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छत्तीसगढ़ी राजभाषा दिवस पर जिला रत्नांचल साहित्य परिषद ने किया आलेख लेखन

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“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम। जिला रत्नांचल साहित्य परिषद ने आलेख लेखन का आयोजन किया जिसमें लेखकों ने बढ़ चढ़कर भाग लिया। छत्तीसगढ़ी भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्जा प्राप्त करने के लिए क्या करें इस विषय पर अलग-अलग विचार आएं।पटल प्रभारी कवि एवं साहित्यकार संतोष कुमार सोनकर मंडल ने बताया कि राज्य बनने के बाद प्रदेश सरकार ने पिछले सात-आठ वर्षों के अंतराल में छत्तीसगढ़ी राजभाषा आयोग का गठन किया और संविधान की आठवीं अनुसूची में छत्तीसगढ़ी भाषा को दर्ज कराने के लिए प्रयास करते रहे। इस बीच अनेक साहित्य उभर कर सामने आए। प्रतिदिन सैकड़ों साहित्य लिखे जा रहे हैं। अब तो लोग सरकारी कार्यालयों से लेकर स्कूल कॉलेज तथा अन्य प्रदेशों में भी छत्तीसगढ़ी भाषा सुनने को मिलती है यह भाषा को पोठ बनाने का काम कर रही है। जिला रत्नांचल साहित्य परिषद के अध्यक्ष जितेंद्र सुकुमार साहिर ने लिखा है कि भाषा अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम है। भाषा से संस्कृति और सभ्यता की पहचान होती है। वर्तमान समय में आठवीं अनुसूची में छत्तीसगढ़ी भाषा को शामिल करने के लिए कई संगठन आवाज उठा रही है मगर सरकारें किसी की नहीं सुन रही है। एक तरफ यह हवाला दिया जा रहा है कि छत्तीसगढ़ी में साहित्य नहीं है भरपूर साहित्य की कमी है मानक नहीं है शब्दकोश नहीं है लेकिन मैं बता देना चाहता हूं कि आज छत्तीसगढ़ी में मानक एवं शब्दकोश की कई पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं। छंदबद्द कविताएं लिखी जा रही है। उन्होंने आगे लिखा है कि हर राज्य की अपनी भाषा है और वह घर परिवारों में उन्हीं भाषाओं का प्रयोग करते हैं लेकिन छत्तीसगढ़ में हम अपनी भाषा के महत्व को न देकर हिंदी या अंग्रेजी में बात करना अपनी शान समझते हैं जब तक हम इन्हें व्यवहार में शामिल नहीं करेंगे तब तक भाषा का विकास और महत्व शासन तक नहीं पहुंचेगी। पांडुका लेखक पुरुषोत्तम चक्रधारी ने बताया कि भारतीय संविधान में 22 भाषाओं को राजभाषा का दर्जा प्राप्त हुआ है। छत्तीसगढ़ी इसी क्रम पर खड़ा हुआ है। इन्हें राजभाषा का दर्जा दिलाने के लिए हम सबको एकजुट होकर प्रयास करना जरूरी है। छत्तीसगढ़ी भाषा अत्यंत समृद्ध है इसमें कोई दो मत नहीं है। गरियाबंद के आदित्य गुप्ता ने लिखा है कि आज भी कई ऐसे परिवार है जो ज्यादातर हिंदी और अंग्रेजी शब्दों का उपयोग करते हैं। छोटे बच्चे जब स्कूल जाते हैं तब बाय-बाय कहते हैं। इस परंपरा को तोड़ना होगा और ज्यादा से ज्यादा छत्तीसगढ़ी शब्दों का उपयोग करना होगा, तभी हम सफलता की ओर अग्रसर होंगे। कोपरा के लेखक फनेंद्र साहू बताते हैं कि भाषा हमेशा प्रेम और उत्साह को बनाए रखते हैं राजभाषा दिवस के दिन ही हम चिल्लाते हैं बल्कि हमें तो पूरे साल भर इसके लिए मेहनत करनी चाहिए ताकि छत्तीसगढ़ी की आवाज राजधानी के गलियारों तक गूंजे और इन्हें आठवीं अनुसूची में दर्ज करने के लिए विवश हो जाए। लोहरसी के कमलेश कौशिक का कहना है कि छत्तीसगढ़ी को राजभाषा का दर्जा देने में प्रयास उस ढंग से नहीं हो पा रहा है जिनका नतीजा है कि हमें इंतजार करने की जरूरत हो गई है। सरकार ने राजभाषा आयोग का गठन भी किया है आयोग के सचिव व अध्यक्ष भी बनाए हैं। सबको साथ लेकर पुरजोर मांग होना चाहिए इससे छत्तीसगढ़ की पहचान भी बढ़ेगी।

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