कंठ में जहर को ग्रहण करने के कारण नीलकंठ कहलाए
“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”
राजिम। मानव उत्थान सेवा समिति आश्रम समीप लोमश ऋषि आश्रम में शांति व सदभावना के अग्रदूत, मानव धर्म के प्रणेता परम पूज्य सतपाल महाराज की प्रेरणा से महाशिवरात्रि के पावन पर्व के अवसर पर शिव महापुराण कथा का आयोजन 27 व 28 फरवरी एवं 1 मार्च को आयोजित किया गया। महाशिवरात्रि के दिन हजारों की संख्या में उपस्थित भक्त समुदाय को मुख्य वक्ता महात्मा दीप्ति बाई एवं उपस्थित संत बैजनाथानंद, प्रभुचरणानंद धारानंद एवं आत्मप्रभा द्वारा सारगर्भित रूप से भगवान शिव पुराण के माध्यम से उपस्थित भक्त समाज को समझाया कि भगवान शिव ने पावन नाम का स्वयं भजन व सुमिरन किया। उसी नाम के प्रभाव से जहर को अपने कंठ में धारण करने के कारण नीलकंठ कहलाए। काशी में लोगों की मुक्ति हेतु उसी सनातन नाम का प्रचार कर लोगों को उपदेश दिया ।भगवान शिव के सभी साज अमंगल होने पर भी नाम की महिमा से मंगलमय हो गए। माता पार्वती को उसी पावन नाम का उपदेश किया। हमें भी उस अविनाशी, सनातन नाम का ज्ञान समय के महान महानपुरुष के शरण में जाकर प्राप्त करना चाहिए। वह पावन नाम शब्दो का विषय नहीं है, वाणी द्वारा उसका उच्चारण नहीं किया जाता है वह केवल अनुभूति का विषय है जो निरंतर हमारे श्वासो के माध्यम से मन को नाम में लगाकर अनुभव किया जा सकता है केवल सत्संग के माध्यम से मानव को समझ आता है। इसीलिए समस्त धर्म ग्रंथों, शास्त्र पुराणो एवं महान पुरुषों द्वारा सत्संग की महिमा को अनंत बताया । जीवन में सबसे बड़ा लाभ संत व सत्संग की प्राप्ति बताया गया है । भगवान शिव भगवान के ध्यान को त्याग कर सत्संग का आयोजन होने पर संतों के सानिध्य में सत्संग का श्रवण करते हैं । हम सभी मनुष्य को सत्संग की प्राप्ति को सर्वाधिक महत्व देना चाहिए, तभी हमारा जीवन सफल व सार्थक हो सकेगा। ऐसा समस्त धर्म ग्रंथों, संतों, पुराणों एवं महान पुरुषों का मत है । उपस्थित भक्तों के लिए निशुल्क भंडारा की व्यवस्था भी की गई थी । उक्त कार्यक्रम में डा पी एल तारक, अनिश दीवान, अशोक नेताम, गणेश साहू, एम आर वर्मा, सत्यप्रकाश साहू, शरद गंजीर, हेमंत साहू, अनिल रेंगे, येमलाल साहू, लोकचन्द पटेल ,पुरुषोत्तम क्षत्रिय,अश्वनी कुर्रे, विजय लक्ष्मी साहू, सीमा गंजीर, श्रीमती अन्नू रेंगे, सरिता साहू का योगदान सराहनीय था। उक्ताशय की जानकारी अनिश दीवान द्वारा दी गई ।