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बड़े-बड़े रोम के कारण नाम पड़ा लोमष

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“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम। संगम के तट पर लोमशऋषि का आश्रम है। यह धमतरी जिला के अंतिम छोर में स्थित है। साधु-संतों का हमेशा डेरा लगा रहता है। मंदिरों के समूह के बीच तथा वृक्षों के झूरमुट में लोमशऋषि की प्रतिमा प्रस्थापित हैं। तकरीबन पांच फीट ऊॅची प्रतिमा काले पत्थरों से निर्मित है। उल्लेखनीय है कि लोमशऋषि परम तपस्वी तथा विद्वान थे। वह बड़े-बड़े रोमो (रोआ) वाले थे, इसी कारण इनका नाम लोमष पड़ा। मान्यता है कि लोमषऋषि अमर है। अमरता का अर्थ चिरंजवी होना नहीं, बल्कि उनकी अत्याधिक आयु से है। लोमषऋषि ने युधिष्ठिर को ज्ञान की गुढ़ रहस्य बताई थी। जिससे वह योग्य राजा बने। कहते है कि एक बार लोमषऋषि भागवत कथा कह रहे थे, उसी भीड़ में बैठे एक व्यक्ति उन्हें टोक देता है कभी उसे कुछ प्रश्न पूछता तो कभी कुछ और। इससे ऋषि क्रोधित हो गया है और कौवे की तरह कांव-कांव कर रहा है इसलिए तू कौआ बन जा। जब ऋषि का क्रोध शांत हुआ तब श्राप के प्रभाव को कम करने के लिए खेल प्रकट किया और उनकी विनम्रता को देखकर उन्हें वरदान दिया कि अलगे जन्म में कौआ जरूर बनेगा। लेकिन इतना पवित्र होगा कि जहां भी रहेगा कलियुग का प्रभाव नहीं पड़ेगा। ऋषि के श्राप के कारण अगले जन्म में कागभशुण्डी उन्होंने ही गरूड़ को ही भगवान शिव द्वारा कहा गया रामकथा सुनाया। इनके अमर होने के बारे एक कथा प्रचलित है कि बचपन में लोमषऋषि को मृत्यु से बहुत भय लगता था। इससे बचने के लिए भगवान शिव की घोर तपस्या की। देवाधिदेव प्रकट हो गए और वर मांगने के लिए कहा तो उन्होंने कहा कि मेरा यह नर तन अमर कर दीजिये। मुझे मृत्यु से डर लगता है तब भगवान शिव ने कहा कि यह संभव नहीं हैं इस मृत्युलोक में सारी चीजे नश्वर हैं जो आए है उनको जाना ही पड़ता है। अर्थात विनाश निश्चित हैं जिसे कोई बदल नहीं सकता। अतः तुम्हारे शरीर को में अजरअमर नहीं कर सकता, किन्तु तुमने मुझे प्रसन्न किया है तो तुम अपनी लम्बी आयु मांग लो। तब लोमषऋषि ने कहा कि एक कल्प के बाद मेरा एक रोम गिरे और इस प्रकार मेरे शरीर के सारे रोम गिर जाए तभी मेरी मृत्यु हो। भगवान शंकर मुस्कुराए एवमवस्तु कहकर अंर्तध्यान हो गए।

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