चौबेबांधा में जोत जंवारा विसर्जन में उमड़ा सैलाब,मंडलियों ने माता सेवा गीत की दी प्रस्तुति
“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”
राजिम । शहर से लगा गांव चौबेबांधा में जोत जंवारा विसर्जन के लिए पूरा गांव उमड़ पड़ा था। सुबह से ही लोग नहा धोकर नए वस्त्र धारण कर जंवारा विसर्जन के लिए एकत्रित हुए एक और सेवा मंडली ने माता के महिमा का बखान करते हुए सेवा गीत प्रस्तुत किए जिसमें झांझ, मंजीरा, ढोलक,दफड़ा, घुंगरू आदि वाद्य यंत्रों का उपयोग किया गया संगीत की शानदार आवाज के साथ माता सेवा की गीत प्रस्तुत किए गए। पंचराम पाल, लोचन निषाद, तेज ध्रुव, पिंटू पाल, हरक श्रीवास, गणेश साहू, सीताराम सोनकर, राजू पटेल, लोकेश्वर साहू आदि ने पारंपरिक धुनों में भजनों प्रस्तुत किया गया। दिन में अंगना बटोरत लागे बेरा…, अईसन जानतेव मैया हूमें अऊ लगिन ल… कंकालिन मोरे माया हो…. सारद मोर सती मां… इत्यादि एक से बढ़कर एक गीत गाते रहे। आगे-आगे सेवा दल उनके पीछे माई जोत सिर पर रखे हुए जिन्हें छाता ओढ़ाकर चल रहे थे। एक ओर सेवा गीतों में लोग घूम रहे थे तो दूसरी ओर गर्मी के मद्देनजर सिर पर दही डाल रहे थे इनकी धार्मिक मान्यता भी बताई जाती है। कुछ लोग बाना एवं सांग को पकड़े हुए थे। बार-बार माता की जय कारा हो रही थी। कुछ नि:संतान महिलाएं अपने सिर पर हऊला से पानी लेकर अचानक आई और जिस ओर से महिलाएं जवारा लेकर जा रही थी उसी के सामने पानी खाली कर दिए और लेट गई। इन पर पैर रखते हुए बाकी के लोग आगे बढ़ते गए। पूछने पर बताया गया कि ऐसे करने से देवी मां प्रसन्न होकर मन्नत को पूरा करती है। उनके विदाई के लिए अच्छी खासी भीड़ देखने को मिली शीतला तालाब में ले जाकर विधि विधान के साथ घाट में ही सबसे पहले आरती किया गया उसके बाद विसर्जन किया गया। उल्लेखनीय है कि नौ दिनों तक लगातार माता की भक्ति में पूरा देश डूबा हुआ था। इनके विदाई में श्रद्धालुओं के आंसू भी छलक पड़े।