राजिम माघी पुन्नी मेला के मुख्यमंच पर लोक प्रयाग के कलाकारों ने लुप्त हो रही संस्कृति को जीवित करने का प्रयास किया
राजिम। माघी पुन्नी मेला के मुख्य मंच पर सांस्कृतिक बेला की शुरूवात संध्या 5 बजे से शुरू हुई। इसमें छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक प्रसिद्ध पंथी नृत्य दिनेश जांगडे द्वारा परंपरागत वेशभूषा के साथ-साथ पंथी मे दिखाए जाने वाले अश्चर्यजनक करतब दिखा कर दर्शकों को अपनी ओर आर्किर्षत किया। इसके बाद कुम्हारी से आये महेश वर्मा के लोकमया ने भी सांस्कृतिक मंच में अपनी छटा बिखेरने मे सफलता हासिल की। उनकी पहली प्रस्तुति छत्तीसगढ़ महतारी़… ये गीत ने तो कमाल मचा दिया। दर्शकों ने गुनगुनाना आरम्भ कर दिया। क्योकि इस गीत ने राजिम मे बैठे-बैठे छत्तीसगढ़ का दर्शन करा दिया। अगली प्रस्तुति में जसगीत के रूप में माता मोर नाचे रे…..ने दर्शकों को झूमने के लिए मजबूर कर दिया। हमारे छत्तीसगढ़ में बहुत से गीत है जिसमें मुख्यरूप से कर्मा, ददरिया की प्रस्तुति महेश वर्मा के सहयोगी कलाकारों के द्वारा दी गई, तो सांस्कृतिक मंच छत्तीसगढ़ परम्परा से परिपूर्ण हो गया था।
इसी के साथ लोक मया के राकेश और यशवंत ठाकुर द्वारा लघु नाटक की प्रस्तुति दी गई जिसमें ऐसे संवादों का उपयोग हुआ जिसको सुन कर दर्शक इतने हँसे कि पेट मे दर्द होना शुरू हो गया। जैसे ही हास्य कलाकारों ने संवाद में कहा कि ऐहा ले दे के बने हे सरपंच इसके अर्थ को समझ कर दर्शक खूब हँसे और आनंदित हो कर नाटक का आनंद लिए। नाटक का आधार गोधन पर आधारित था। इसी के साथ लोक मया के कलाकार रीता और सीता वर्मा के द्वारा बही बना दिये बुन्देला जैसे ही यह गीत मंच पर आरम्भ हुआ तो कई बुजूर्ग दर्षक अपने जवानी के दिनों मे जब रेडियो का जमाना था। तो ऐसी गीत केवल आकाषवाणी रायपुर से सुनने को मिलता था। लोक प्रयाग की पहली प्रस्तुति माँ दुर्गा की उपासना से शुरू हुआ। भवानी दुर्गा दाई……. इस गीत मे नृत्य कर रहे कलाकारों ने छत्तीसगढ़ी वेषभूषा धारण किये थे। अरपा पैरी के धार महानदी के अपार ये राजकीय गीत की प्रस्तुति सांस्कृतिक मंच पर दे कर अरपा, पैरी, महानदी और इंदरावती के छायाचित्रों को सांस्कृतिक मंच पर रख कर दर्षकों को दर्षन कराया। माटी मोर भुईया….गीत को बाँसगीत के माध्यम से गाया गया ये लोकप्रयाग का एक अच्छा प्रयास है कि बाँसगीत गाने वाले लुप्त हो रहे है लेकिन इनका प्रयास इन्हे पुनः जीवित करने का है। मुख्य मंच के समीप बैठे दर्षकों ने जब ये गीत सूने जै गंगान हाथ उठा कर दान ने उन्हे अपने बचपन का दिन याद आ गए। जब राजिम मेला शुरू होता था तो मोहल्ला में जै गंगान कहते हुए भीक्षा मांगते थे जो अब पूर्णतः लुप्त हो गये है। लेकिन कला मंच लोक प्रयाग संस्था का प्रयास बहुत ही सराहनी रहा। इसके बाद कारी बादर के कजरा लगा ले…गीत ने मंच पर धूम मचा ली। और खूब तालियाँ बटोरी लोक प्रयाग सांस्कृतिक मंच का राजिम माघी पुन्नी मेला का एक ऐसा सांस्कृतिक विरासत है इसमें हमे नया पन देखने को मिला।