पंडित सुंदरलाल शर्मा चौक बैनर पोस्टर से पटा,धरोहर को संरक्षित करने में स्थानीय प्रशासन की बेरुखी

Spread the love

”संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम । छत्तीसगढ़ के गांधी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं आदिकवि पंडित सुंदरलाल शर्मा की प्रतिमा शहर के बस स्टैंड स्थित चौक में लगी हुई है। अस्सी के दशक में इस मूर्ति का अनावरण भारत के पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानीजैल सिंह ने किया था। उल्लेखनीय है कि इन दिनों यह प्रतिमा के चारों ओर चौराहे पर बैनर पोस्टर की भरमार हो गई है। लगातार समाचार प्रकाशन के बाद स्थानीय प्रशासन की नींद कुछ माह पहले टूटी थी तब वह लगे बैनर पोस्टर को हटाया था। उसके बाद सावन लगते ही फिर से विज्ञापन वाली बैनर पोस्टर लगाने की होड़ मच गई और देखते ही देखते पूरा चौक फ्लेक्स से पट गया है। पंडित सुंदरलाल शर्मा चौक को देखने के बाद ऐसा लगता है कि यह छत्तीसगढ़ के गांधी का चौंक नहीं बल्कि विज्ञापन लगाने का चौंक हो गया है। गत दिनों पंडित सुंदरलाल शर्मा के ऊपर देशभक्ति से ओतप्रोत एक गीत का निर्माण किया गया है जिनके शूटिंग के लिए कलाकार राजधानी से चलकर सीधे राजिम पहुंचे थे परंतु निर्माता निर्देशक ने चौंक की स्थिति को देखकर अपनी कैमरा निकालने से पहले ही उन्हें अंदर रखना ज्यादा उपयुक्त समझा और वह बिना शूटिंग किए ही वापस लौट गए। उनका कहना था कि यदि मैं इनका शूटिंग करूं तो पंडित सुंदरलाल शर्मा की प्रतिमा कम दिखेगा और बैनर पोस्टर ज्यादा आएंगे इससे हमारा शूटिंग करना ना करना एक बराबर हो जाएगा। बताना होगा कि पंडित सुंदरलाल शर्मा को जानने के लिए सीधे राजिम शोध के छात्र के अलावा महापुरुषों पर जीवनी लिखने वाले कवि एवं साहित्यकार तथा लेखक पहुंचते रहते हैं।सुंदरलाल शर्मा चौक की स्थिति से वाकीब होकर कोसना नहीं भूलते। पढ़ने लिखने वाले छात्र-छात्राएं भी यही मानकर चलते हैं कि पंडित सुंदरलाल शर्मा चौंक अर्थात विज्ञापन लगाने का सबसे सुंदर जगह। स्थानीय प्रशासन की बेरुखी के चलते छत्तीसगढ़ के महापुरुष पंडित सुंदरलाल शर्मा चौंक की यह हालत हर किसी को खल रही है। अब तो लोग यह मांग करने लगे हैं कि स्थानीय प्रशासन यदि इनका संरक्षण नहीं कर सकते तो जिला प्रशासन इसे अपने अंदर में लेते हुए इनकी सुध लें। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि चौक पर विज्ञापन लगाने वाले पर सीधे दंड का प्रावधान किया जाए। ज्ञातव्य हो कि पंडित सुंदरलाल शर्मा का जन्म 21 दिसंबर 1881 को शहर से लगे हुए गांव चमसुर में हुआ था। छत्तीसगढ़ में जन जागरण तथा सामाजिक क्रांति के अग्रदूत थे। वह कवि, सामाजिक कार्यकर्ता, समाज सेवक, इतिहासकार, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उनके द्वारा लिखित छत्तीसगढ़ी दानलीला देशभर में चर्चित हुई और उन्होंने साहित्य जगत में राजिम सहित पूरे छत्तीसगढ़ का नाम बढ़ा दिया। प्रदेश सरकार द्वारा इस महापुरुष के सम्मान में प्रतिवर्ष राज्य स्तरीय सम्मान दिया जाता है। बिलासपुर में इनके नाम से विश्वविद्यालय है तथा अनेक संस्था एवं समितियां संचालित है। इनके जयंती पर कई दिनों तक के लिए लगातार प्रदेश भर में कार्यक्रम होते हैं। इस धरोहर के चौक की देखरेख नहीं करना चिंता का विषय बनता जा रहा है। कहना होगा कि इसी चौक से होकर जिले के बड़े अधिकारी सहित जनप्रतिनिधि राजधानी के लिए जाते हैं तथा गरियाबंद जिला मुख्यालय इसी चौक से होकर निकलते हैं बावजूद इसके किसी का ध्यान नहीं जाना बहुत बड़ा प्रश्न बन गया है।

Leave a Reply

Your email address will not be published.