श्रीमद् भागवत कथा के छठवें दिन पंडित तिवारी ने सुदामा प्रसंग पर की चर्चा
राजिम। सुदामा धन से गरीब थे मगर मन से सबसे बड़े धनवान थे। वह अपने जीवन की सुख और दुख दोनों भगवान की इच्छा पर सौंप दिया था। कृष्ण से मिलने सुदामा आए तब वह उनके फटे कपड़े नहीं देखें बल्कि मित्र की भावनाओं को देखा। मनुष्य को अपना कर्म नहीं भूलना चाहिए। सच्चा मित्र कृष्ण और सुदामा की तरह होना चाहिए। उक्त बातें शहर के कृषि उपज मंडी के सामने चल रहे श्रीमद् भागवत महापुराण ज्ञान यज्ञ सप्ताह के छठवें दिन भगवताचार्य पंडित अर्जुन प्रसाद तिवारी ने कहा। उन्होंने सुदामा चरित्र प्रसंग पर कहा कि कृष्ण सुदामा की मित्रता एक मिसाल है। बालपन में ऋषि संदीपनी के यहां शिक्षा ग्रहण किया तब उनकी मित्रता सुदामा के साथ हो गई। कृष्ण एक राज परिवार और सुदामा ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे परंतु दोनों की मित्रता का गुणगान पूरी दुनिया करती है। ईश्वर हमेशा भाव के भूखे होते हैं एक बार सुदामा गांव में जाकर कुछ अन्न इंतजाम कर ले आए उनकी पत्नी सुशीला भोजन बनाकर उन्हें परोसा। सबसे पहले चावल के दाने बच्चों को दिया गया उसके बाद सुदामा को दिया। सुदामा सहित उनका परिवार पिछले तीन दिनों से भूखा था भोजन को देखकर सभी के चेहरे खिल उठे। जैसे ही वह भोजन करने वाले थे किसी भिक्षुक ने आवाज लगाई और कहा कि कोई मुझे खाना खिला दो मैं पांच दिनों से भूखा हूं। सुदामा पत्तल में रखें भोजन को उठाकर भिक्षुक को दे दिया। बचा कुछ भोजन अब पत्नी सुशीला ने फिर सुदामा के पत्तल पर डाला। सुदामा खाने के लिए कौर उठा ही रहे थे कि गौ माता ने आवाज लगाई। सुदामा पुनः रखी भोजन को गौ माता को दे दिया अब पात्र से भोजन खत्म हो चुका था। इधर उधर नजर दौड़ाई तब कहीं अन्न के दो दाने दिखे जिनमें एक दाने सुशीला ने सुदामा को दिया और उसी को दो टुकड़ाकर आधे दाने भगवान को समर्पित किया। प्रसाद पाते ही लक्ष्मी नारायण भगवान तृप्त हो गया। आधे दाने से सुदामा की भूख मिट गई। ईश्वर अपने भक्तों के धैर्य की परीक्षा लेते हैं परंतु जो कर्म पर विश्वास रखते हैं ईश्वर को अपना मानते हैं वह कभी असफल नहीं होता। कर्म करना हमारे बस में है फल कभी ना कभी जरूर मिलता है इसके लिए हमें चिंता करने की जरूरत नहीं है। पंडित तिवारी ने कहा कि जिस घर परिवार में महिलाओं का सम्मान होता है वहां 33 कोटि देवी देवताओं का निवास होता है। आज अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। आज से हम प्रण करें की भूल कर भी हम किसी बेटी, बहू, मां, बहन को अपशब्द ना कहें बल्कि उनका सम्मान करें। उन्होंने बताया कि ईश्वर ने अपने रूप में माता पिता को इस सृष्टि में भेजा है। इसलिए उनका भूल कर भी सेवा में कोई कमी नहीं होनी चाहिए। उन्होंने आगे कहा कि यह जीवन बहुत कीमती है इनके मायने समझें, इन्हें आत्महत्या करके समाप्त न करें। वह माता पिता ही जानता है कि एक शिशु को छोटे से बड़ा करने में कितनी तकलीफ झेलना पड़ता है जीवन में सुख और दुख लगा रहता है इससे घबराने की जरूरत नहीं है दुख के बाद सुख जरूर आता है इसलिए इस जीवन को पूरी तरह से जिए ताकि जीव को मनुष्य जन्म मिलने का लाभ प्राप्त हो। इस मौके पर गायक राजेंद्र निर्मलकर, ऐश्वर्या साहू ने अनेक धार्मिक भजन प्रस्तुत किए उन्होंने राधे राधे श्याम से मिला दे जैसे सुपरहिट गाने से उपस्थित श्रोताओं का मन मोह लिया। तबले पर रामकुमार देवांगन, पैड पर ओजस्व दास, आर्गन सुमित सेन ने संगत किया। इस मौके पर प्रमुख रूप से धांसू देवांगन, गणेश देवांगन, शत्रुघ्न देवांगन, नीलम देवांगन, संतोष देवांगन साहित्यकार संतोष कुमार सोनकर मंडल सहित बड़ी संख्या में श्रोतागण उपस्थित थे।
“संतोष सोनकर की रिपोर्ट”