लोक रागनी रिखी क्षत्रिय और लोक कलाकार रजनी रजक के कलाकारों ने दी मनमोहन प्रस्तुति
राजिम। माघी पुन्नी मेला मुख्य मंच पर सांस्कृतिक बेला में छत्तीसगढ़ की बेटी कहे जाने वाली पंडवाणी गायिका ऋतु वर्मा ने महाभारत प्रसंग के अंतर्गत द्रोपति और कृष्ण भगवान के संवादों को अपने चिर-परिचित अंदाज में वर्णन किया। इस प्रसंग को सुन कर दर्शक भाव-विभोर हो गए। इस पंडवाणी गायन के शैली के लिए दर्शकों द्वारा तालियों से सम्मान किया गया। इसी बीच मुख्य मंच पर स्थापित श्रीराजीव लोचन के प्रतिरूप की पूजा-अर्चना पं. परिषद के द्वारा किया गया। इसके बाद भिलाई से आई लोक कलाकार रजनी रजक द्वारा ढ़ोल-मारू लोकगाथा की प्रस्तुति दी। इसमें रजनी रजक द्वारा राजा ढ़ोल और मारू रानी के जीवन के बारे में गीतों के माध्यम से दर्शकों को सुनाया। इन गीतों को भरथरी गीत कहते है। ढ़ोल-मारू के प्रेम प्रसंग की जीवांत भाव को महसूस कर दर्शक भाव विभोर हो गए। स्वरांजली, तंुलसी चैरा के नन्हें कलाकार अविराज सिंह ने अपनी पहली गीत गांव अयोध्या जैसे लागत हे…की दी। चोला माटी के हे राम…, चिट्ठी न संदेशा तुम कहां चले गए आदि गानों की प्रस्तुति कर इस दुनिया से विदा हुई मशहुर गायिका लता मंगेशकर संगीकार बप्पी लहरी और छत्तीसगढ़ के महान साहित्यकार दानेश्वर शर्मा के प्रति अपनी श्रद्धांजलि के स्वरूप गाया गया। मंच पर कार्यक्रम की अंतिम प्रस्तुति छत्तीसगढ़ के प्रसिद्ध लोक रागनी रिखी क्षत्रिय ने दी। बस्तर देवता की उपासना कर गीतों की शुरूआत की। झूपत आबे ओ दाई… ऐ कोकई कांटा ओ… ददरिया गीतों की प्रस्तुति दी। इसी के साथ लोक रागिनी के संचालक रिखी क्षत्री द्वारा कर्मा नृत्य रूनझून बाजे तोर पांव के पैरी… प्रस्तुत कर दर्शकों का मन मोह लिया। कलाकारों का सम्मान स्थानीय जनप्रतिनिधियों द्वारा स्मृति चिन्ह भेंटकर किया गया।