रोटी कमाना नहीं बल्कि एक साथ बैठकर खाना बड़ी बात है।
राजिम के सीन समुदायिक भवन में हास्य कवि सम्मेलन में कवियों ने गुदगुदाया
राजिम। नगर सेलून संघ के तत्वाधान में सेन समुदायिक भवन पर दोपहर 12:00 बजे संत शिरोमणि सेन महाराज की जयंती मनाई गई। पूजा-अर्चना के साथ ही सामूहिक आरती उतारी गई और प्रसाद वितरण किया गया। सेन महाराज के व्यक्तित्व पर उद्बोधन देते हुए नगर सेलून संघ के अध्यक्ष हेमंत सेन ने कहा कि संत सेन महाराज बचपन से ही विनम्र, दयालु और ईश्वर में दृढ़ विश्वास रखते थे। गृहस्थ जीवन के साथ-साथ भक्ति के मार्ग पर चलकर भारतीय संस्कृति के अनुरूप जनमानस को शिक्षा और उपदेश के माध्यम से एकरूपता में पिरोया। सेन महाराज प्रत्येक जीव में ईश्वर का दर्शन करते और सत्य, अहिंसा तथा प्रेम का संदेश जीवन पर्यन्त देते रहे। सेन महाराज का व्यक्तित्व इतना प्रभावशाली हो गया था कि जनसमुदाय स्वतः ही उनकी ओर खिंचा चला आता था। पश्चात हास्य कवि सम्मेलन प्रारंभ हुआ गीतकार टीकमचंद दिवाकर ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की तथा देश भक्ति पर अनेक गीत प्रस्तुत किए और कहा कि धरती कहती अंबर कहता, कहता यह जग सारा है। जहां हुए बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है। लोहरसी से पहुंचे गीतकार कमलेश कौशिक ने गीतों की शानदार प्रस्तुति दी। उनके चार लाइन देखिए-अपना तो एक ही उसूल है, जो मेहनत का नहीं वह धूल है। खुद से ज्यादा औरो पे भरोसा करना, इंसान की सबसे बड़ी भूल है। कवि संतोष सेन व्यंग्य की अनेक टुकड़िया प्रस्तुत की और वर्तमान परिपेक्ष पर करारा व्यंग करते हुए कहा कि रोटी कमाना बड़ी बात नहीं है बल्कि एक साथ बैठकर खाना सबसे बड़ी बात है। हास्य कवि संतोष कुमार सोनकर मंडल ने हास्य की परिपाटी बिछा दी। उन्होंने घंटों श्रोताओं को हास्य कविता सुनाते रहे। इसी कड़ी में उनकी कविताओं की बानगी प्रस्तुत है-हमने एक राजनेता से राजनीति का अर्थ पूछ लिया उन्होंने पाक साफ शब्दों में बताया जिन्होंने राज के बदौलत नीति को पछाड़ा है असल अर्थ में वही राजनीति का खिताब पाया है। उन्होंने फैशन पर व्यंग्य कसते हुए कहा कि फैशन में नवयुवतियां मल्लिका शेरावत को भी पीछे छोड़ चुकी है छोटी उम्र में बुधिया सबसे आगे दौड़ चुकी है जैसे अनेक रचनाओं से गुदगुदाया। चुटकुलेकार गोकुल सेन ने विदेशी संस्कृति पर प्रहार करते हुए भारत की संस्कृति एवं संस्कार को दुनिया में श्रेष्ठ बताया और मुख्यमंत्री भूपेश बघेल द्वारा छत्तीसगढ़ी संस्कृति को ऊपर उठाने से प्रयास को अच्छा बताते छत्तीसगढ़ी में रचना पढ़ते हुए कहा कि का बतांवव रे मोर संगी कहां मोर संस्कृति नंदागे,आमा अऊ अमली के लाटा आईस चाकलेट अब उहू सिरागे। ने खूब रंग जमाया। आभार प्रकट संतराम सेन ने किया। मौके पर नरोत्तम सेन, उमाशंकर, नीलेश्वर, देवेंद्र, प्रकाश, पवन, घनश्याम, राजू, चित्रांगद, शेखर, दामोदर, नीलेश्वर, लक्ष्मण, देवराज, महावीर, राजेश, सुनील, रोहित, पुरुषोत्तम, जीतू, गोपी, सुमित, गजेंद्र, दिग्विजय, सहित अनेक लोग उपस्थित थे।