पूर्णमनोभाव के साथ मेहनत करने से मंजिल अवश्य मिलेगी: पंडित देवेंद्र तिवारी
राजिम । ईश्वर को पाने के लिए निश्चल मन की आवश्यकता है। वह भाव के भूखे होते हैं दृढ़ विश्वास एवं पूर्ण श्रद्धा से याद करेंगे तो निश्चित रूप से किसी न किसी रूप में हमारे बीच में उपस्थित होंगे। उसे प्राप्त करने के लिए उम्र बाधा नहीं आती है। भगवान नाम का जपन कलयुग में श्रेष्ठ है। किसी भी कार्य को इमानदारी पूर्वक करने से सफलता हाथ लगती है। उक्त बातें शहर के मां शारदा वार्ड क्रमांक 15 नवाडीह में चल रहे श्रीमद्भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह के दूसरे दिन लोहरसी से पहुंचे भगवताचार्य पंडित देवेंद्र तिवारी ने कही। उन्होंने बालक ध्रुव प्रसंग पर कहा कि अंतरिक्ष के उत्तर दिशा में एक तारा है जिनका नाम ध्रुव है इस तारे का नाम उसी ध्रुव पर रखा गया है जो भगवान विष्णु का परम भक्त था। मनु की पत्नी का नाम शतरूपा था इन्हें प्रियव्रत, उत्तानपाद आदि 7 पुत्र और देवहूति, आकृति तथा प्रसूति नामक तीन कन्या हुई थी। शतरूपा के पुत्र उत्तानपाद की सुनीति और सुरुचि नामक दो पत्नियां थी। राजा उत्तानपाद के सुनीति से ध्रुव तथा सुरुचि से उत्तम नामक पुत्र प्राप्त हुए। एक दिन बालक ध्रुव अपने पिता की गोद में बैठा हुआ था उन्हें देखकर सुरुचि तुनक गई और हाथ पकड़कर उन्हें उठा दिया तथा चिल्लाते हुए कहा कि पिता के गोद में बैठने का अधिकारी सिर्फ उत्तम को है तुम्हें नहीं। इस पर बालक ध्रुव रोते-रोते अपने मां के पास चला गया और मां से पिता की गोद में बैठने की जीत करने लगा। तब उन्होंने कहा कि बेटा यदि तुम्हें गोद में ही बैठना है तो परमपिता परमात्मा श्रीहरि की गोद में बैठो। पश्चात श्रीहरि कहां मिलेंगे सोच कर राजमहल से बाहर निकल गया और जंगल- जंगल भटकने लगा। रास्ते में ही ब्रह्म ज्ञानी नारद ऋषि मिले उन्होंने उसे श्रीहरि के द्वादश मंत्र ऊं नमो भगवते वासुदेवाय दिए। इस बीज मंत्र के सहारे कम उम्र में ही बालक ध्रुव ने कठिन तपस्या की। वर्षा, ग्रीष्म, शरद, हेमंत, शिशिर, बसंत सभी ऋतु में एकाग्रचित्त होकर भगवान नाम का स्मरण करते हुए तपस्या करते रहे। जिससे प्रसन्न होकर भगवान विष्णु को आना पड़ा और उन्हें आसमान में तारे की तरह चमकने का वरदान दे दिया। पंडित तिवारी ने कहा कि मेहनत पूर्ण मनोभाव से करें मंजिल अवश्य प्राप्त होगी। बालक ध्रुव जब घर से निकले तो उन्हें नहीं पता था कि क्या करना है लगातार चलने के बाद रास्ता खुलता गया और अंततः मंजिल की प्राप्ति हुई। बालक ध्रुव को भगवान विष्णु की गोद में बैठने का अवसर प्राप्त हुआ। पंडित तिवारी ने आगे कहा कि मनुष्य को अपने कर्म इमानदारी पूर्वक करने में कोताही नहीं बरतनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि मनुष्य जीवन बहुत कीमती है एक- एक स्वास की मूल्य हमें समझना है। समय के साथ चलने में ही समझदारी है। यदि हम सोचेंगे भगवान नाम जपन करने का अभी बहुत समय है तो यह हमारे साथ बहुत बड़ी धोखा होगी। इस मौके पर बड़ी संख्या में श्रोतागण जिनमें मुख्य रुप से मदन साहू, मोहन साहू, जोहतू साहू, संतराम साहू, गुलाबचंद साहू, गोपाल साहू, कुमार साहू, चेतन साहू, मनसा राम साहू, गोवर्धन साहू, गजेंद्र साहू, जेठू राम साहू, रेखा साहू, उत्तरा साहू, विमला साहू, मनीषा साहू, शांति साहू, कवि एवं साहित्यकार संतोष कुमार सोनकर मंडल आदि उपस्थित होकर कथा रस का पान किए। इस अवसर पर गायक धर्मेंद्र एवं संतु साहू द्वारा धार्मिक गीत प्रस्तुत कर भाव विभोर कर दिया।