दुआ के लिए उठे हाथ,इबादत से महकी शब-ए-बारात, हुई विशेष नमाज
धमतरी । हजारों रातों से अफजल शबे-ए-बारात को मुस्लिम भाईयों ने बड़े खुलूस और मोहब्बत से मनाया। इस मौके पर विभिन्न मस्जिदों में विशेष नमाज अदा की गई। रोजी-रोटी में बरकत, उम्र में बरकत और बला-परेशानियों से महफूज रखने के लिए दुआएं की गई। कब्रस्तान में जाकर मरहूमिन की मगफिरत के लिए दुआ मांगी गई। उल्माएंदीन का कहना है कि शब-ए-बारात खुदा की अता की गई एक बेहतरीन रात है, जिसमें इबादत करने से जिंदगी पूरनूर हो जाती है। उर्दू कैलेंडर के अनुसार शव्वाल माह की 15वीं तारीख शब-ए-बारात कहलाती हैं। शुक्रवार को शहर के मुस्लिम भाईयों ने परंपरागत ढंग से शब-ए-बरात मनाया। शब-ए-बरात के मौके पर बाद नमाज मगरीब मुस्लिम भाईयों ने शहर की जामा मस्जिद, हनफिया मस्जिद, मदीना मस्जिद और मस्जिद गरीब नवाज समेत अपने-अपने घरों में 6 रकात नमाजें नफील पढ़ी। उन्होंने अपने ईमान की सलामती के साथ रोजी-रोटी में बरकत, उम्र में बरकत और बूरी मौत तथा बलाओं से महफूज रखने की दुआ मांगी। जामा मस्जिद के सादिक पेश इमाम मौलाना गौस रजा कादरी ने बताया कि शब एक फारसी शब्द है, जिसका अर्थ रात हैं और बरात अरबी शब्द हैं, जिसका अर्थ निजात यानि छुटकारा पाना है। शब-ए-बरात की खास अहमियत इसलिए हैं कि यह हजारों रातों से अफजल हैं। इस रात की गई इबादत अल्लाहताला जरूर कबूल फरमाता हैं। मुफ्ती जुबेर अहमद ने शब-ए-बरात की अहमियत पर तफसील से रोशनी डालते हुए कहा कि शब-ए-बरात में की गई इबादत और मांगी गई दुवाएं हमारी जिंदगी को रोशन तो करती है, साथ ही मगफिरत का जरिया भी बन जाती है। बड़े खुशनसीब होते हैं, वो लोग जो शब-ए-बरात की अहमियत को समझते हुए सच्चे दिल से इबादत करते हैं और अपने गुनाहों के लिए अल्लाह-ताला से माफी मांगते हैं। भाईचारगी के जज्बात हो मदीना मस्जिद के साबिक पेश इमाम मौलाना तनवीर रजा ने कहा कि इस्लाम एक ऐसा समाज बनाना चाहता है, जिसमें मोहब्बत हो, इंसानियत और भाईचारगी के जज्बात हो। सुकून और अमन हो। एक-दूसरे की लोग इज्जत करें और जिंदगी के हर मोड़ पर खुशी व गम में बराबर के भागीदार हो। इस्लाम मोहब्बत और भाईचारगी का संदेश देता है। शब-ए-बरात के मौके पर कब्रस्तान में कुरानख्वानी हुई। तमाम मरहुमिनों के लिए दुवाएं मगफिरत भी की गई। मदरसा गौसिया रजविया के कारी हाफिज मौलाना अल्ताफ रजा ने फरमाया कि अल्लाह-ताअला के रसूल कब्रों की जियारत करने जाते और उनके इसाले सवाब के लिए दुवा करते। जिंदगी की सच्चाई यही है कि एक दिन हमें भी इस दुनिया से जुदा हो जाना है। सच्चे दिल से मांगी गई दुआ मरहुमिनों के निजात का जरिया बन जाती है।
”वैभव चौधरी”