साइकिल चलाने वालों की संख्या घटने से फिटनेस में आया बदलाव
”संतोष सोनकर की रिपोर्ट”
राजिम। साइकिल के दो चक्के में दोनों पैर हैंडल के दोनों मुठ पर दोनों हाथ तथा सीट पर पूरा शरीर का बैलेंस पैडल मारते ही बिना खर्चे के आदमी अपने गंतव्य स्थान तक आसानी से पहुंच जाता है। खरीदते वक्त मात्र एक बार पैसा देना पड़ता है उसके बाद सालों साल साइकल चलाइए बगैर इन्वेस्ट के मंजिल तक पहुंचाने में लाजवाब साइकिल की सवारी कम होती दिखाई दे रही है। साल 1990 तक साइकल पूरे विश्व में बहुत लोकप्रिय था लेकिन उसके बाद इसकी लोकप्रियता घटने लगी। इससे पहले मोहल्ले या फिर गांव में किसी एक के पास साइकल हो जाता था तो उसे देखने के लिए पूरे गांव के लोग उमड़ पड़ते थे और यदि कहीं उनकी सवारी कर लिया जाए दो लोगों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता था। एक से दो और दो से तीन इसी तरह से साइकल घरों घर होने लगे। परंतु आज घर में साइकल होने के बाद भी यदा-कदा लोग ही साइकल चलाते हैं बताना होगा कि आज दिन शुक्रवार को विश्व साइकिल दिवस के मौके पर पंडित सुंदरलाल शर्मा चौक पर आधे घंटे तक यह संवाददाता बैठा रहा इस दरमियान साइकिल चलाने वाले यदा-कदा ही दिखे। बाकी सब छोटे से लेकर बड़े वर्ग के लोग बाइक या फिर कार में चलते हुए दिखे। शहर में हर चौक चौराहे पर ऑटो सेंटर मिल जाएंगे परंतु साइकल रिपेयरिंग सेंटर नहीं मिलते। गत 20 वर्षों से साइकिल बनाने वाले मैकेनिक श्रवण साहू ने बताया कि साइकिल चलाने वालों की संख्या कम हो गई है मात्र स्कूली बच्चे ही आना-जाना करते हैं इसलिए रिपेयरिंग कराने वाले भी कम आते हैं जिसके कारण दुकान अब ठीक से नहीं चल पा रही है नतीजा शहर से दुकान बंद करना पड़ा। सागर निषाद ने बताया कि वह पिछले 2003 से 2008 लगातार 6 सालों तक सालों तक साइकिल दुकान चला रहे थे। ग्राहक बढ़िया मिल रही थी। बाइक का उपयोग ज्यादा होने के कारण साइकिल के काम कम पड़ गये इसलिए साईकिल का व्यवसाय छोड़कर सब्जी व्यवसाय में लग गया। इसी तरह के अनेक उदाहरण देखे जा रहे हैं चौबेबांधा के लाला साहू साइकिल रिपेयरिंग की दुकान बंद कर ऑटो सेंटर के काम में लग गए हैं। जानकारी के मुताबिक समय के साथ साथ साईकिल चलाने वालों की संख्या में कमी आने के कारण लोगों की फिटनेस अनबैलेंस होते जा रहे हैं नतीजा कमाई के मोटी रकम क्लीनिक और अस्पतालों में खर्च हो रहे हैं। बावजूद इसके वर्तमान में भी कुछ लोग हैं जिनकी दिनचर्या में साइकल शामिल है। आज भी लोग सुबह से लेकर शाम तक साइकिल सही आना-जाना करते हैं। कुछेक तो सुबह सुबह मॉर्निंग वॉक साईकिल से ही करते हैं। महासमुंद लोकसभा क्षेत्र के पूर्व सांसद चंदूलाल साहू आज भी साइकिल चलाते हैं। वह बताते हैं कि सुबह साइकिल चलाने से शरीर का पूरा व्यायाम हो जाता हैऔर फिटनेस बना रहता है।फिंगेश्वर जनपद पंचायत के पूर्व अध्यक्ष राघोबा महाडिक ने बताया कि मेरी माता जब सरपंच थी तब मैं पूरे नगर में आना जाना साइकिल से ही करता था। उन्होंने बताया कि आज भी साइकिल की कीमत कम है जबकि बाइक या फिर अन्य वाहन चलाने पर मोटी रकम खर्च करनी पड़ती है। हास्य कवि गोकुल सेन ने बताया कि वह घर से दुकान तक साईकिल से ही आना-जाना करते थे परंतु अब स्कुटी आ जाने के बाद साइकिल चलाना कम हुआ है। वह बताते हैं कि जिंदगी भर मैंने साइकल ही चलाया है यह मेरे जीवन का अभिन्न हिस्सा है इससे मैं विमुख नहीं हो सकता। हलाकि बाइक चलाता हूं लेकिन साइकल भी मेरे जीवन से जुड़ा हुआ है। साइकिल के ऊपर लोगों के अपनी-अपनी अलग-अलग विचार है परंतु सभी यह मानते हैं के साइकल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए रामबाण है।