महिलाएं कमरछठ व्रत रखने के लिए सप्ताह भर से तैयारियों में जुटी शनिवार को महिलाएं रखेंगी कमरछठ व्रत

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राजिम । नगर सहित अंचल में कमरछठ व्रत रखने के लिए माताएं विगत सप्ताह भर से तैयारियों में जुटी हुई है। आज भी पसहर चावल₹50 किलो में बिका। उल्लेखनीय है कि भाद्र मास कृष्ण पक्ष की षष्ठी को यह व्रत मनाया जाता है। यह व्रत स्त्री प्रधान है इसे कमरछठ, हलषष्ठी, ललहीछठ और ललिता व्रत के नाम से भी जाना जाता है पुत्र व सुहाग की मंगल कामना से महिलाएं इस कठिन व्रत का पालन करती है। सुबह घर आंगन को लीपकर साफ सफाई की जाती है स्नान पूर्व मवहा की दातुन किया जाता है पश्चात पूजा सामानों की तैयारियां शुरु होती है सेन के पास से दोना पत्तल इकट्ठा करते है धान को आग में सेंककर लाई बनाया जाता है सात प्रकार के अन्न गेहूं, चना, लाई, ज्वार, बाजरा, मसूर एवं मोहे को सगरी में समर्पित करने की परंपरा है। दोपहर बाद सामूहिक रूप से किसी चौक चौराहे या धार्मिक स्थल में एकत्रित होते हैं यहां पर जल कुंड के रूप में दो गहरे कुएं खोदे जाते हैं जिनके चारों ओर गोलाकार बेर, गूलर, पलाश, कुश की टहनियों को गढ़ाकर सुसज्जित करते हैं इससे सगरी की आभा और अधिक बढ़ जाती है। नए कपड़े पहनकर पूजा सामग्री सहित पात्र में पानी लेकर माताएं पूजा आराधना करती है। पानी को सगरी में डालते हैं और देखते ही देखते सगरी पानी से लबालब हो जाता है। निसंतान महिलाएं पुत्र की कामना लेकर जोड़ा नारियल छोड़ते हैं। कथाकार पंडित के द्वारा व्रत पर्व की महिमा का वर्णन किया जाता है। एक कथा आती है कि एक ग्वालिन जिनके 4 पुत्र थे उनको घर में छोड़कर अकेली दूध बेचने के लिए नगर से निकल पड़ी। गाय का दूध उन्होंने खूब बेची और वापस घर आकर देखा तो उनके चारों पुत्र मरे पड़े हुए थे तभी उनको ख्याल आया कि आज कमरछठ है तथा इस दिन गाय का दूध वर्जित है पश्चाताप करने लगी ग्वालिन तत्काल भैंस का दूध देने के लिए चली गई और गाय का दूध वापस लेकर भैंस का दूध थमाया। इस तरह जब घर आकर देखा तो उनके पुत्र जीवित हो गया था। पूजा स्थल से आने के बाद असर चावल का प्रसाद सबसे पहले गाय चिड़िया चूहा कुत्ता बिल्ली को देते हैं बाद में स्वयं ग्रहण करके उपवास का प्रसाद ग्रहण करती है बताया जाता है कि इस दिन हल के उपयोग से उत्पन्न हुए अनाज का सेवन नहीं करते हैं।

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