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बरबटी, भिंडी की कीमत थोक सब्जी मंडियों में किसानों को दे रही है घाटा,बरबट्टी ₹6 किलो तो भिंडी ₹4 किलो में ही बमुश्किल बिक रहे

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”संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम । अंचल में बड़ी संख्या में सब्जी वाली लगाई गई है। इन सब्जियों के फसलों का उत्पादन करना भी वर्तमान में जोखिम हो गया है। कभी किसी की अच्छी कीमत मिलती है तो कभी किसी सब्जियों के भाव पूरी तरह से गिर जाते हैं जिससे उनको नुकसान उठाना पड़ता है। कम अवसर होता है जब किसानों को सब्जियों की अच्छी कीमत मिल पाती है वर्तमान में टमाटर पसरा बाजार में 40 से ₹50 किलो बिक रहा है। इस समय अधिकांश किसानों के बाड़ी में फसल नहीं है भीषण गर्मी के चलते वह मिट्टी को धूप दे रहे हैं। सब्जी मंडियों में 20% टमाटर के लोकल आवक हैं तो पूरे 80% बाहर से आ रहे हैं। पिछले साल टमाटर पर किसानों को मुंह की खानी पड़ी थी। उत्पादन अच्छी हुई थी लेकिन कीमत नहीं मिल पाई और उन्हें ₹1 किलो में ही पूरे टमाटर को सेल करना पड़ा यहां तक की टमाटर तोड़ने वाले मजदूरों की मजदूरी भी निकाल पाना मुश्किल होता था। इसलिए कई किसानों ने टमाटर की फसल ही नहीं लगा है। दूसरी ओर बरबटी, भिंडी की कीमत थोक सब्जी मंडियों में घाटा दे रही हैं। बरबट्टी ₹6 किलो तो भिंडी ₹4 किलो में ही बमुश्किल बिक रहे हैं कई किसान तो मंडियों में ही अपनी सब्जी को छोड़कर वापस आ रहे हैं। किसान हरीराम साहू से चर्चा किया तो उन्होंने बताया कि भिंडी को प्रतिदिन तोड़ना पड़ता है यदि इन्हें नहीं तोड़ा गया तो वह खराब हो जाती है और नहीं तोड़े तो अच्छी फसल की कामना भी नहीं कर सकते। इनको तोड़ने में ही हाथ छील जाते हैं इसलिए मोटी कपड़ा या फिर प्लास्टिक का दस्ताना लगाते हैं सुबह 5:00 बजे से तोड़ाई का काम करते हैं जैसे तैसे 8:00 बज जाते हैं उसके बाद सब्जी मंडी में ले जाते हैं वहां बिक गई तो अच्छी बात न बिकी तो नुकसान उठाना पड़ता है। 1 एकड़ जमीन पर बरबटी की फसल लगाएं हेमलाल पटेल ने बताया कि क्या करें साहब खाद, पानी, दवाई, मजदूरी दर, ट्रांसपोर्टिंग किराया सभी बढ़ा हुआ है ऐसे में सब्जियों की कीमत नहीं मिलने से हमारे हाथ खाली हो गए हैं। परिवार के पालन पोषण की चिंता तथा तेल से लेकर हर सामानों की कीमत बढ़ी हुई है राशन की जुगाड़ कैसे करें। समझ में नहीं आ रहा है। बताया कि जमीन की जुताई के लिए ट्रैक्टर किराए पर मंगाए थे उसके बाद पानी भी पैसे से ही खरीदे हैं। यूरिया, डीएपी की कीमत बढ़ी हुई है इन्हें खरीदने के लिए इधर उधर से बमुश्किल जुगाड़ किए हैं। मजदूरों का मजदूरी दर जैसे तैसे करके इंतजाम किए हैं। लागत मूल्य बढ़ गई है लेकिन कीमत कहीं नहीं मिलने के कारण मैनेज करना मुश्किल हो गया है। किसान जीवन साहू, विजय साहू, नीलकंठ ने कहा कि सब्जियों का भी समर्थन मूल्य होना चाहिए। ताकि किसानों को घाटा न उठाना पड़े। ऐसे ही अंचल में ढेरों की शान है जो मात्र सब्जी बाड़ी के ऊपर ही निर्भर है। साल भर बाद सब्जी बड़ी होते हैं और इन्हीं से जो आय प्राप्त होती है उससे घर परिवार चलती है। राजिम,चौबेबांधा,सिंधौरी, बरोंडा, श्यामनगर, सुरससबांधा, तर्रा, कोपरा, धूमा, देवरी, पीतईबंद, बकली, परसदा जोशी, सेम्हरतरा, बेलटुकरी, भैंसातरा, कौंदकेरा, किरवई, धमनी, बोरसी, लफंदी, पथर्रा, नवाडीह, नवागांव, बुडेनी, भेन्डरी, नारी, नवापारा, चंदना, चमसुर आदि ढेरों गांव के सैकड़ों की शान बड़ी संख्या में सब्जी बॉडी पर ही निर्भर है। किसानों ने बताया कि सरकार हलाकि नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी योजना चला रही है। परंतु बाड़ी योजना से या अभी तक लाभान्वित नहीं हुए हैं। मात्र कागजों पर ही योजनाएं क्रियान्वित हो रही है। किसानों को इस योजना से कोई फायदा नहीं मिला है यह किसान कहते हैं कि हमें भी इस योजना से फायदा मिलना चाहिए परंतु शासन प्रशासन के जिम्मेदार किसानों की ओर पलट कर भी नहीं देख रहे हैं।

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