा कि आदिवासी जनजाति परम्परा वृक्षो और वनो के बिना अधूरा हैवास्तव में प्रकृति ही मानव के सच्चे साथी है बाकी रिश्ते नाते तो स्वार्थ पूर्ति करने के लिए होते है।ये अपने वायु छाया फल फूल औषधि शहद रबर लकड़ी आदि बहुमूल्य प्रकृति प्रदत्त उपहार के एवज में हमसे कुछ नही मांगते. यंहा तक यदि एक पीढ़ी पेड़ लगाए और परवरिश करे तो उनके बदले कई पीढियों को इसका फल मिलता है.जिस प्रकार से आज तापमान बढ़ने से धरती तप रही है और ग्लोबल वार्मिंग की गम्भीर समस्या पृथ्वी के लिए आफत बनी हुई है हम सभी को जागरूकता के साथ पर्यावरण के महत्व को समझना होगा।वेदप्रकाश नगारची ने बताया कि वास्तव में पेड़ पौधे और हरा भरा प्रकृति ही हमारी धरती माता के श्रृंगार है। जिस प्रकार एक माँ अपने बच्चे को सुंदर दिखने के लिए उनको सजा सँवारकर श्रृंगार करती है उसी प्रकार हम सबका भी कर्तव्य होना चाहिये कि धरती माँ का श्रृंगार करे। पेड़ पौधों के बिना इस पृथ्वी का अस्तित्व की कल्पना नही की जा सकती है यदि पृथ्वी को बचाना है तो पहले पेड़ पौधों को बचाना होगा।डॉ यशवंत निषाद ने बताया कि विगत 3 वर्षों से वृक्षारोपण कर रहा हूं और उसके साथ ही उनका रख रखाव और संरक्षण करते आया हूं।शिक्षक श्री हेमलाल साहू ने कहा कि आजकल लोग वृक्षारोपण मोबाइल स्टेटस और खबरों में रहने के लिए करते है और वास्तविकता कुछ और होती है। विगत वर्ष मातृ नवमी श्राद्ध पर्व पर श्रद्धांजलि स्वरूप 2 दर्जन से अधिक पौधों का रोपण युवकों द्वारा किया गया जिनका देखभाल भी अच्छे ढंग से किया जा रहा है.उक्त कार्य मे डेरहा निषाद नन्दकुमार निषाद चम्पेश्वर साहू तेजराम साहू रिखी निषाद नेमचंद साहू बेनीशंकर साहू पूर्णानन्द साहू आदि उपस्थित रहे।

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