The Popatlal

सच्ची खबर देंगे पोपटलाल

Chhattisgarh

राजिम कैसे बना कमलक्षेत्र पद्मावतीपुरी से राजिम…

Spread the love
“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”

राजिम। भगवान श्रीराजीव लोचन मंदिर परिसर में तेलीन माता का विशाल मंदिर है। मंदिर के सर्वराकार चंद्रभानसिंह ठाकुर ने बताया कि इस जगह का नाम पदमापुरी था, लेकिन अब इस स्थान को राजिम के नाम से जाना जाता है। इसके पीछे किवदंती है कि भगवान श्रीराजीव लोचन पर राजिम नाम की महिला की परम भक्ति थी। सुबह से शाम तक वह भगवान की चरण वंदन किया करती थी। तेल निकालने का काम करने के बाद भी उनमें भगवान के प्रति श्रद्धा कूट-कूट भरी हुई थी। इसी के पुण्य फल से वह आगे बढ़ती गई। प्रतिदिन की तरह तेल लेकर नदी पार कर विक्रय करने के लिए जा रही थी, अचानक उसका पैर एक पत्थर से टकराया और वह गिर गई। इससे पात्र में रखा सारा तेल बह गया। राजिम सास-ससुर के डर के कारण रोने लगी, थोड़ी देर बाद जब वह घर जाने के लिए तेल के पात्र को उठाने के लिए उठी तो उसने खाली तेल के बर्तन में फिर से तेल से भरा हुआ देखकर वह आश्चर्यचकित रह गई। इस घटना के बाद वह उत्सुकता के साथ संपूर्ण घटना का विवरण देने के लिए अपने घर की ओर चली गई। कहा जाता है कि जिस दिन से राजिमबाई ने अपने कोल्हू के पास नदी में मिली भगवान श्रीराजीव लोचन की मूर्ति स्थापित की उस दिन से सारा दिन तेल बेचने के बाद भी उसका बर्तन खाली नहीं होता था। इस चमत्कार से राजिमबाई सहित उसके ससुराल वाले अचंभित हो गए। दूसरे दिन पूरा तेली परिवार उस पत्थर को उलट कर देखा तो औंधी मुंह के श्यामवर्णी चतुभुर्जी मूर्ति मिली इन्हें घर में लाकर रख दिया और कोल्हू के पास स्थापित किया और पूजा अर्चना करते रहे। इधर रत्नपुर नरेश वीरवल को स्वप्न हुआ और स्वप्न के अनुसार राजिम में एक विशाल मंदिर का निर्माण किया। स्वप्न में कहे अनुसार राजिम तेलीन के पास जाकर उस मूर्ति की मांग करने लगे, इतने पर माता राजिम शांत बैठी रही। उनके मौन को स्वीकृति समझकर राजा ने ले जाने के उद्देश्य से मूर्ति को उठाने का प्रयास किया लेकिन निःफल रहा। तब पुनः राजिम से निवेदन करने लगे, इतने पर राजिम कहती है तुमने मेरे मौन को स्वीकृति समझ लिया, इसलिए मूर्ति नहीं उठी। श्रद्धा के साथ एक तुलसी पत्र लेकर उठाआ,े तो जरूर उठ जायेगी। राजा ने ऐसा ही किया इससे प्रसन्न होकर कुछ मांगने के लिए कहा तब राजिम ने कहा कि हो सके तो इस मूर्ति के साथ मेरा नाम जुड़ जाये तो मैं अपने आप को सौभाग्यशाली समझुंगी। उसी दिन से इसका नाम राजिम पड़ गया। कहा जाता है कि राजा रत्नाकर का भगवान के प्रति अटूट आस्था थी, जिसके कारण उसने भगवान श्रीराजीव लोचन मंदिर की स्थापना की गई। यहां का मेला ऐतिहासिक, पौराणिक और धार्मिक रूप में विख्यात है। तेलीन माता के जयंती को 7 जनवरी को साहू समाज के द्वारा भव्य रूप से मनाया जाता है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *