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सावन महीने के पहले दिन शिवालयों में लगी भक्तों की भीड़,श्रद्धालुओं ने जलाभिषेक कर किया पुजा अर्चना,कांवड़ यात्रा आज से शुरु

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”संजय चौबे”


रायपुर।सावन के महीने को भगवान भोलेनाथ यानी भगवान शिव को समर्पित माना गया है। ऐसे में भोले के उपासक सावन के पूरे महीने में बाबा को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय करते हैं, जिनमें से एक है कांवड़ यात्रा। इस साल कांवड़ यात्रा की शुरुआत 14 जुलाई 2022 से हो रही है। 14 जुलाई से शुरू होकर कांवड़ यात्रा 12 अगस्त तक चलेगी।
राजधानी सहित प्रदेश में सावन मास के पहले दिन शिवालयों में भक्तों की भीड़ देखी गई। लोग सुबह से स्नान करके शहर के विभिन्न मंदिरो में भगवान शिव व पार्वती की पुजा अर्चना कर जलाभिषेक किये। वहीं राजधानी महादेवघाट स्थित हटकेश्वरनाथ मंदिर और बूढ़ापारा के बूढ़ेश्वर मंदिर में भी सुबह से जलाभिषेक करने श्रद्धालुओं पहुंचे।
कावंड यात्रा के दौरान श्रद्धालु गंगा नदी से जल भरकर शिव मंदिर पहुंचते हैं और शिवलिंग पर चढ़ाते हैं। मान्यता है कि जब समुद्र मंथन से निकले हलाहल विष को भगवान शिव ने पीकर कंठ में ही रोक लिया तो उनका कंठ नीला हो गया और वे नीलकंठ कहलाए. इसके बाद उस विष के चलते भगवान शिव के गले में एकत्रित हुई नकारात्मक ऊर्जा बन गई. जिसे दूर करने के लिए शिव का परम भक्त रावण कांवड़ में गंगाजल लेकर लेकर शिवलिंग पर चढ़ाने पहुंचा और उनका अभिषेक किया. मान्यता है कि इसके बाद भगवान शिव को विष के दुष्प्रभाव से मुक्ति मिली।
मान्यता के अनुसार भगवान शिव की साधना से जुड़ी पावन कांवड़ यात्रा में समय के साथ कई बदलाव आए हैं। जिसे शिव भक्त अपनी आस्था, समय और सामर्थ्य के अनुसार करता है।इनमें तीन तरह की कांवड़ यात्रा अभी प्रचलन में है।
शिव भक्त अपने आराध्य भगवान शंकर के लिए जल इकट्ठा करने के वास्ते कांवड़ को अपने कंधे पर लेकर पैदल यात्रा करते जाते हैं। खड़ी कांवड़ को सबसे कठिन कांवड़ यात्रा माना जाता है क्योंकि इस कांवड़ यात्रा के दौरान कांवड़ को कहीं जमीन पर नहीं रखा जाता है। यात्रा के दौरान यदि किसी कांवड़िए को भोजन या आराम करना होता है तो वह इसे किसी दूसरे कांवड़िए को थमा देता है या फिर किसी स्टैंड पर टांग देता है। खड़ी कांवड़ यात्रा में एक कांवड़िए की मदद के लिए कई दूसरे सहयोगी साथ चलते हैं।
डाक कांवड़ के जरिए शिव भक्त अपने आराध्य भगावन शिव के जलाभिषेक वाले दिन तक लगातार बगैर रुके चलते हैं। इस यात्रा में भोले के भक्त शिवधाम की दूरी एक निश्चित समय में शिव भजन पर गाते-झूमते हुए तय करते हैं।
वर्तमान समय में भगवान शिव की भव्य झांकी बनाकर कांवड़ यात्रा का प्रचलन बढ़ा है। झांकी वाली कांवड़ में कांवड़िए किसी खुले वाहन में भगवान शिव का दरबार सजाकर गाते-बजाते हुए इस पावन यात्रा को पूरी करते हैं।

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