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साधुओं का लक्षण है कि वह बात-बात में क्रोधित नहीं होते: पंडित कृष्ण कुमार तिवारी

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“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम । आग के तीन प्रकार होते हैं जिनमें पावक,पावमान और सूची है। साधुओं का भूलकर भी अपमान नहीं करना चाहिए, उनके मुख से निकला हुआ एक एक शब्द बहुत कीमती होता है। सही साधु का लक्षण है कि वह बात बात में क्रोधित नहीं होते। वैसे भी जीवन में किसी का अपमान नहीं करना चाहिए बल्कि सबका सम्मान करना चाहिए। इनके लिए छोटा या बड़ा ना समझे, बल्कि सबको बराबर की नजरिया से देखें। ईश्वर ने हर जीव को हाड मास का बनाया है तो फिर भेद किसलिए। उक्त बातें शहर के पुरानी हटरी चंडी मंदिर के सामने चल रहे श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह के तीसरे दिन पाटन से पहुंचे भगवताचार्य पंडित कृष्ण कुमार तिवारी ने कही। उन्होंने महाराज पृथु के प्रसंग पर कहा कि भूमंडल में सर्वप्रथम सर्वाधिक रूप से राजशासन स्थापित करने के कारण उन्हें पृथ्वी का प्रथम राजा माना गया है। यह वेन का पुत्र था। साधु शीलवान अंग के पुत्र वेन ने सिहासन पर बैठते ही यज्ञ कर्म आदि बंद कर दिए। उनके अत्याचार से लोग परेशान हो गए तब ऋषियों ने मंत्रपूत कुशो से उसे मार डाला। सुनीधा ने पुत्र का शव सुरक्षित रखा जिसकी दाहिना जंघा का मंथन करके ऋषियों ने एक नाटा और छोटा मुख वाला पुरुष उत्पन्न किया। उसने ब्राह्मणों से पूछा कि मैं क्या करूं। ब्राह्मणों ने निषीद (बैठ) कहा इसलिए उसका नाम निषाद पड़ा। उस निषाद द्वारा वेन के सारे पाप कट गए। बाद में ब्राह्मणों ने वेन की भुजाओं का मंथन किया जिसके फलस्वरूप स्त्री पुरुष का जोड़ा प्रकट हुआ। पुरुष का नाम पृथु तथा स्त्री का नाम आर्ची हुआ। आर्ची पृथु की पत्नी हुई। वह लक्ष्मी का अवतार थी। नवधा भक्ति में से एक भक्ति राजा पृथु ने किया। पंडित कृष्ण तिवारी ने आगे कहा कि पैसा कमाना बुरी बात नहीं है लेकिन उसे संग्रह करके रखना उनका उपयोग नहीं करना यह ठीक नहीं है। उन्हें धर्म-कर्म के अलावा परोपकार तथा अन्य कर्यो में लगाकर सदुपयोग कीजिए। क्योंकि जीव शरीर को छोड़ देगा और मन में पुण्य करने का विचार आएगा तब आप कुछ नहीं पता कर पाओगे पश्चात पछताने के अलावा और कुछ नहीं बचेगा। अर्थ को धर्म में लगाइए जब प्राण छूटेगा उसके बाद रेत के कण को भी हम अपने साथ नहीं ले जा सकते। मुट्ठी बांधे आए हैं हाथ पसारे जाएंगे। यदि आप धन को धर्म में बदलेंगे तो धर्म रूपी पुण्य जरूर जाएगा चूंकि पृथ्वी लोक में ही एक देश का पैसा दूसरे देश में नहीं चलता उन्हें बदलना पड़ता है जैसे भारत में रुपया चलता है लेकिन अमेरिका में वही डॉलर के रूप में परिवर्तित हो जाता है। चीन, पाकिस्तान, इंग्लैंड, यूनान, ऑस्ट्रेलिया, इराक, कुवैत सभी देशों में अलग-अलग मुद्रा प्रचलित है। ठीक इसी तरह से हमें धर्म-कर्म तथा परोपकार में अपना धन खर्च कर उनका अच्छा उपयोग कर सकते हैं। उन्होंने आगे कहा कि इस दुनिया में आने के बाद जीव माया मोह मैं सब कुछ भुल जाता है। एक निश्चित समय के बाद ईश्वर से अत्यधिक प्रेम कीजिए वैसे ईश्वर नाम रटन करने का कोई उम्र नहीं है। जवानी में ही व्यक्ति को धर्म स्थलों के दर्शन करने के लिए जाना चाहिए क्योंकि उस समय शरीर मजबूत रहता है अर्थ भी पास में रहता है। ईश्वर को कभी मत भूलिए जिस दिन वह हमें भूल जाएंगे उस दिन धरती लोक से हमें जाना पड़ेगा। इस मौके पर धार्मिक भजनों के तान पर श्रोतागण झूमते रहे तथा प्रमुख रूप से मुकेश अवसरिया, अनिल अवसरिया, राधेश्याम सेन, कवि अशोक शर्मा, संतोष साहू, त्रिवेणी नाग सहित बड़ी संख्या में श्रोता गण उपस्थित थे।

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