कृष्ण नाम का स्मरण सबसे बड़ी भक्ति है: पंडित जय प्रकाश शुक्ला
“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”
राजिम । नौ प्रकार की भक्ति होती है। कृष्ण नाम का स्मरण सबसे बड़ी भक्ति है। भगवान को प्राप्त करने के लिए कहीं जाने की जरूरत नहीं है बस उसे अपने मन मंदिर में बिठा लो। काम करते वक्त, रोटी बनाते समय, कहीं आते-जाते अर्थात हर क्षण ईश्वर नाम जाप जीवन के क्लेश को समाप्त कर देंगे। उक्त बातें चौबेबांधा में चल रहे श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह के पांचवे दिन उत्तरप्रदेश से पहुंचे पंडित जयप्रकाश शुक्ला ने कही। उन्होंने पूतना वध पर कहा कि कृष्ण तीन महीने के थे तभी पुतना वेश बदलकर उन्हें उठाकर ले गए। उन्हें दूध पिलाने के बहाने जहर पिलाने की तैयारी करके आई थी परंतु कृष्ण सबसे पहले उनके दूध पिए क्योंकि जहर पीना कृष्ण नहीं बल्कि शंकर का काम है शिवशंकर समुद्र मंथन के समय धरती से 14 रत्न निकले। उनमें से विष को धारण किया था। उनके शरीर से दूध खत्म हुई तब खून आना शुरू हुआ और इस तरह से पूतना मर गई। शरीर से प्राण निकलते ही नीचे जमीन पर गिरा तो वह छ: कोस लंबे चौड़े वर्गाकार क्षेत्रफल में गिरा। एक कोस में तीन किलोमीटर होता है इस तरह से 18 किलोमीटर में उनके देह फैल गए। नंदबाबा ने उन्हें टुकड़े टुकड़े करके जलाने का आदेश दिया। जब पुतना के शरीर जले तो बदबू नहीं बल्कि खुशबू का अहसास हुआ। उन्होंने बताया कि भगवान जिसके शरीर को छू देते हैं वह दिव्य हो जाता है इसलिए पूतना के शरीर से खुशबू आ रही थी। कृष्ण दयालु है कृपालु है इनके शरण को छोड़ने से किसका भला हुआ है। कृष्ण चार माह के हुए तब हिरण्याक्ष के पुत्र शक्ठासुर का उद्धार किया। वासुदेव के गुरु गर्ग ऋषि थे ज्योतिष की गणना इसी ऋषि की देन है। गर्भाधान से लेकर मृत्यु तक सोलह संस्कार होते हैं। पंडित शुक्ला ने आगे कहा कि कृष्ण के अनेक नाम है उन्हें जिस नाम से उनके भक्त याद करते हैं वह उसी के अनुसार ही मंगल करते हैं। हम अपने घर में जैसे माहौल देते हैं हमारे बच्चे भी उसी के आधार पर ढल जाते हैं। इसलिए घर परिवार में कभी भी बच्चों के सामने लड़ाई झगड़े या फिर कलह नहीं होना चाहिए। क्योंकि वह जो देखते हैं वही सीखते हैं हम अच्छे संस्कार देना तो चाहते हैं लेकिन खुद संस्कारित नहीं हो पा रहे हैं खुद को सुधारना जरूरी है आने वाली पीढ़ी आप ही आप सुधर जाएगी। गंदे शब्द का उपयोग न सिर्फ सुनने में खराब लगता है बल्कि इससे गलत परंपरा प्रवेश कर जाती है अतः हमेशा मीठे शब्दों को उपयोग कीजिए जो जीवन में मधुरस घोलने का काम करती है। उन्होंने दही लूट प्रसंग का जीवंत चित्रण करते हुए कहा कि कृष्ण उन्हीं सखियों के माखन खाते थे जो उन्हें प्रेम करते थे कृष्ण को प्राप्त करने के लिए श्रद्धा, विश्वास एवं उनके नाम का स्मरण ही काफी है। पंडित शुक्ला ने आगे कहा कि कृष्णा ने अपने समय प्रकृति पूजा करवाए थे अर्थात वर्तमान समय में भी प्रकृति से हमें सब कुछ मिल रहा है वह सिर्फ देने का काम करते हैं लेना उनकी फितरत में नहीं है। पर्यावरण की शुद्धता के लिए पेड़ पौधे लगाने के साथ ही संरक्षण की आवश्यकता है इसके लिए युवाओं को भी आगे आने की जरूरत है। पेड़ पौधों की अधिकता स्वस्थ वातावरण निर्मित करता है। इस मौके प्रमुख रूप से तुमेश साहू, भागवत पटेल, द्वारका साहू, दीपक साहू, कुलेश्वर साहू, नकछेड़ा साहू, देव लाल पाल, गौतरिया चेलक, दुखूराम सोनकर, मंटोरा पाल, वार्ड पंच लक्ष्मी साहू, सरस्वती श्रीवास, खोमिन पाल, सूरूज साहू, कीर्ति पाल सहित अनेक लोग उपस्थित थे।