मूर्तियों को आकार देने 14 घंटे प्रतिदिन काम में लगे हैं मूर्तिकार
राजिम । रविवार से नवरात्र पर्व मात्र 11 दिन ही शेष बचा हुआ है। 7 अक्टूबर को जगत जननी मां दुर्गा की नवरात्र पर्व प्रारंभ हो जाएगा। इस बार यह पर्व 8 दिनों की होगी। 10 अक्टूबर को पंचमी तथा 13 अक्टूबर को अष्टमी का अनुष्ठान होगा। कुंवार नवरात्र पर्व को लेकर भक्तों में बड़ी उत्सुकता है। इस बार मूर्तिकारों के पास ऑर्डर की कमी नहीं है जबकि पिछली बार कोरोना के कारण टोटा पड़ा हुआ था। शहर में तीन स्थानों पर पंडाल लगाकर मूर्तियों को आकार दिया जा रहा है। दो जगह मेला ग्राउंड में मूर्तियां बनाई जा रही है तो एक जगह गरियाबंद रोड पर गोवर्धन चौक के पास महेश चक्रधारी मूर्ति बनाने में जुटे हुए हैं। उन्होंने बताया कि ऑर्डर अभी भी प्रतिदिन आ रहे हैं लेकिन हम ग्राहक को अच्छी एवं मजबूत मूर्तियां देना चाहते हैं इसलिए उन्हें वापस दूसरे मूर्ति कारों के पास भेज रहे हैं। अभी 50 मूर्तियों के ऑर्डर मिल चुके हैं उन्हीं के आधार पर मूर्तियों को गढ़ने का काम द्रुतगति से जारी है। संख्या ज्यादा होने से पंडाल छोटी पड़ गई है। इसलिए पंडाल के बाहर भी मूर्तियों को आकार दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास रायपुर के मूर्तिकार भी आकर मूर्ति बनाने में लगे हुए हैं इनके अलावा आसपास के मजदूर मूर्तियों को प्रतिदिन काम कर पूरी करने में लगे हुए हैं। इनके लंबाई, चौड़ाई के साथ ही सिंह,राक्षस व अन्य देवियों की मूर्तियां समितियों के लोगों के ऊपर निर्धारित है। उन्होंने जैसा आर्डर दिए हैं तथा जिस आकार एवं साइज बताए हैं उन्हीं के आधार पर पूरी कर रहे हैं। रमेश चक्रधारी, लोकेश चक्रधारी, अमन चक्रधारी, लूकेश चक्रधारी ने बताया कि अभी 14 घंटे काम कर रहे हैं समय जैसे-जैसे नजदीक आएगा उसके आधार पर काम का समय बढ़ जाएगा। हमारा एक ही मकसद है कि हम समय में दिए हुए आर्डर को पूरा करें। नवरात्र के पहले सभी मूर्तियां बनकर तैयार हो जाएगी। भोला पटेल, किशन निषाद, यादराम साहू, शिवा चक्रधारी, रवि साहू, हरि गरुर, शिवा विभार, मुकेश ध्रुव ने बताया कि मूर्तियों के निर्माण के लिए सबसे पहले बांस या फिर लकड़ी का सांचा बनाना पड़ता है उसके बाद पैरा से ढांचा तैयार करते हैं पश्चात मिट्टी का लेप चढ़ाया जाता है। खासतौर से काली मिट्टी का ज्यादातर उपयोग करते हैं। इन पर दो प्रकार की मिट्टी जिनमें पहला साइज मिट्टी तथा दूसरा फिनिशिंग मिट्टी है। इनका लेप लगातार चढ़ाते हैं ताकि इनको अच्छी लुक प्रदान किया जाए। सूखने के बाद पुट्टी किया जाता है फिर रंग पेंट के बाद श्रृंगार चढ़ाकर फाइनल करते हैं। रमेश चक्रधारी ने बताया कि एक मूर्ति को बनाने के लिए दो व्यक्ति को 3 से 4 दिन का समय लगता है। इसमें कड़ी मेहनत है तथा सफाई पर विशेष ध्यान देना पड़ता है। वैसे लोग सीधे मोबाइल से अलग-अलग प्रकार से जगत जननी मां दुर्गा के दृश्य भेजते हैं उन्हीं फोटो को देखकर और आकार देते हैं और उन्हीं के आधार पर कीमत तय होती है। आज से पांच साल पहले मूर्तियों की कीमत 5000 थी लेकिन अब बढ़ती महंगाई के कारण 8 से 10 हजार साधारण साइज की हो गई है। उन्होंने आगे बताया कि निर्माण में पहले हम लोगों को पैसा फंसाना पड़ता है। बाद में कमाई तो हो जाती है। लागत मूल्य बढ़ गई है। शासन-प्रशासन जिस तरह से बांसवार को बांस कम कीमत पर मुहैया कराते हैं ठीक उसी तरह से मूर्तिकारों को भी उनके कार्ड बना कर कम कीमत पर मुहैया कराने की प्रशासन से इन्होंने अनुरोध किया है। उल्लेखनीय है कि इन मूर्ति कारों को पिछले 2 सालों से कोरोना गाइडलाइन के कारण लगातार नुकसान उठाना पड़ा है। डेढ़ से दो लाख नुकसान होना उन्होंने बताया लेकिन इस बार अच्छी आर्डर होने के कारण भरपाई होने का अंदेशा जाहिर किया है। इन दिनों मूर्तिकार परिवार सहित मूर्ति बनाने में लगे हुए हैं इनकी मेहनत एवं जवाबदारी खासा प्रभावित कर रही है। इधर समितियां चौक चौराहों पर मूर्तियां बिठाने के लिए साफ सफाई के साथ ही बांस बल्ली लगाने का काम शुरू कर दिए हैं।
“संतोष कुमार सोनकर की रिपोर्ट”